तमिलनाडु के तिरुचि ज़िले में एक बोरवेल में गिरने से दो वर्षीय सुजीत विल्सन की मौत की घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि देश में निचले स्तर तक भ्रष्टाचार व्याप्त है और भू-जल संरक्षण के बारे में न्यायिक निर्देशों के बावजूद हम सुधरने या सुरक्षा के उपाय करने के प्रति गंभीर नहीं हैं।
सुजीत से पहले इसी साल जून में पंजाब के संगरूर में दो साल के फतेहवीर सिंह की मौत इसी तरह बोरवेल में गिरने से हो गयी थी। इससे पहले मार्च के महीने में हरियाणा के हिसार में एक साल का बच्चा बोरवेल में गिर गया था, लेकिन उसे नेशनल डिजास्टर रिलीफ़ फ़ोर्स यानी एनडीआरएफ़ और प्रशासन से मुस्तैती से काम करते हुये सकुशल बाहर निकाल लिया था।
निजी कुएं
पिछले कुछ सालों में बेकार हो चुके इन बोरवेल में बच्चों के साथ साथ वयस्कों के गिरकर जान गंवाने की घटनाएँ बढी हैं। ये बोरवेल सरकारी नहीं होते हैं। यदि ये सरकारी नहीं हैं तो सवाल उठता है कि खेतों में इन्हें खोदने की अनुमति किसने दी? यदि प्रशासन ने इसकी अनुमति दी थी तो फिर यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया गया कि ठेकेदार बेकार हो गये बोरवेल को ठीक से बंद करें, ताकि कोई हादसा नहीं हो।देश के कई राज्यों में भूजल स्तर में तेजी से हो रही गिरावट और ग़ैरकानूनी तरीके से भूजल के दोहन की गतिविधियों से चिंतित उच्चतम न्यायालय के दिसंबर, 1996 के निर्देश पर पर्यावरण संरक्षण कानून के अंतर्गत केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। इस प्राधिकरण को व्यापक अधिकार प्राप्त हैं। प्राधिकरण को देश में भूजल के विकास और प्रबंधन को नियमित करने के साथ ही इस बारे में आवश्यक निर्देश जारी करने का अधिकार दिया गया था।
भूजल दोहन
पर्यावरण संरक्षण कानून की धारा 5 के तहत केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण ग़ैरक़ानूनी तरीके से भूजल का दोहन रोकने के लिए जिलाधिकारियों के मार्फत कार्रवाई करता है। इस प्रावधान के तहत प्रशासन को ग़ैरक़ानूनी तरीके से चल रहे ट्यूबवेल और ड्रिंलिंग मशीनों को जब्त करने तथा बिजली के कनेक्शन काटने का अधिकार प्राप्त है।केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण के गठन के बाद कई राज्यों ने अपने यहाँ जल संरक्षण के लिए क़ानून भी बनाए हैं।
लेकिन इसके बावजूद प्रशासन की ढिलाई की वजह से कई राज्यों में पानी की तलाश में ग़ैरक़ानूनी तरीके से बोरवेल की खुदाई और काम पूरा हो जाने के बाद इन्हें ठीक से बंद करने के बजाए खुला छोड़ देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
हरियाणा में कुरुक्षेत्र के एक गाँव में 2006 में 6 साल के प्रिंस के बोरवेल में गिरने की घटना से मौत के इन कुओं की हकीक़त प्रमुखता से सामने आयी थी। इसके बाद देश के कई राज्यों में खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने की अनेक घटनाएँ हुईं। इनमें से कुछ ही मामलों में बच्चे खुशकिस्मत थे जिन्हें सकुशल निकाला जा सका था।
अदालत के निर्देशों का पालन नहीं?
