मंगलवार को केरल कांग्रेस के पांच सांसदों की ओर से सरकार से सवाल पूछा गया कि क्या सरकार इस बात को मानती है कि अंतरधार्मिक शादियों की वजह से जबरन धर्मांतरण हो रहा है और क्या वह इन्हें रोकने के लिए कोई क़ानून ला रही है।
इसके जवाब में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा, ‘संविधान के सातवें अनुच्छेद के मुताबिक़ सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस राज्य के विषय हैं। इसलिए धर्मांतरण से संबंधित अपराधों को रोकना, इनके बारे में पता लगाना, इनको दर्ज करना, जांच करना और अभियोजन का काम राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन का है।’ उन्होंने कहा कि जब किसी तरह का उल्लंघन होता है तो एजेंसियां क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई करती हैं।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश- 2020 के नाम से क़ानून लाई है तो मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 2020 नाम से। इन क़ानूनों का मक़सद है ‘लव जिहाद’ को रोकना लेकिन इनमें ‘लव जिहाद’ शब्द का जिक्र तक नहीं है। इसके अलावा असम, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक की बीजेपी सरकारों ने भी ऐसे ही क़ानूनों को लाने का एलान किया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘लव जिहाद’ को लेकर कहते हैं कि इसमें शामिल अभियुक्तों की ‘राम नाम सत्य है’ की यात्रा निकाली जाएगी। बीजेपी और आरएसएस के लोग भी प्रचार करते हैं कि मुसलमान युवक हिन्दू लड़कियों से ‘लव’ के बहाने शादी कर ‘जिहाद’ चला रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में इस क़ानून के लागू होने के बाद कई ऐसे मामले सामने आए जिसमें पुलिस ने बीच में पहुंचकर शादियों को रुकवा दिया। कई बार तो उसने दो समान धर्मों में हो रही शादियों को ही रुकवा दिया और लोगों का उत्पीड़न किया।
मुरादाबाद का मामला
कुछ महीने पहले दक्षिणपंथी संगठन बजरंग दल ने मुरादाबाद में अंतरधार्मिक शादी करने वाले जोड़े को धमकाया था। पुलिस ने मुसलिम युवक को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया था क्योंकि उसकी शादी एक हिंदू लड़की से हो चुकी थी। युवक के भाई को भी गिरफ़्तार किया गया था। जबकि लड़की ने बजरंग दल के लोगों से कहा था कि उसकी शादी को 5 महीने हो चुके हैं और उसने अपनी मर्जी से शादी की है।
लखनऊ में रुकवाई शादी
इससे पहले पुलिस ने लखनऊ में एक अंतरधार्मिक शादी को रुकवा दिया था, इस मामले में पुलिस दोनों पक्षों को पुलिस स्टेशन ले गई थी। पुलिस ने कहा था कि वे लखनऊ के डीएम द्वारा दी गई अनुमति को दिखाएं। क्योंकि योगी सरकार के नए क़ानून में कहा गया है कि ऐसी शादी के बाद धर्मांतरण के लिए दो महीने पहले डीएम को जानकारी देनी होगी।
हाई कोर्ट की फटकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने कहा था कि किसी व्यक्ति का किसी मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का फ़ैसला नितांत रूप से उसका निजी मामला है। इस अधिकार का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गये जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
इसके बाद कुछ अन्य अदालतों ने भी अंतरधार्मिक विवाहों को रोकने के मक़सद से लाए जा रहे क़ानूनों को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी की थी। क़ानून के जानकारों ने भी इन क़ानूनों को संविधान के ख़िलाफ़ बताया था।
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