राज्यसभा के सूत्रों जिन्होंने यह रिपोर्ट देखी है, उनका कहना है कि यह रिपोर्ट ऊंचाई वाले इलाक़ों में भारतीय सेना की स्थिति के बारे में बताती है। रिपोर्ट कहती है कि स्नो गॉगल्स 62 फीसदी से लेकर 98 फीसदी तक कम हैं और इस कारण जवानों का चेहरा व आंखें ऊंचाई वाले इलाक़ों में और ख़राब मौसम के बीच बिना ढके ही रहती हैं। इससे भी ख़राब बात यह है कि जवानों को पुराने और इस्तेमाल हो चुके मल्टी पर्पज जूते पहनने पड़ते हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सेना को नवंबर 2015 से लेकर सितंबर 2016 तक बूट ही नहीं दिये गये।
कैग की रिपोर्ट कहती है कि स्थिति बेहद ही ख़राब है। ख़बर में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि जो जवान ऊंचाई वाले इलाक़ों में तैनात हैं, उन्हें पुराने वर्जन के फ़ेस मास्क, जैकेट और स्लीपिंग बैंग दिए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये जवान बेहतर उत्पादों का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं और रक्षा प्रयोगशालाओं द्वारा अनुसंधान और विकास की कमी के कारण आयात पर निरंतर निर्भरता बनी हुई है।
इस साल मई में अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में भी एक ऐसी ही ख़बर छपी थी जिसके मुताबिक़, सेना ने इस पर चिंता जताई थी कि टैंक, तोप, बंदूकें और हवाई सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले गोला-बारूद बेहद ख़राब और घटिया क्वालिटी के हैं और इस वजह से बार-बार हादसे हो रहे हैं। सेना ने कहा था कि पहले से ज़्यादा हादसे हो रहे हैं, जिससे अधिक संख्या में लोग मारे जा रहे हैं, लोग घायल हो रहे हैं और उपकरण बर्बाद हो रहे हैं और इससे सेना का मनोबल गिर रहा है।
मोदी सरकार से कैग की इस रिपोर्ट को लेकर सवाल यही पूछा जाना चाहिए कि आख़िर यह हालात क्यों बने हैं। जबकि प्रधानमंत्री से लेकर पूरी सरकार बार-बार सैनिकों का सम्मान करने का दावा करती है। बर्फ में खड़े सैनिक किस तरह इन हालात का सामना करते होंगे, यह सोचकर ही मन डर जाता है। और बड़ा सवाल यह है कि आख़िर वे कब तक ऐसे हालात का सामना कर पाएंगे क्योंकि ऊंचाई वाले इलाक़ों में एक तो मौसम बेहद ख़राब होता है, दूसरा जवानों को न तो ढंग का खाना मिल रहा है और न ही ज़रूरी चीजें।
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