loader

‘रूपाणी को हटाया जा सकता है’, ख़बर चलाने पर संपादक के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज

एक गुजराती न्यूज़ पोर्टल के संपादक पर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया है। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, संपादक ने अपने पोर्टल पर यह ख़बर चलाई थी कि बीजेपी आलाकमान राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को उनके पद से हटा सकता है और उनकी जगह केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया को ला सकता है। पुलिस ने सोमवार को इस बारे में जानकारी दी है। 

ताज़ा ख़बरें

संपादक का नाम धवल पटेल है और वह फ़ेस ऑफ़ नेशन नाम से न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं। पीटीआई के मुताबिक़, एक सीनियर पुलिस अफ़सर ने बताया कि अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने पटेल के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए (राजद्रोह) और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत 8 मई को एफ़आईआर दर्ज की। पटेल ने 7 मई को यह ख़बर अपने पोर्टल में चलाई थी। 

पीटीआई के मुताबिक़, एसीपी बी.वी. गोहिल ने कहा कि कोरोना वायरस के चलते सावधानी रखते हुए पटेल को गिरफ़्तार नहीं किया गया है बल्कि उन्हें हिरासत में लिया गया है। उन्होंने कहा कि पटेल का एसवीपी अस्पताल में कोरोना का टेस्ट कराया गया है।  

एफ़आईआर के मुताबिक़, पटेल ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना होने की ख़बर अपने न्यूज़ पोर्टल पर चलाई थी। इसमें दावा किया गया था कि मनसुख मंडाविया को बीजेपी हाईकमान ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बारे में चर्चा करने के लिए बुलाया है। ख़बर में यह भी दावा किया गया था कि रूपाणी जिस तरह कोरोना महामारी को हैंडल कर रहे हैं, उससे पार्टी हाई कमान ख़ुश नहीं है। 
गुजरात से और ख़बरें

क्या है राजद्रोह का क़ानून?

राजद्रोह का क़ानून अंग्रेज़ों के ज़माने में बना था ताकि भारतीयों की आवाज़ को दबाया जा सके और इसीलिए उसमें लिखा गया था कि 'सरकार के प्रति नफ़रत पैदा करने वाली’ किसी भी बात या हरक़त के लिए राजद्रोह का मामला दायर किया जा सकता है।

देश की आज़ादी के बाद भी इस क़ानून को नहीं हटाया गया। जबकि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि 124 (ए) के तहत किसी के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला तभी बनता है जबकि किसी ने सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा की हो या हिंसा के लिए उकसाया हो (फ़ैसला पढ़ें)। 

नारे लगाने से राजद्रोह का केस नहीं बनता 

1995 में देश विरोधी और अलगाववादी नारों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि केवल नारे लगाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता क्योंकि उससे सरकार को कोई ख़तरा पैदा नहीं होता (फ़ैसला पढ़ें)। इस मामले में दो लोगों पर आरोप था कि उन्होंने 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद खालिस्तान ज़िंदाबाद और हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए थे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

गुजरात से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें