loader

लव जिहाद पर योगी सरकार को इलाहाबाद हाई कोर्ट से झटका

लव जिहाद को लेकर शोर मचा रही बीजेपी शासित राज्य सरकारों को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक ताज़ा फ़ैसले को ज़रूर पढ़ना चाहिए। मुसलिम युवक और हिंदू युवती की शादी के एक मामले में अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों के बाद लव जिहाद को लेकर क़ानून लाने को लेकर मची होड़ ख़त्म होने की उम्मीद की जानी चाहिए। 

क्या है मामला?

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले मुसलिम युवक सलामत अंसारी और हिंदू युवती प्रियंका खरवार ने पिछले साल अगस्त के महीने में प्रेम विवाह किया था। प्रियंका ने शादी से पहले इसलाम कबूल करके अपना नाम आलिया रख लिया था। पिछले साल अगस्त में ही प्रियंका के घर वालों ने सलामत के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई थी। 

ताज़ा ख़बरें
एफ़आईआर में उन्होंने कहा था कि सलामत ने उनकी बेटी का अपहरण किया और उसे शादी करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने यह भी कहा था कि उस वक़्त उनकी बेटी नाबालिग थी, इसलिए एफ़आईआर में सलामत के ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं। मामला अदालत के पास पहुंचा और इस महीने की 11 नवंबर को इस पर सुनवाई हुई। सलामत और प्रियंका ने इस एफ़आईआर को चुनौती दी थी। 
देश से और ख़बरें

विवेक अग्रवाल और पंकज नक़वी की बेंच ने प्रियंका और सलामत का पक्ष और दूसरी ओर से उत्तर प्रदेश सरकार और प्रियंका के परिवार की दलीलों को सुना। अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, ‘हम प्रियंका और सलामत को हिंदू और मुसलमान के रूप में नहीं देखते बल्कि दो ऐसे युवाओं की तरह देखते हैं जो अपनी इच्छा से जीना चाहते हैं और पिछले एक साल से ख़ुशी-ख़ुशी साथ रह रहे हैं।’

अदालत ने कहा, ‘किसी के व्यक्तिगत रिश्तों में दख़ल देना उनकी आज़ादी में गंभीर अतिक्रमण होगा। महिला या पुरूष का किसी भी शख़्स के साथ रहने का अधिकार उनके धर्म से अलग उनके जीवन और व्यक्तिगत आज़ादी के अधिकार में ही निहित है।’ 

एफ़आईआर रद्द करने के आदेश 

अदालत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी शख़्स के जीवन और उसकी आज़ादी के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती। अदालत ने अपने आदेश में सलामत के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करने के आदेश दिए हैं और उत्तर प्रदेश सरकार और प्रियंका के परिवार की दलीलों को खारिज कर दिया। 

पहले के दो फ़ैसलों पर लगाई रोक 

इस बेंच ने ऐसे ही दो अन्य मामलों में पहले दिए गए फ़ैसलों को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी और इन पर रोक लगा दी। इसमें से एक मामला नूर जहां (2014) का था जबकि दूसरा प्रियांशी (सितंबर, 2020) का। नूर जहां के मामले में पांच युगल जोड़ों ने अंतर धार्मिक विवाह करने के बाद सुरक्षा मांगी थी। हाई कोर्ट की किसी बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। 

जबकि दूसरे मामले में प्रेमी युगल ने शादी के तीन महीने के बाद सुरक्षा मांगी थी। अदालत ने इस मामले में यह कहते हुए दख़ल देने से इनकार कर दिया था कि सिर्फ़ शादी के लिए धर्म बदलने को स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

लेकिन विवेक अग्रवाल और पंकज नक़वी की बेंच ने कहा, ‘ये दोनों ही फ़ैसले दो व्यस्कों के उनके अपना जीवन साथी चुनने और उनके आज़ादी से रहने के अधिकार के मसले का हल नहीं करते हैं।’ 

देखिए, लव जिहाद के विषय पर चर्चा-

यहां पर साल 2009 में केरल हाई कोर्ट के एक फ़ैसले का जिक्र करना ज़रूरी होगा। हाई कोर्ट ने केरल में लव जिहाद के मामलों के शोर के बीच अपने एक फ़ैसले में कहा था कि हमारे समाज में ‘अंतर-धार्मिक’ विवाह होना सामान्य बात है और इसे आपराधिक कृत्य नहीं कहा जा सकता।

भारत सरकार भी इस साल फरवरी में संसद में कह चुकी है कि लव जिहाद नाम का शब्द मौजूदा नियमों के तहत परिभाषित नहीं है और न ही केंद्रीय एजेंसियों के सामने लव जिहाद का कोई मामला आया है। इसके बाद अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में स्पष्ट किया है कि दो व्यस्क अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं और उनके जीवन और आज़ादी के अधिकार में किसी भी तीसरे पक्ष को दख़ल नहीं देना चाहिए। 

हालिया दिनों में बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक की सरकारों ने कहा है कि वे लव जिहाद पर क़ानून बनाएंगी। उत्तर प्रदेश सरकार इतनी जल्दी में है कि वह इस पर अध्यादेश ला रही है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें