जिस गति से कोरोना की वैक्सीन बनाने की क्षमता सीरम इंस्टीट्यूट के पास है, कंपनी शायद उस गति से वैक्सीन नहीं बना पाए। सीरम इंस्टीट्यूट के मुखिया अदार पूनावाला के एक बयान से ही यह लगता है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका एक ऐसा नियम लागू करने वाला है कि कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए अमेरिका से आयात किए जाने वाले सामान पर रोक लग जाएगी और तब वैक्सीन उस तेज़ी से बनाना मुश्किल हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख वैज्ञानिक को भी यह चिंता सता रही है। कोरोना संक्रमण के कारण वैक्सीन की ज़रूरत पूरी दुनिया को है। सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में बनने वाली वैक्सीन की 60 फ़ीसदी भारत में ही बनती हैं।
मामला यह है कि सीरम इंस्टीट्यूट दो कंपनियों के लिए वैक्सीन बना रहा है। एक है एस्ट्राज़ेनेका और दूसरी है नोवावैक्स। सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला ने विश्व बैंक के एक पैनल को कहा है कि एक अमेरिकी क़ानून बैग और फिल्टर सहित कुछ प्रमुख सामानों के निर्यात को बाधित कर रहा है उससे नोवावैक्स बनाने में गंभीर अड़चनें पैदा होंगी।
वैक्सीन बनाने के लिए ज़रूरी सामानों की आपूर्ति में तब बाधा पड़ने लगी जब बाइडन प्रशासन ने फ़ाइजर के टीकों के लिए आपूर्ति बढ़ाने के लिए क़दम उठाए। ये क़दम रक्षा उत्पादन अधिनियम का उपयोग करने की घोषणा के रूप में हैं। इसी के बाद आपूर्ति में बाधा की चिंताएँ उपजीं। रक्षा उत्पादन अधिनियम के तहत ज़रूरी सामान के निर्यात पर पाबंदी लगाई जाती है।
बाइडन प्रशासन ने ये क़दम इसलिए उठाए कि फ़ाइज़र को वैक्सीन ज़्यादा बनाने के लिए आसानी से सामान उपलब्ध हो।
पिछले साल फ़ाइजर अपने उत्पादन लक्ष्यों से पीछे रह गई थी क्योंकि इस अमेरिकी कंपनी को उन सभी सामग्रियों को हासिल करने में कठिनाइयाँ हुईं। फ़ाइजर को बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए यह ज़रूरी था।
अमेरिका दुनिया में सबसे ज़्यादा कोरोना से प्रभावित देश है। कोरोना संक्रमण फ़ैलने के शुरुआती दिनों में इसको तवज्जो नहीं देने वाले पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अपने देश के लिए दवाएँ हथियाने में जुट गए थे। उस दौरान जब यह कहा गया था कि मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा कारगर हो रही है तो उन्होंने मलेरिया की दवा जमा कर ली थी और जब कोरोना वैक्सीन बन गई तो उन्होंने बड़ी मात्रा में वैक्सीन पहले ही बुक कर ली। अब जो बाइडन राष्ट्रपति बने हैं तो उनका सबसे ज़्यादा जोर कोरोना को रोकने पर है। और इसी बीच बाइडन प्रशासन ने फ़ाइजर वैक्सीन में तेज़ी लाने के लिए इससे जुड़े सामानों के निर्यात पर पाबंदी की घोषणा की है।
इसी पर आपत्ति की जा रही है। ‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार, अदार पूनावाला ने कहा, ‘नोवावैक्स वैक्सीन, जिसका हम एक प्रमुख निर्माता हैं, को इन चीजों की ज़रूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर हम दुनिया भर में निर्माण क्षमता के बारे में बात कर रहे हैं तो इन महत्वपूर्ण कच्चे माल की साझेदारी एक महत्वपूर्ण बाधा का कारण बनने जा रही है- कोई भी अब तक इसका समाधान नहीं कर सका है।’
पूनावाला ने कहा कि यह एक ऐसी चीज है जिसके बारे में समझाने के लिए बाइडन प्रशासन के साथ कुछ चर्चा की ज़रूरत होगी। उन्होंने कहा, ‘हम टीकों को मुफ्त वैश्विक पहुँच होने के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन अगर हम कच्चे माल को अमेरिका से बाहर नहीं निकाल सकते हैं तो यह एक गंभीर बाधा बनने वाली है।’
डब्ल्यूएचओ की सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि ऐसी कंपनियों को शीशियों, कांच, प्लास्टिक और स्टॉपर्स की कमी है।
स्वामीनाथन ने कहा, ‘ऐसे उत्पादों की कमी है जिनकी टीकों के निर्माण के लिए ज़रूरत है। यहीं पर निर्यात प्रतिबंध नहीं करने के लिए वैश्विक समझौते और समन्वय की आवश्यकता है।’
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ के वैक्सीन साझेदार, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड एसोसिएशन और डेवलपिंग कंट्रीज वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स नेटवर्क, उन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अगले सप्ताह सोमवार और मंगलवार को बैठक करेंगे।
इस बीच पूनावाला ने कहा कि जनवरी में आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ने पिछले दो महीनों में एस्ट्राज़ेनेका के टीके की 9 करोड़ खुराक 51 देशों को वितरित की है।
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