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आख़िर दिल्ली में कोरोना क्यों लौट रहा है?

जिस दिल्ली में कोरोना पर काबू पाने का दावा किया जा रहा था, वहाँ पिछले दो दिनों से लगातार 1800 से ज़्यादा मरीज़ों के आने के बाद अब इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि राजधानी में कोरोना फिर लौट रहा है। लगता है कि कोरोना फिर से राजधानी को काबू में कर रहा है। 27 अगस्त को 1840 मरीज़ आए तो 28 अगस्त को 1804 मरीज़ आ गए। दोनों दिन मौतों की संख्या भी 20 या उससे पार हो गई जबकि इससे पहले 10 अगस्त को 20 मौतें हुई थीं और उसके बाद लगातार आँकड़ा इससे नीचे ही बना हुआ था। कई बार तो मौतें सिंगल डिजिट में ही हुईं। कोई कुछ भी कहे लेकिन यह सच है कि पिछले 10 दिनों के आँकड़े दिल्ली को फिर से डरा रहे हैं, चिंता में डाल रहे हैं।

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अगर सिर्फ़ अगस्त की बात करें तो 17 अगस्त तक ऐसा लग रहा था कि कोरोना की दिल्ली से जल्दी ही विदाई हो जाएगी। पहली अगस्त से 17 अगस्त तक दिल्ली में सिर्फ़ 18 हज़ार 25 मरीज़ ही आए थे लेकिन 18 अगस्त से 28 अगस्त तक 11 दिनों में ही मरीज़ों की तादाद 24 हज़ार 671 हो गई। अगस्त में तो बड़े ज़ोर-शोर से कोरोना पर काबू पाने की बात की जा रही थी लेकिन अभी महीना ख़त्म होने से तीन दिन पहले ही मरीज़ों की तादाद 42 हज़ार 696 हो गई है। जब जुलाई में कोरोना पर काबू पाने का दावा नहीं किया जा रहा था, तब पूरे महीने में 48 हज़ार 238 मरीज़ आए थे। कोई हैरानी नहीं होगी, अगर अगस्त में भी आँकड़ा इसके आसपास ही रहे जबकि दिल्ली सरकार और उसके सारे नुमाइंदे एक सुर में कोरोना पर जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं।

एक्सपर्ट अभी यह मान रहे हैं कि दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर नहीं आ रही। भगवान करे, न ही आए। मगर, ये आँकड़े चौंकाने वाले ज़रूर हैं। सीएम अरविंद केजरीवाल भी इससे चौंक रहे हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि दिल्ली में कोरोना के मरीज़ फिर से बढ़ रहे हैं और इसके लिए क़दम उठाने ज़रूरी हैं। वह अपने आपको और अपनी सरकार को सचेत भी बता रहे हैं लेकिन साथ ही कोरोना बढ़ने के लिए जनता की लापरवाही को भी दोषी क़रार दे रहे हैं। वाक़ई यह सच भी है कि पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की जनता लापरवाह भी हो गई है। अब चेहरे की बजाय मास्क ठोढी पर आ गया है और सोशल डिस्टेंसिंग का तो कहीं पालन होता नज़र ही नहीं आ रहा। 

दुकानों और बाज़ारों में ग्राहकों के लिए बने गोले के निशान अब मिट रहे हैं और लोगों में भी अब कोरोना के प्रति कोई भय नहीं है। यह तो पहले दिन से कहा जा रहा है कि कोरोना से डरना नहीं, लड़ना है लेकिन लड़ने के लिए एहतियात बरतना ज़रूरी है और दिल्ली की जनता उस एहतियात को भूलती जा रही है।

दिल्ली की जनता का मिज़ाज लापरवाही वाला है भी। ज़रा-सी ढील मिले तो हम बेपरवाह हो जाते हैं। अक्सर हम सड़क पर चलते हुए देखते हैं कि किस कदर नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। जिग-जैग ड्राइविंग, रेड लाइट जम्प या फिर ज़ेबरा क्रॉसिंग को नज़रअंदाज़ करना भी हमने ख़ूब देखा है लेकिन जब चौराहे पर पुलिसवाला नज़र आ जाए तो फिर यह लापरवाही काफूर हो जाती है। तब सभी भीगी बिल्ली बनकर नियमों का पालन करते भी दिखाई देते हैं। लॉकडाउन में भी हम सबने यह देखा ही था कि किस तरह सड़कें सुनसान हो गई थीं और चेहरे से नकाब हटता ही नहीं था।

