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दिशा रवि की गिरफ़्तारी: किसानों को डराने की कोशिश?

21 साल की दिशा रवि अदालत में रो-रोकर बता रही है कि वह सिर्फ अन्नदाता किसानों से सहानुभूति रखती है। किसान आंदोलन को मदद करना चाहती थी और इसलिए उसने टूल किट की केवल दो पंक्तियां बदली हैं। टूल किट से किसी और तरह का रिश्ता उसका नहीं है। मगर, दिशा रवि पर राजद्रोह का आरोप है। उसकी बातों पर विश्वास करने को न तो अदालत तैयार है न ही जांच एजेंसियां। पुलिस हिरासत में 5 दिन के दौरान दिशा रवि नया क्या कुछ कहती है उस पर दुनिया की नज़र रहेगी।

18 वर्षीय ग्रेटा तनबर्ग (थनबर्ग) से उम्र में बड़ी हैं दिशा। जब 2001 में आतंकी भारत के संसद परिसर में हमला कर रहे थे तब ग्रेटा तनबर्ग इस दुनिया में नहीं आयी थी। अलबत्ता दिशा रवि जरूर तब साल भर की रही होंगी। 2021 में लाल किला कांड या कहें किसान आंदोलन के वक्त ग्रेटा-दिशा अपनी ओर दुनिया का ध्यान खींच रही हैं। 

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रीट्वीट करना राजद्रोह कैसे!

दिशा रवि ग्रेटा तनबर्ग जैसी ‘खुशनसीब’ नहीं है। वह भी अगर स्वीडन में पैदा हुई होती, तो भारत सरकार की पहुंच से दूर होती। मगर, भारत सरकार की जांच एजेंसियों की जद में वे लोग क्यों नहीं आ पाए हैं जिन्होंने ग्रेटा तनबर्ग के ट्वीट को रीट्वीट किया, लाइक किया। यहां तक कि कोट (Quote) भी किया। ऐसे लोगों की तादाद लाखों में है। 

अगर दिशा रवि का ग्रेटा के ट्वीट से टूल किट को डाउनलोड करना ही अपराध है तो यह अपराध बहुतेरे पत्रकारों ने भी किया है। इनमें से खुद यह लेखक भी है। टूल किट डाउनलोड कर उसमें एक-दो वाक्य बदलने और फिर उसे रीट्वीट करने का ‘अपराध’ जरूर अतिरिक्त है। सवाल यह है कि यह अतिरिक्त पहल क्या दिशा रवि को राजद्रोह की श्रेणी में ला खड़े करती है?

ग्रेटा तनबर्ग पहला ट्वीट डिलीट कर चुकी है जिसमें 3 फरवरी को टूल किट प्रसारित किया गया था। 4 फरवरी को उसने दूसरा टूल किट ट्वीट किया। टूल किट में आंदोलन के तौर-तरीके से लेकर आंदोलन को समर्थन व सहयोग देने के तरीके भी बताए गये हैं। पुलिस लाल किला कांड में घटी घटना का इस टूल किट से कनेक्शन साबित करने में जुटी है। अगर यह कनेक्शन पाया जाता है तो माना यह जाएगा कि भारत में अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले लोगों ने ग्रेटा तनबर्ग का इस्तेमाल किया। 

पॉप सिंगर रेहाना के ट्वीट के बारे में भी यही कहा जा रहा है कि उसने खालिस्तान का समर्थन करने वाले संगठन से पैसे लेकर ट्वीट किए।

अगर पुलिस की अंतरराष्ट्रीय साजिश की थ्योरी सही है तो सबसे पहले पुलिस के हाथ ग्रेटा तनबर्ग, रिहाना जैसी हस्तियों के साथ-साथ उस संगठन तक पहुंचने चाहिए जो इस पूरी घटना का मास्टर माइंड है। मगर, इस दिशा में पुलिस के कदम बढ़ते नहीं दिख रहे हैं।

ख़ौफ पैदा करने की कोशिश

भारतीय जांच एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को सबसे आसान दिशा रवि जैसी छात्रा को गिरफ्तार करना लगता है। अब वे सारे किसान आंदोलन समर्थक डर के साए में जी रहे हैं जिन्होंने ग्रेटा तनबर्ग का ट्वीट रीट्वीट, लाइक या कोट किया। या फिर जिन्होंने रेहाना के भी ट्वीट को पसंद किया या आगे बढ़ाया। किसान आंदोलन पर ख़ौफ पैदा करने का यह बहुत सस्ता, आसान तरीका है जिसे पुलिस अपना रही है।

अगर पुलिस लाल किला कांड के अंतरराष्ट्रीय साजिश या किसानों के आंदोलन की आड़ में भारत में अस्थिरता फैलाने की वैश्विक साजिश की थ्योरी पर यकीन करती है तो उसे अब तक कम से कम कुछ कदम जरूर उठा लेने चाहिए थे -

