राम मंदिर और बाबरी मसजिद ज़मीन विवाद पर हर रोज़ सुनवाई शुरू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से ज़मीन पर अधिकार होने का दस्तावेज़ी सबूत माँगा। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि क्या आपके पास एटैचमेंट से पहले रामजन्मभूमि के कब्ज़े का मौखिक या दस्तावेज़ी प्रमाण या फिर राजस्व रिकॉर्ड है? इस सवाल के जवाब में अखाड़ा ने कहा कि 1982 में एक डकैती हुई थी और इसमें उन्होंने रिकॉर्ड खो दिया। हालाँकि, निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने यह भी कहा कि इलाहाबाद (हाई कोर्ट) जजमेंट में दस्तावेज़ को कोट यानी ज़िक्र किया गया है। बता दें कि कोर्ट में हर रोज़ की सुनवाई तब शुरू हुई है जब मध्स्थता की हर कोशिश विफल हो गई, क्योंकि कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं है। इस विवाद को सुलझाने के लिए बनाए गए मध्यस्थता पैनल ने कुछ दिन पहले अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी। इसके बाद कोर्ट ने कहा था कि अब इस मामले में हर दिन सुनवाई होगी।
Ayodhya land case: SC asks Nirmohi Akhara for documentary evidence to prove its possession, says,'Do you have oral or documentary proof, revenue records, of possession of Ramjanmabhoomi before attachment. Akhara in reply to Court,' a dacoity happened in 1982&they lost records.' https://t.co/mDIbQcO2Iz
— ANI (@ANI) August 7, 2019
इससे पहले मंगलवार को इस मुद्दे पर पहले दिन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व बीजेपी नेता केएन गोविंदाचार्य की इस मामले की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की माँग को ख़ारिज़ कर दिया था। इससे पहले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि हम इस मामले के विभिन्न पहलुओं पर ग़ौर करेंगे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी पक्ष के वकील अपने-अपने मामलों से संबंधित दस्तावेज़ तैयार कर लें जिन्हें आधार बनाकर वे बहस करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में यह सुनवाई चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में समाधान के लिए इसी साल 8 मार्च को मध्यस्थों की एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस एफ़. एम. कलीफ़ुल्ला (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाँचू को भी शामिल किया गया था। समिति ने मामले की मध्यस्थता को लेकर रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी। समिति ने सभी पक्षों से कहा था कि वे इसकी गोपनीयता को बनाये रखें।
मध्यस्थता और बातचीत के ज़रिए अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिशें पहले भी कई बार हुईं हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 3 अगस्त, 2010 को सुनवाई के बाद सभी पक्षों के वकीलों को बुला कर यह प्रस्ताव रखा था कि बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की जाए। लेकिन हिन्दू पक्ष ने बातचीत से मामला सुलझाने की पेशकश को खारिज कर दिया था।
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