मंगलवार को केंद्र सरकार ने अदालत में दायर हलफ़नामे में कहा है कि यह क़ानून पूरी तरह वैध और संवैधानिक है। सरकार ने कहा, ‘सीएए संसद की संप्रभु शक्ति से संबंधित मामला है और अदालत में इस पर सवाल नहीं उठाये जा सकते। केवल संसद को ही नागरिकता पर क़ानून बनाने का अधिकार है।’
हलफ़नामे में केंद्र सरकार ने नागरिकता क़ानून का पूरी तरह बचाव किया है। केंद्र ने कहा है, ‘सीएए किसी भी नागरिक के अधिकारों को नुक़सान नहीं पहुंचाता। यह लोगों के वैधानिक, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष अधिकारों को प्रभावित नहीं करता।’ सरकार ने हलफ़नामे में कहा, ‘यह क़ानून नागरिकता देने वाला है और यह किसी की नागरिकता नहीं छीनता। सीएए का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई संबंध नहीं है।’
सरकार ने कहा है कि सीएए के विरोध में दायर याचिकाएं इस बात को साबित नहीं कर पातीं कि यह क़ानून देश के अल्पसंख्यकों के साथ कैसे भेदभाव करता है।
नागरिकता क़ानून के मुताबिक़, तीन पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई आदि शामिल हैं, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस क़ानून के विरोध में कई संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह क़ानून भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है।
उत्तर प्रदेश में नागरिकता क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुक़सान की वसूली वाले होर्डिंग्स लगाने को लेकर राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार की ख़ासी किरकिरी हो चुकी है। हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद अभी तक सरकार ने इन होर्डिंग्स को नहीं हटाया है। इसके उलट योगी सरकार रिकवरी ऑफ़ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी 2020 अध्यादेश लाई है। इस अध्यादेश के मुताबिक़, अब किसी धरना-प्रदर्शन या आंदोलन में सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाएगा तो उसकी क्षतिपूर्ति ऐसा करने वालों से ही की जाएगी।
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