  • ग्रेटा तनबर्ग के बारे में स्वीडन सरकार से बातचीत।
  • खालिस्तान समर्थक पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन पर कार्रवाई के लिए कनाडा सरकार से आग्रह। 

लेकिन ऐसी कोशिश नहीं दिखी है। इसके बजाए भारत में किसान समर्थक लोगों पर राजद्रोह का केस लगाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। इससे पुलिस की पूरी कवायद और सरकार की मंशा ही सवालों के घेरे में आ जाती है।

activist disha ravi arrested - Satya Hindi

पुलिस की भूमिका पर संदेह

दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय की भूमिका लाल किला कांड मामले में संदिग्ध रही है। 26 जनवरी को लाल किले पर झंडा फहराने की अपील कनाडा में सक्रिय खालिस्तान समर्थक संगठन पीजेएफ ने की थी। फिर भी लाल किले की सुरक्षा नहीं की गयी। वहां आंदोलनकारियों के वेष में या फिर आंदोलनकारियों को गुमराह कर उपद्रवी पहुंच गये। 

किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो- 

दिल्ली की सीमा से इन उपद्रवियों का लाल किले तक पहुंचना, लाल किले पर चढ़ना, धार्मिक झंडे फहराना और फिर सुरक्षित निकल जाना, ऐसी घटनाएं हैं जिसमें दिल्ली पुलिस की भूमिका खुद संदिग्ध हो जाती है।

  • आखिर लाल किले पर वे कौन अधिकारी थे जो निर्देश दे रहे थे? 
  • दिल्ली पुलिस को बेबस हाल में पहुंचाने के जिम्मेदार कौन लोग हैं?
  • पुलिस के जवान मार खाते रहे और वे एक्शन नहीं ले सके- इसका जिम्मेदार निर्णय ले रहे अधिकारी ही हैं।
  • ऐसे अधिकारियों को निर्णय लेने से कौन रोक रहा था?

इन सवालों से अलग सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लाल किला कांड का सबसे ज्यादा फायदा दो ही तरह के लोगों को हुआ- एक उन्हें जो भारत सरकार को नीचा दिखाना चाहते थे और दूसरा वे लोग जो आंदोलन को बदनाम करना चाहते थे। दोनों ही तरह के लोगों की मंशा लाल किला कांड के बाद पूरी हुई। 

इसका पूरा इस्तेमाल आंदोलनकारियों के विरुद्ध हुआ। सैकड़ों बेगुनाह किसानों को जेल में बंद कर दिया गया। दीप सिद्धू जैसे इक्के-दुक्के लोगों को पकड़ने में पुलिस ने 8 से 10 दिन लगा दिए। यह देरी भी इसलिए संदिग्ध है क्योंकि दीप सिद्धू इस दौरान लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय रहा।

आंदोलनकारियों में दहशत

दीप सिद्धू की गिरफ्तारी के बाद से लगातार आंदोलनकारी नेताओं में दहशत है कि उसके मुंह से किसी भी नेता का नाम निकलने का मतलब उस नेता की गिरफ्तारी होगी। इस तरह दीप सिद्धू लाल किले कांड का आरोपी जरूर है लेकिन वह वास्तव में आंदोलनकारियों पर बरसने वाला सरकारी बम बन चुका है। 

दिशा रवि के बाद अब पुलिस उन लोगों को भी खोज सकती है जिसने ग्रेटा तनबर्ग के ट्वीट को आगे बढ़ाया और जिनके संबंध किसान आंदोलन या आंदोलनकारियों से हैं। ऐसा हो या न हो, लेकिन इस बात की आशंका किसान आंदोलनकारियों को सताने लगी है।

पत्रकारों पर मुक़दमे

ट्रैक्टर पलटने वाली घटना का सच सामने नहीं आए, इसके लिए भी राजद्रोह की धाराओं का इस्तेमाल हुआ। एक ही ट्वीट और उसे रीट्वीट करने वाले पत्रकारों पर राजद्रोह का मुकदमा लाद दिया गया। अब कोई सवाल नहीं उठा सकता कि पुलिस की गोली लगने से ट्रैक्टर पलटा और सिख नौजवान की मौत हुई या फिर सिर्फ ट्रैक्टर पलटने के कारण ऐसा हुआ। 

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अंतिम सच मानकर राजद्रोह का मुकदमा स्थापित कर दिया गया। मगर, चश्मदीद और मृतक के परिजनों की बातों की भी अहमियत है जो गोली लगने का दावा कर रहे हैं। कब और कैसे उनकी सुनवाई होगी?

सच सामने आना ज़रूरी

किसान आंदोलन को बदनाम करने से लेकर इसे कमजोर करने तक की कोशिशें लगातार चल रही हैं, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। ऐसे में अच्छा होता अगर अदालत की निगरानी में पूरी जांच होती या फिर संयुक्त संसदीय समिति लाल किले कांड की जांच करती। दिल्ली पुलिस की भूमिका की जांच किए बगैर लाल किला कांड का सच सामने नहीं आ सकता। 

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प्रेम कुमार

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