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शौचालय वाले 23% भी जाते हैं खुले में शौच, गाँव कैसे बने ओडीएफ़?

क्या गाँवों में शौचालय बना देना ही काफ़ी है? क्या इसका इस्तेमाल करना भी मायने रखता है या नहीं? क्या सिर्फ़ शौचालय बना कर गाँवों को खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ़ घोषित किया जा रहा है? कम से कम सर्वे की रिपोर्ट को पढ़ने पर तो ऐसा ही लगता है। हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट आई है कि उत्तर भारत के गाँवों में जिनके घर शौचलय बन भी गए हैं उनमें से 23 फ़ीसदी लोग खुले में ही शौच करते हैं। यानी जिनके घर शौचालय नहीं बने हैं उनकी तो बात ही दूर है। ऐसे घरों को लोग ज़ाहिर तौर पर खुले में ही शौच करते हैं और उन घरों की महिलाओं को रात के अंधेरे का इंतज़ार करना पड़ता होगा। ऐसे में गाँवों, पंचायतों, ज़िलों और राज्यों को खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ़ कैसे घोषित किए जा रहे हैं?

केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के मुताबिक़, शौचालय के इस्तेमाल पर ही ओडीएफ़ घोषित किया जा सकता है। यानी जब तक किसी गाँव या पंचायत के सभी घरों के सभी सदस्य शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते हैं तब तक उस गाँव को ओडीएफ़ घोषित नहीं किया जा सकता।

तो क्या सरकार इस नियम के आधार पर खुले में शौच मुक्त घोषित कर रही है? स्वच्छ भारत कार्यक्रम को लेकर कराए गए एक सर्वेक्षण से तो ऐसा नहीं लगता। भले ही सरकार द्वारा शौचालय बना दिए गए हों, लेकिन लोगों द्वारा इनका पूरा इस्तेमाल अभी भी नहीं किया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य देश को खुल में शौच से मुक्त करना है। 

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43% लोग खुले में करते हैं शौच

भारतीय सांख्यिकी संस्थान में एक विजिटिंग रिसर्चर यानी अतिथि शोधकर्ता डायने कॉफ़े के नेतृत्व में एक टीम ने आँकड़ों का विश्लेषण किया है। टीम 2014 से स्वच्छता योजना की प्रगति की निगरानी कर रही है। अंग्रेज़ी अख़बार ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने इस पर एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट में शोध के हवाले से लिखा गया है कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 43% लोग ‘सांस्कृतिक और अन्य कारणों’ से खुले में शौच करते हैं। यह 2018 का आँकड़ा है। इन 43% लोगों में वैसे लोग भी शामिल थे जिनके घर में शौचालय बने हुए थे और वैसे लोग भी थे जिनके घर में शौचालय थे ही नहीं। क़रीब 23% लोग ऐसे थे जिन्हें स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय उपलब्ध कराया गया था, लेकिन फिर भी वे खुले में शौच करना पसंद करते थे। 

बता दें कि 2014 में खुले में शौच करने वाली ग्रामीण आबादी 70% थी। यानी 2018 तक इसमें काफ़ी स्थिति सुधरी है।

‘ग्रामीण उत्तर भारत में परिवर्तन: 2014 - 2018’ पर शोध यह भी दिखाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन शुरू किए जाने के बाद से ग्रामीण आबादी के बीच शौचालयों का उपयोग काफ़ी बढ़ गया।

शोधकर्ताओं ने इन चार तथाकथित ‘फ़ोकस’ राज्यों को चुना क्योंकि यहाँ ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और इन राज्यों में खुले में शौच का प्रचलन ज़्यादा था।

क्या सिर्फ़ शौचालय बनाना ही काफ़ी?

2014 में इसी टीम ने उत्तर भारत में ग्रामीण स्वच्छता पर 'आधारभूत सर्वेक्षण' किया था। यह जो नये आँकड़े आए हैं वह 2018 में किए गए एक सर्वेक्षण से हैं। 2018 के इस सर्वेक्षण में भी चारों राज्यों में उन्हीं घरों का सर्वे किया गया जिनको 2014 में किया गया था। शोध तैयार करने वालों में से एक संगीता व्यास ने कहा, ‘कई पूर्व अध्ययनों से पता चला है कि अनुष्ठानों की शुद्धता का ख्याल रखने, छुआछूत और जाति-व्यवस्था से जुड़े दकियानूसी सोच के कारण शौचालय के गड्ढे भरने और खाली करने को तैयार नहीं होते हैं...। यह एक मुख्य कारण है कि शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच ग्रामीण भारत में इतनी आम बात है।’ हालाँकि कई जगहों पर परिवारों के पास शौचालय हैं, लेकिन पानी की कमी की वजह से भी लोग इनका इस्तेमाल नहीं करते।

शौचालय मिशन के तहत इस पर केंद्रित नहीं किया गया कि शौचालय के बारे में सामाजिक दृष्टिकोण और विचार जो आड़े आ रहे हैं उस पर काम किया जाए। यदि शौचालय से जुड़ी सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने पर काम किया जाता तो खुले में शौच से मुक्त होना ज़्यादा आसान और असरदार भी होता।

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खुले में शौच मुक्त का दावा

शौचालय बनाए जाने के आँकड़ों के आधार पर सरकार ने अब तक 86% ज़िलों यानी 624 ज़िलों को ‘खुले में शौच मुक्त’ के रूप में घोषित किया है। हालाँकि ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित करने के लिए शौचालय बनाना ही काफ़ी नहीं होता है, बल्कि इसका इस्तेमाल भी किया जाना होता है। इस आधार पर सरकार के दावे कहाँ टिकते हैं। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, रिसर्च इंस्टिट्यूट फ़ॉर कंपैसनेट इकोनॉमिक्स के कार्यकारी निदेशक डायने कॉफ़े ने कहा, ‘हालाँकि इस अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी ज़्यादा शौचालय बनाए गए। लेकिन इन चार राज्यों में खुले में शौच बहुत आम बात है। सर्वे के ये निष्कर्ष खुले में शौच को पूरी तरह से समाप्त करने के आधिकारिक दावों के विपरीत हैं।’

कई ऐसी रिपोर्टें आयी हैं कि कई जगहों पर कागजों में शौचालय बने दिखाए गए हैं, मगर मौक़े पर शौचालय नदारद मिले। अब यदि ऐसे मामलों को भी शामिल कर लें तो खुले में शौच मुक्त का दावा कहाँ टिकता है?

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क़मर वहीद नक़वी

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