अब सोचना यह भी है कि दिल्ली की जनता लापरवाह क्यों हो गई है? दिल्ली में कोरोना को लेकर आम आदमी पार्टी सरकार ने जिस तरह का रवैया अपनाया है, वह कई बार हैरान ज़रूर करता है। जून के मध्य तक दिल्ली में कोरोना अपने पीक पर था। रोज़ाना मरीज़ों की तादाद 4 हज़ार के क़रीब पहुँच गई थी और मौतों का आँकड़ा भी रोज़ सैंकड़ा जड़ रहा था।

दिल्ली सरकार ने तो टेस्ट करने पर ही रोक लगा दी थी। उस वक़्त केंद्र सरकार ने और ख़ासतौर पर गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप किया। उसके बाद से लगने लगा कि कोरोना का कहर कम हो रहा है। उस वक़्त रोज़ाना 4 हज़ार टेस्ट भी नहीं हो रहे थे। उनकी तादाद बढ़ाकर 20 हज़ार की गई और कंटेनमेंट ज़ोन पर भी काफ़ी सख़्ती की गई। बस, उसके बाद से मरीज़ों की तादाद कम होनी शुरू हो गई लेकिन आप देखेंगे कि जैसे ही दिल्ली में मरीज़ों की तादाद कम हुई, आप सरकार ने एक अभियान छेड़ दिया। अभियान यह कि कोरोना पर दिल्ली सरकार ने काबू पाया है और इसे ‘दिल्ली मॉडल’ का नाम दिया गया। सोशल मीडिया पर तो जैसे पीठ थपथपाने और जयजयकार करने की होड़ ही शुरू हो गई। सीएम केजरीवाल हों या डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया या फिर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन, हर आपिया दिल्ली में कोरोना पर जीत हासिल करने का झंडा बुलंद करने लगा। उनके प्रचार का यह असर रहा कि कुछ और राज्यों में भी दिल्ली मॉडल की चर्चा होने लगी और प्रशंसा होने लगी। 

और तो और, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने प्लाज्मा थैरेपी की बात क्या की, आप सरकार के सारे दरबारी चिल्लाने लगे कि देखिए अमेरिका भी दिल्ली मॉडल पर अमल कर रहा है जैसे दिल्ली में प्लाज्मा थैरेपी से पहले किसी ने उस थैरेपी का नाम भी नहीं सुना था और न ही किसी ने कोरोना के लिए उसका इस्तेमाल ही किया था।

कोरोना पर जीत का यह गुणगान और शोर-शराबा जनता भी तो सुन रही थी। बस, जनता ने भी बाक़ी बातों की तरह यह मान लिया कि दिल्ली से कोरोना को भगा दिया गया है। दिल्ली की जनता तो वैसे ही बेपरवाह है और यह संदेश दिमाग़ में घुसते ही उसने सारे नियम तोड़ दिए और नियमों पर चलना छोड़ दिया। अब अगर केजरीवाल जनता को दोष दे रहे हैं तो इस लापरवाही की हद तक पहुँचाने के लिए उन्हें अपने गिरेबान में भी झाँककर देखना होगा। यह सच है कि वह हर बार यह कहते रहे हैं कि भई सावधानी रखना लेकिन वह बात इतने कम ज़ोर से कही गई कि कोरोना भाग गया है, यह जनता के दिमाग़ पर हावी हो गया।

इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने जिस तरह सब कुछ खोलने की जो रट लगाई है, उससे भी जनता के मन में यही संदेश गया है कि सबकुछ ठीक-ठाक है। आपने मॉल खोल दिए, बाज़ार खोल दिए और उसके साथ ही अब रेस्टोरेंट और वहाँ शराब परोसने की इजाज़त तक दे दी। यही नहीं, आप जानते हैं कि वीकली बाज़ारों में कितनी भीड़ होती है।

