दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम में हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने ट्वीट कर कहा है कि हर महीने के पहले मंगलवार को ग्रेटर कैलाश के अलग-अलग इलाक़ों में सुंदर कांड का पाठ किया जाएगा। भारद्वाज ग्रेटर कैलाश विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। पहला सुंदर कांड का पाठ 18 फ़रवरी को प्राचीन शिव मंदिर, चिराग दिल्ली में हो चुका है।
क्या यह ‘आप’ की आधिकारिक लाइन है?
सौरभ भारद्वाज पार्टी के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। उन्होंने जब अपनी विधानसभा में सुंदरकांड कराने की बात कही है तो क्या इसे 'आप' की आधिकारिक लाइन माना जाना चाहिए। क्या 'आप' के दूसरे विधायक भी अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में सुंदरकांड के पाठ करवायेंगे। अगर यह पार्टी की आधिकारिक लाइन नहीं है तो पार्टी की ओर से इसका खंडन किया जाना चाहिए। सौरभ का ट्वीट सामने आने के बाद दिल्ली सरकार के मीडिया सलाहकार नागेंद्र शर्मा ने कहा है कि उन्हें इससे बेहद निराशा हुई है। शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘प्रगतिशील दृष्टिकोण वाले एक सक्षम विधायक को बीजेपी के खेल में फंसते देखना बेहद निराशाजनक है।’
हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद जब दक्षिणपंथी संगठनों ने केजरीवाल को ट्रोल करना शुरू किया तो केजरीवाल ने इसका जवाब मंदिर जाकर हनुमान जी के दर्शन करके दिया। केजरीवाल ने दर्शन के बाद कहा था कि हनुमान जी ने उनसे कहा है कि सब अच्छा होगा और जब दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि केजरीवाल ने मंदिर को अशुद्ध कर दिया तो केजरीवाल ने इसे मुद्दा बना लिया था और कहा था कि बीजेपी वाले हनुमान चालीसा पढ़ने और मंदिर जाने पर उनका मजाक उड़ा रहे हैं। इस सबसे दिल्ली के चुनाव में इतना ज़रूर हुआ है कि केजरीवाल को शाहीन बाग़ के साथ खड़ा करने, मुसलिम परस्त बताने, आतंकवादी बताने, पाकिस्तान के साथ सहानुभूति रखने वाला बताने की दक्षिणपंथी संगठनों की तमाम कोशिशें नाकाम हो गयीं।
चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार यह कहते थे कि चार महीने के भीतर अयोध्या में भगवान राम का आसमान छूता मंदिर बनेगा। ऐसे में केजरीवाल को बीजेपी के हिंदू कार्ड की काट के लिये 'सॉफ़्ट हिंदुत्व' का सहारा लेना ही था। केजरीवाल ने 'सॉफ़्ट हिंदुत्व' को खुलकर अपनाया और इसका उन्हें फ़ायदा भी मिला।
मुसलिम इलाक़ों में नहीं की रैली
केजरीवाल समझदार सियासतदां हो गये हैं। वह जानते हैं कि बीजेपी को चुनौती देनी है तो उससे यह हिंदू वोटों की ठेकेदारी छीननी होगी। दिल्ली के चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने किसी भी मुसलिम बहुल इलाक़े में जनसभा नहीं की और न ही कोई मुसलिम नेता उनके आस-पास दिखाई दिया। चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ख़ुद को हनुमान भक्त भी बताते रहे।
केजरीवाल बीजेपी को क़तई यह मौक़ा नहीं देना चाहते थे कि वह हिंदू वोटरों के मन में उनकी मुसलिम समर्थक छवि बनाये। निश्चित रूप से केजरीवाल की इन कोशिशों ने बीजेपी के राम मंदिर पर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले और मतदान से एक दिन पहले राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाये जाने की घोषणा करके हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशों को पलीता लगा दिया।
इस बार ख़ासे सतर्क रहे केजरीवाल
जरा याद कीजिए, 2013 का दिल्ली विधानसभा चुनाव। यह 'आप' का पहला चुनाव था और केजरीवाल मुसलिम धर्म गुरू तौकीर रजा से मिलने बरेली गये थे। तब यह चर्चा ख़ूब हुई थी कि केजरीवाल दिल्ली के 14 फ़ीसदी मुसलिम मतदाताओं का समर्थन पाने के लिये बेचैन हैं। इसके बाद याद कीजिए, 2014 का लोकसभा चुनाव। तब केजरीवाल वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे। तब उनकी टोपी में हिंदी और उर्दू में नारे लिखे गये थे। 2015 में दिल्ली की जामा मसजिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से 'आप' को वोट देने की अपील की थी। जब बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया तो हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के डर से ‘आप’ ने इसे ठुकरा दिया था। लेकिन इस बार केजरीवाल इस तरह की बातों से कोसों दूर रहे।
जब केजरीवाल ने हनुमान चालीसा पढ़ी थी तो बीजेपी के खेमे में खलबली मच गई थी। दिल्ली के नतीजों के बाद बीजेपी को आगे भी इस बात का डर है कि केजरीवाल की हिंदू समर्थक छवि से उसे नुक़सान हो सकता है।
2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी की हिंदू वोटरों पर बढ़ती पकड़ को देखते हुए केजरीवाल यह समझ गये थे कि उन्हें मुसलिम समर्थक छवि का लेबल ख़ुद पर नहीं लगने देना होगा। दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा इफ़्तार पार्टियों में जाने की फ़ोटो को सोशल मीडिया में वायरल करने के बाद केजरीवाल अलर्ट हो गये थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने काम के दम पर बहुत आगे दिख रहे केजरीवाल ने बीजेपी के शाहीन बाग़ को मुद्दा बनाते ही हनुमान चालीसा पढ़ी और मंदिर जाना शुरू किया और बीजेपी को बैकफ़ुट पर ला दिया।
क्या हिंदुत्व का सहारा लेना मजबूरी?
हर मंगलवार को सुंदर कांड की घोषणा के बाद सवाल यह खड़ा होता है कि क्या भारत में हिंदुत्व को आधार बनाये बिना आप राजनीति नहीं कर सकते। क्या भारत में मुद्दों के आधार पर या विकास के एजेंडे पर राजनीति करके चुनाव जीता जाना बेहद मुश्किल हो चुका है। केजरीवाल ने बीजेपी को हराने की काट यही निकाली है कि विकास के साथ-साथ देश के बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल रखा जाये। इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी भी गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कई मंदिरों के चक्कर लगा चुके हैं। तो क्या विकास का मुद्दा बहुत पीछे छूट जाएगा और क्या हिंदू वोटों के लिये सभी राजनीतिक दल बीजेपी के जाल में फ़ंसते चले जायेंगे।
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