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सभी बैंकों का निजीकरण नहीं होगा, कर्मचारियों का रखेंगे ख़्याल: निर्मला

निजीकरण के ख़िलाफ़ दो दिन की हड़ताल पर गए लाखों बैंक कर्मचारियों के तेवरों से केंद्र की सरकार डरती दिख रही है। बैंक कर्मचारियों को मनाने की कोशिश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को भरोसा दिलाया है कि सभी बैंकों का निजीकरण नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिन बैंकों का भी निजीकरण होगा, उनके कर्मचारियों के हितों को संरक्षित किया जाएगा। बैंक कर्मचारियों की हड़ताल में नौ संगठन शामिल हैं। 

हड़ताल की सबसे बड़ी वजह केंद्र सरकार का यह एलान है कि वो आईडीबीआई बैंक के अलावा दो और सरकारी बैंकों का निजीकरण करने जा रही है।

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नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेन्स में वित्त मंत्री ने कहा, “निजीकरण का फ़ैसला काफी सोच-विचार के बाद लिया गया है। हम चाहते हैं कि बैंक को ज़्यादा इक्विटी मिले और वे देश की आकांक्षाओं पर ख़रे उतरें।” 

उन्होंने कहा कि किसी भी क़ीमत पर बैंकों के कर्मचारियों के हितों की हिफ़ाजत की जाएगी और पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइज पॉलिसी बहुत साफ कहती है कि निजी क्षेत्रों के बैंक चलते रहेंगे। 

Bank employees on strike 2021 against privatization - Satya Hindi

कर्मचारियों की हड़ताल के बीच शनिवार और रविवार को देश भर के बैंक बंद रहे और इस वजह से दफ़्तरों के कामकाज पर भी ख़ासा असर पड़ा। स्वाभाविक रूप से आम लोगों को इस वजह से ख़ासी परेशानी झेलनी पड़ी। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में एलान किया है कि इसी साल दो सरकारी बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण किया जाएगा। इससे पहले आईडीबीआई बैंक को बेचने का काम चल रहा है और जीवन बीमा निगम में हिस्सेदारी बेचने का एलान तो पिछले साल के बजट में ही हो चुका था। 

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चार बैंक बेचने की तैयारी 

केंद्र सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया है कि वो कौन से बैंकों में अपनी पूरी हिस्सेदारी या कुछ हिस्सा बेचने वाली है। लेकिन ऐसी चर्चा जोरों पर है कि सरकार चार बैंक बेचने की तैयारी कर रही है। इनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज़ बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के नाम लिए जा रहे हैं। इन नामों की औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन इन चार बैंकों के लगभग एक लाख तीस हज़ार कर्मचारियों के साथ ही दूसरे सरकारी बैंकों में भी इस चर्चा से खलबली मची हुई है।

सरकार एक लंबी योजना पर काम कर रही है जिसके तहत पिछले कुछ सालों में सरकारी बैंकों की गिनती अठाइस से कम करके बारह तक पहुंचा दी गई है। इनको भी वो और तेजी से घटाना चाहती है। कुछ कमजोर बैंकों को दूसरे बड़े बैंकों के साथ मिला दिया जाए और बाकी को बेच दिया जाए। 

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क़मर वहीद नक़वी

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