उच्चतम न्यायालय ने इस तरह घटनाओं का संज्ञान लेते हुये 2010 और फिर 2013 के स्पष्ट निर्देश दिये थे। लेकिन इसके बावजूद बोरवेल खुले छोडने की घटनाओं से साफ़ है कि स्थानीय प्रशासन, बोरवेल के मालिक और इनकी खुदाई करने वाले ठेकेदार न्यायिक निर्देशों पर अमल को लेकर बहुत गंभीर नहीं है।उच्चतम न्यायालय ने फरवरी, 2010 में भूजल के संरक्षण और इसके ग़ैरक़ाननी तरीके से दोहन को रोकने तथा ट्यूबवेल और बोरवेल की खुदाई के बारे में केन्द्र सरकार के दिशा निर्देशों पर अमल का आदेश दिया था।
इसके तहत बोरवेल और ट्यूबवेल की खुदाई का काम शुरू करने से पहले भूस्वामी के लिए प्रशासन को इसकी सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया था। लेकिन ऐसा लगता है कि ये दिशा निर्देश सरकारी कागजों तक ही सिमट कर रह गए।
ज़मीन मालिक, ठेकेदार ज़िम्मेदार
इस बारे में जल संसाधन मंत्रालय ने भी दिशा निर्देश बनाये थे। इनके अवलोकन के बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि बोरवेल में गिरने से किसी बच्चे की मौत होने के मामले में भूस्वामी ओर खुदाई करने वाले ठेकेदार के साथ ही संबंधित विभाग के स्थानीय अधिकारी भी जिम्मेदार होंगे।लेकिन, ऐसा लगता है कि स्थानीय प्रशासन से लेकर ठेकेदार तक संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीने के अधिकार के प्रति पूरी तरह उदासीन है। इसी उदासीनता का नतीजा है कि बोरवेल में बच्चे के गिरने की ख़बरें अक्सर चर्चा में आ जाती हैं।
न्यायालय के निर्देशों के बावजूद इस तरह की घटनायें होने पर सवाल उठता है कि इनके लिये कौन ज़िम्मेदार है? गाँवों में ग़ैरक़ानूनी तरीके से या पूर्व अनुमति के बगैर ही बनने वाले इन बोरवेल के पीछे कहीं शहरी इलाकों में पानी की हो रही किल्लत का लाभ उठाने के लिए जल माफिया तो सक्रिय नहीं हैं?
पानी माफिया
शहरी क्षेत्रों में पेयजल के संकट से निबटने में पानी टैंकर अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये पानी के टैंकर वीरान इलाकों में अवैध तरीके से लगाए गए बोरवेल या ट्यूबवेल से पानी निकाल कर शहरी इलाकों में इसकी आपूर्ति करते हैं। जल माफिया की गतिविधियों के मद्देनज़र यह सवाल भी उठता है कि भूजल कानून के तहत गठित प्राधिकरण और स्थानीय प्रशासन इस माफिया की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कारगर कदम क्यों नहीं उठाता है?यह सवाल भी उठते हैं कि क्या लावारिस या खुले पड़े इन बोरवेल के मामले में सिर्फ बोरवेल मालिक और ठेकेदार ही ज़िम्मेदार हैं? क्या स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? यदि पहली नज़र में इन गतिविधियों में स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत के संकेत मिलते हैं तो क्या सरकार को ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?
क्या कहा था अदालत ने?
न्यायालय के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि किसी भी ट्यूब वेल या बोरवेल की खुदाई का काम शुरू करने से 15 दिन पहले भू-स्वामी को प्रशासन से इसकी लिखित अनुमति लेनी होगी। भूजल क़ानून के तहत बोरवेल की खुदाई करने वाली सरकारी और ग़ैर सरकारी एजेन्सियों का पंजीकरण और इनके काम की निगरानी पर भी न्यायालय ने जोर दिया था।
न्यायालय के आदेश में किसी भी कुएं की खुदाई के समय पास में ही स्पष्ट साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया था। इस साइनबोर्ड में ठेकेदार और कुएं के मालिक का नाम और पते के साथ ही कुएं के व्यास और गहराई का विवरण लिखना अनिवार्य किया गया था।
लेकिन वास्तव में देखा जाए तो गांवों में बोरवेल या कुएं की खुदाई करने वाले इन निर्देशों पर अमल करने में कोताही बरतते हैं।
केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने बोरवेल में बच्चे गिरने की घटनाओं के मद्देनजर राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखे थे। इसके बाद प्रशासनिक आदेश नीचे तक पहुँचे लेकिन नतीजा सिफ़र ही रहा। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक सहित कई राज्यों में अनेक बच्चों की मौत बोरवेल में गिरने से हो चुकी है।
इस दौरान सेना और ग्रामीणों की मुस्तैदी के कारण कुछ बच्चों को इन बोरवेल से सकुशल बाहर निकालने में भी सफलता मिली है।
तमिलनाडु के तिरुचि और पंजाब के संगरूर की घटनाओं के मद्देनज़र प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि वे बोरवेल की खुदाई और सुरक्षा के मामले में शीर्ष अदालत के निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे।
साथ ही बोरवेल को ठीक से बंद नहीं किये जाने की घटनाओं में ठेकदार और भू-स्वामी के साथ ही ऐसे कार्य की मंजूरी देने और उसकी देखरेख के लिये ज़िम्मेदार कर्मचारियों के ख़िलाफ़ भी कठोर कार्रवाई की जायेगी, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
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