केंद्र सरकार की जन-विरोधी नितियों के ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियनों के 24 घंटे के भारत बंद का आंशिक असर ही देखने को मिला। देश के अलग-अलग हिस्से में कई जगहों पर परिवहन व्यवस्था प्रभावित हुई, कारखानों में उत्पादन ठप हुआ, सरकारी दफ़्तरों में कामकाज कम हुआ या नहीं हुआ। दिल्ली और इसके आसपास के इलाक़ों में असर नहीं देखा गया। लेकिन पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और तमिलनाडु में भारत बंद का व्यापक असर देखा गया।
कौन लोग थे बंद के पीछे?
ट्रेड यूनियनों के केंद्रीय संगठनों सीटू, एटक, इंटक, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एसईडब्लूए, एआईसीसीटीयू, एलपीफ़, यूटीयूसी और एचएमएस ने बीते साल सितंबर महीने में भारत बंद का एलान किया था।इस बंद की अपील उद्योग व व्यापार से जुड़ी केंद्र सरकार की नीतियाँ, श्रम-सुधार, कृषि के प्रति सरकार की उदासीनता जैसे मुद्दों पर की गई थी। बाद में इसमें नागरिकता क़ानून, एनआरसी, शिक्षा का व्यवसायीकरण, जेएनयू में फ़ीस बढ़ोतरी जैसे मुद्दे भी जोड़ दिए गए।
कई साल बाद इस तरह का बंद किया गया, लेकिन इसका ख़ास असर नहीं दिखा। इसकी एक वजह यह भी है कि ज़्यादातर जगहों पर बीजेपी की सरकार है और बंद उसकी नीतियों के ही ख़िलाफ़ की गई थी।
ट्रेनें रोकी गईं
लेकिन पश्चिम बंगाल में कई जगहों पर बंद का असर देखा गया। प्रदर्शन हुए, लोग धरने पर बैठे, सड़क जाम किया गया, ट्रेनें रोकी गईं। कई जगहों पर परिवहन व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुआ। कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। कुछ जगहों पर रेल लाइनों पर देशी बम फेंके गए।ऑल इंडिया बैंक इमप्लाइज एसोसिएशन ने कहा कि तमाम वाणिज्यिक बैंक बंद रहे। लेकिन एटीएम खुले रहे। कुछ जगहों पर लोगों ने एटीएम के बाहर धरना दिया। एसोसिएशन ने दावा किया है कि तकरीबन 28 लाख चेक क्लीयरेंस के लिए नहीं भेजे गए। इनका कुल मूल्य 21,000 करोड़ रुपये है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कांग्रेस और सीपीआईएम की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि जिन दलों का राज्य में कोई अस्तित्व नहीं है, वे बंद करवा रहे हैं।
पंजाब और हरियाणा में कई जगहों पर सड़कें जाम रही, रेल यातायात प्रभावित हुआ। अमृतसर, लुधियाना, नवांशहर, रूपनगर और कपूरथला में बंद का असर देखा गया। चंडीगढ़ में बैंक बंद रहे, परिवहन प्रभावित हुआ। इसी तरह त्रिपुरा में भी बंद का व्यापक असर देखा गया।
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