शराब की दुकानें सबसे पहले खोलकर आप देख चुके हैं कि भीड़ पर काबू पाना नामुमकिन हो जाता है लेकिन वीकली बाज़ार खोलने की ज़िद का मतलब ही यही है कि कोरोना को फैलने का एक और मौक़ा दे दिया जाए। सब कुछ खोलने के फ़ैसलों के कारण ही जहाँ जनता में यह संदेश चला गया कि अब सब ठीकठाक है और उतनी ही लापरवाही ही बढ़ती गई। जब सब कुछ सुनसान हो और इक्का-दुक्का लोग ही निकल रहे हों तो प्रशासन और पुलिस के लिए हालात पर काबू पाना आसान होता है लेकिन जब सारी जनता सड़क पर हो तो फिर उस पर कोई कैसे काबू पा सकता है। वही हालात दिल्ली में बन रहे हैं।

वैसे, दिल्ली में कोरोना पर काबू पाने के लिए टेस्ट का खेल भी खेला गया है। मरीज़ कम दिखाने के लिए दिल्ली में एंटीजन टेस्ट ज़्यादा तादाद में किए गए हैं जबकि उसका पॉजिटिविटी रेट 6 फ़ीसदी है जबकि आरटी-पीसीआर टेस्ट का पॉजिटिविटी रेट 36 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। जिन लोगों ने पहले एंटिजन टेस्ट कराया और उनकी निगेटिव रिपोर्ट आई लेकिन फिर आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया तो उनमें से 18 फ़ीसदी को कोरोना पॉजिटिव हुआ। 

दिल्ली में अगर 20 हज़ार टेस्ट होते हैं तो फिर उनमें से 15 हज़ार तक एंटिजन टेस्ट ही किए जाते हैं। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट भी दिल्ली सरकार को लताड़ लगा चुका है। इस लताड़ के बाद केजरीवाल ने अफ़सरों से कहा था कि टेस्ट गाइडलाइंस के हिसाब से ही किए जाएँ।

कुछ लोग कहते हैं कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के दिमाग़ में दूसरी ही बात है। वह चाहती है कि कोरोना को जितना फैलना है, फैलने दो। दिल्ली में जुलाई में हुए पहले सीरो सर्वे में 24 फ़ीसदी जनता को कोरोना होने की बात कही गई थी और अगस्त में यह संख्या 29 फ़ीसदी हो चुकी है। ये वो लोग हैं जिन्हें कोरोना का कोई लक्षण नहीं था लेकिन उनमें एंटीबॉडी पाई गई हैं। सरकार की शायद यह मंशा है कि कोरोना को 60 फ़ीसदी तक फैलने दो और जब ऐसी स्थिति आ जाए तो फिर कोरोना का फैलना अपने आप रुक जाएगा। इसीलिए सरकार सब कुछ खोलने के पक्ष में है। इसके पीछे सरकार की मजबूरी भी है। 

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दिल्ली की अर्थव्यवस्था मुफ्त सेवाओं के इर्दगिर्द ही घूमती है। अकेले बिजली के लिए ही हर महीने 250 करोड़ रुपए की ज़रूरत होती है। डीटीसी की बसों में मुफ्त यात्रा 100 करोड़ का और बोझ डालती है। अगर सारी मुफ्त सुविधाएँ देखें तो 500 करोड़ हर महीने चाहिए। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और बाक़ी सुविधाओं के लिए भी तो पैसा चाहिए। जब सब कुछ खुलेगा, टैक्स आएगा, तभी तो रेवेन्यू आएगा। क्या यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार अपना खजाना भरने के लिए कोरोना फैलने का बड़ा ख़तरा भी मोल लेने को तैयार है?
बहरहाल, कोरोना पर काबू पाना है तो इसके लिए एक बार फिर लोगों को तो लापरवाही छोड़नी ही होगी। केजरीवाल भले ही दिल्ली पुलिस पर बिलकुल विश्वास न करते हों लेकिन उन्होंने दिल्ली की जनता को आगाह कर दिया है कि वे नहीं सुधरे तो फिर पुलिस उनका चालान करेगी और भारी जुर्माना करेगी। जनता को अब कोरोना से फिर डरना होगा और दिमाग़ से यह बात निकालनी होगी कि दिल्ली मॉडल के कारण राजधानी से कोरोना भाग गया है।
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दिलबर गोठी

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