इतिहास को बदलने की बात बीजेपी ने फिर से दोहराई है। इस बार यह बात ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह ने कही है। उन्होंने कहा कि इतिहास को भारत के दृष्टिकोण से लिखे जाने की ज़रूरत है। इसी दौरान उन्होंने कहा कि यदि वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई को सिर्फ़ एक विद्रोह माना गया होता।
बीजेपी लंबे समय से इतिहास के पन्नों को बदलना चाहती है। पार्टी को लगता है कि कुछ ऐसे लोग रहे हैं जिनको सही परिप्रेक्ष्य में पेश नहीं किया गया। सावरकर का ही नाम लें। उनका नाम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्ज है जिन्होंने पहले तो आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा लिया लेकिन काला पानी की सज़ा होने के बाद अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगी और फिर वह आज़ादी की लड़ाई से पूरी तरह अलग हो गए। इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि उन्होंने हिंदू-मुसलिम के बीच विभाजन का काम किया। जबकि बीजेपी का मानना रहा है कि सावरकर शुरू से लेकर आख़िर तक आज़ादी की लड़ाई में जुटे रहे। यही बात बीजेपी को सालती रही है।
अमित शाह की यह टिप्पणी महाराष्ट्र बीजेपी इकाई द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में सावरकर को ‘भारत रत्न’ दिलाने की माँग किए जाने के दो दिनों के बाद आई है। पिछले दो दिन से चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी भी इसी बात पर सावरकर का ज़िक्र करते रहे हैं और उनकी तारीफ़ करते रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बुधवार को महाराष्ट्र के आकोला में चुनावी सभा में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था, 'ये वीर सावरकर के ही संस्कार हैं कि राष्ट्रवाद को हमने राष्ट्र निर्माण के मूल में रखा है। ये वे लोग हैं जिन्होंने बाबा साहेब आम्बेडकर का क़दम-क़दम पर अपमान किया, उनको दशकों तक ‘भारत रत्न’ से वंचित रखा। ये वे लोग हैं जो वीर सावरकर को आए दिन गालियाँ देते हैं उनका अपमान करते हैं।'
क्या कहा गृह मंत्री ने?
प्रधानमंत्री मोदी के ऐसे ही चुनावी भाषणों के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने भी इतिहास को फिर से लिखने की बात कही है। हालाँकि शाह किसी चुनावी सभा में नहीं बोल रहे थे, बल्कि वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ‘गुप्तवंशक-वीर: स्कंदगुप्त विक्रमादित्य’ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे।
शाह ने कहा, ‘यह सावरकर थे जिन्होंने 1857 की 'क्रांति' को 'स्वतंत्रता का पहला संग्राम' नाम दिया था, नहीं तो हमारे बच्चे इसे एक विद्रोह के रूप में जानते।’
श्रोताओं में प्रसिद्ध इतिहासकारों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरा सभी से अनुरोध है कि भारत के दृष्टिकोण से भारतीय इतिहास को फिर से लिखा जाए, लेकिन बिना किसी को दोषी ठहराए।’ शाह द्वारा दोषी ठहराए जाने का ज़िक्र करने का क्या मतलब है? क्या वह उसी बात को नहीं कह रहे थे जो प्रधानमंत्री चुनावी सभा में विपक्ष के बारे में कह रहे थे कि ये वही लोग हैं जो सावरकर को गालियाँ देते हैं। गृह मंत्री का इशारों में ही शायद यह कहना था कि सावरकर को इतिहास के पन्नों में ग़लत संदर्भ में पेश किया गया है और अब इसमें बदलाव करने का समय है।
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यह हमारा दायित्व है कि हम अपना इतिहास लिखें, हम अंग्रेज़ों को कब तक दोष देते रहेंगे? उन्होंने आगे कहा कि हमें किसी से विवाद नहीं करना है, केवल वही लिखें जो सत्य है और यह समय की कसौटी पर खरा उतरेगा।
अमित शाह, गृह मंत्री
टीपू सुल्तान विवाद: बीजेपी ने कहा था, इतिहास बदलेंगे
यह पहला मौक़ा नहीं है जब इतिहास को फिर से लिखने की बात बीजेपी के नेता कह रहे हैं। समय-समय पर अलग-अलग नेता ऐसी बात कहते रहे हैं। अक्टूबर 2017 में ही बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी ऐसी ही बात कही थी। तब टीपू सुल्तान को लेकर विवाद चल रहा था। उन्होंने कहा था कि टीपू सुल्तान के ऐतिहासिक किरदार पर बहस होनी चाहिए। विजयवर्गीय ने यह बयान ऐसे समय में दिया था जब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की तरफ़ से 10 नवम्बर को टीपू सुल्तान जयंती मनाने की कवायद को लेकर सियासत तेज़ हो रही थी। तब बीजेपी के एक अन्य नेता अनंत कुमार हेगड़े ने मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू के ‘महिमामंडन’ का विरोध करते हुए कर्नाटक सरकार से कहा था कि वह उन्हें टीपू सुल्तान जयंती के 'शर्मनाक' कार्यक्रम में नहीं बुलाए।
विजयवर्गीय ने कहा था कि देश के इतिहास को ठीक तरह से नहीं लिखा गया। उन्होंने कहा था, ‘देश का इतिहास लिखने वाले कहीं न कहीं अंग्रेज़ों के ग़ुलाम रहे हैं। उन्होंने जान-बूझकर ऐसा इतिहास लिखा कि हमें अपने महापुरुषों पर गर्व नहीं हो सके, जैसे महाराणा प्रताप और अकबर समकालीन थे। इतिहास में अकबर को तो महान बता दिया गया। लेकिन देश की संस्कृति की रक्षा के लिए जंगलों में रहकर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप को महान नहीं कहा गया।’
सुब्रमण्यम स्वामी ने क्या कहा था?
जुलाई 2015 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में दोबारा लिखने की ज़रूरत है ताकि भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर सके। स्वामी ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जन्म दिवस के मौक़े पर कहा था कि यदि भारत को अगले कुछ दशकों में एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरना है तो इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में लिखे जाने की ज़रूरत है ताकि युवा पीढ़ी विकृत इतिहास के ज़रिए थोपे गए अपने निम्न स्तर के स्वाभिमान से छुटकारा पा सके।
पिछले लगभग ढाई दशक से भारतीय इतिहास के फिर से लिखे जाने को लेकर बहस चल रही है। तो गृह मंत्री के रूप में अमित शाह के बयान के बाद अब फिर सवाल वही है कि क्या इतिहास को फिर से लिखे जाने की तैयारी चल रही है? और यदि इसे फिर से लिखा जाता है तो इसमें क्या बदलाव होंगे? क्या सावरकर को अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगने वाले के रूप में नहीं पेश किया जाएगा और सिर्फ़ आज़ादी की लड़ाई में शुरुआती दिनों के उनके योगदान का ज़िक्र होगा?
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