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दिल्ली के लेफ़्टीनेंट गवर्नर, मुख्यमंत्री के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आज

दिल्ली के लेफ़्टीनेंट गवर्नर और मुख्यमंत्री के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को एक बहुत ही महत्वपूर्ण फ़ैसला देने वाला है। यह इस राज्य के लिए बेहद अहम होगा। इससे राज्य और इसके मुख्यमंत्री की संवैधानिक स्थिति तो साफ़ हो ही जाएगी, यह भी  स्पष्ट हो जाएगा कि लेफ़्टीनेंट गवर्नर किस हद तक मुख्यमंत्री के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकते हैं और उनकी भूमिका क्या होगी। साथ ही, यह भी  पता चल जाएगा कि राज्य और केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकारें होने पर केंद्र सरकार किस हद तक हस्तक्षेप कर राज्य सरकार पर लगाम लगा सकती है। 

इस मामले से जुड़ी कुछ अहम बातें: 

  • 1.दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार कहती रही है कि जनता से चुने जाने के बावजूद राज्य के प्रशासन में उसकी कोई ख़ास नहीं चलती है। पार्टी कुछ दिन पहले तक दिल्ली को पूर्ण राज्य घोषित करने के माँग करती रही है। 
  • 2.बीते साल जुलाई मे दिए एक फ़ैसले में अदालत ने कहा था कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। पर लेफ़्टीनेंट गवर्नर को स्वतंत्र निर्णय लेने का हक़ भी नहीं है। उन्हें चुनी हुई सरकार के सलाह और मदद से ही काम करना चाहिए। 
  • 3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली के राज्यपाल मंत्रिपरिषद से अलग अपनी राय रख सकते हैं, पर इसका आधार होना चाहिए और वह बुनियादी मुद्दों पर आधारित होना चाहिए। मतभेद सिर्फ मतभेद दिखाने के लिए नहीं होना चाहिए। 
  • 4.पिछले साल के निर्णय में साल 2016 के उस फ़ैसले को उलट दिया गया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली केंद्र शासित क्षेत्र है और सारे अधिकार केंद्र के पास हैं, राज्य सरकार के पास नहीं। 
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क़मर वहीद नक़वी

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