सीमा पर जवानों के साथ दिवाली मनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में उन्हीं जवानों को भोजन और कपड़ा नहीं मिलने की क्या कल्पना भी की जा सकती है? सेना के बलिदान और 'राष्ट्रवाद' जैसे मुद्दों के दम पर सत्ता में आई पार्टी से क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाल रही सेना के साथ ऐसा व्यवहार हो? वह भी उन जवानों के साथ जो सियाचिन और लद्दाख जैसी दुर्गम जगह पर तैनात हों। ऐसी जगह जहाँ ज़िंदगी बचा पाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती हो। ऐसा क्यों हो रहा है? सरकार की ही एजेंसी कंप्रट्रोलर ऑडिटर जनरल यानी सीएजी ने इस पर रिपोर्ट दी है।
सीएजी ने सियाचिन और लद्दाख में तैनात सैनिकों को दी जा रही सुविधाओं में गड़बड़ी को उघाड़ कर रख दिया है। सीएजी ने इस रिपोर्ट को संसद की पटल पर रखा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उन जवानों को उतनी ऊँचाई पर रहने के लिए ज़रूरी पहनने वाले कपड़े (हाई एल्टिट्यूड क्लोथ्स), स्नो गोगल्स और बूट्स की भारी कमी है। इस कारण उन्हें पुरानी और दुबारा तैयार की गई ऐसी चीजों को इस्तेमाल करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उस तरह की दुर्गम जगह पर रहने के लिए ज़रूरी विशेष राशन भी अपर्याप्त है। यह इतना कम है कि जवानों को शरीर के लिए ज़रूरी कैलोरी 82 फ़ीसदी तक कम मिल पा रही है। सीएजी की यह रिपोर्ट 2015-16 से 2017-18 पर आधारित है।
'द इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि दो डिपो में भयंकर सर्दी से बचने वाले कपड़े और दूसरे सामान की भारी कमी है। एक में यह कमी 24 से 100 फ़ीसदी तक थी तो दूसरी में 41 से 100 फ़ीसदी तक। ये डिपो सेना के उत्तरी कमांड के हेडक्वार्टर के तहत आते हैं और यहीं उन सामानों के स्टॉक को रखा जाता है।
तो ऐसा क्यों हो रहा है कि पाकिस्तान और चीन से लगने वाली सियाचिन और लद्दाख की सीमा पर जवानों को ऐसी स्थिति में छोड़ दिया गया है? क्या सरकार जवानों के लिए इतना बजट नहीं दे रही है?
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस सवाल का भी जवाब दिया है। उसने कहा है कि सीमित बजट मिलने के कारण कुछ विशेष प्रकार के हाई एल्टिट्यूड क्लोथ्स खरीदने में तंगी आई है। बता दें कि पिछले साल भी जब ऐसी ही रिपोर्ट आई थी तब मार्च में रक्षा मंत्रालय ने लिखित में सीएजी को बताया था कि बजट में तंगी के कारण खरीदारी में कटौती की गई थी। अब इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जवानों को रहने की स्थिति यानी हाउसिंग कंडिशंस को सुधारने के लिए शुरू किया गया पायलट प्रोजेस्ट विफल साबित हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस प्रक्रिया में काफ़ी देरी हुई और इससे चुनौती भरी स्थितियों का सामना करने में मददगार साबित होने वाले सामान से उन्हें वंचित होना पड़ा।
रिपोर्ट चिंताजनक
यह रिपोर्ट काफ़ी चिंता पैदा करने वाली है। यह इसलिए कि सियाचिन और लद्दाख ऐसे क्षेत्र हैं जिसकी सीमा पाकिस्तान और चीन से लगती है। पाकिस्तान और चीन दोनों ही ऐसे देश हैं जिससे भारत के साथ रिश्ते असामान्य रहे हैं। पाकिस्तान तो भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है और चीन हर मामले में पाकिस्तान का साथ देता रहा है। ऐसे में सियाचिन और लद्दाख में जवानों की तैनाती ख़ास मायने रखती है।
इससे पहले कई ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि भारतीय सेना के पास गोला-बारूद का स्टॉक भी कम है।
पिछले साल मई में अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में एक ऐसी ही ख़बर छपी थी जिसके मुताबिक़, सेना ने इस पर चिंता जताई थी कि टैंक, तोप, बंदूकें और हवाई सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले गोला-बारूद बेहद ख़राब और घटिया क्वालिटी के हैं और इस वजह से बार-बार हादसे हो रहे हैं। सेना ने कहा था कि पहले से ज़्यादा हादसे हो रहे हैं, जिससे अधिक संख्या में लोग मारे जा रहे हैं, लोग घायल हो रहे हैं और उपकरण बर्बाद हो रहे हैं और इससे सेना का मनोबल गिर रहा है।
संसदीय कमिटी की रिपोर्ट
कुछ साल पहले ही सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं, लेकिन इसके बावजूद सेना को पैसे मुहैया कराये जाने के बजाय मोदी सरकार ने उसमें कटौती कर दी। यह रिपोर्ट देनेवाली संसद की इस स्थायी समिति के अध्यक्ष तत्कालीन बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी थे। खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर कड़ी नाराज़गी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मामले में मौजूदा इंतज़ाम बहुत ही घटिया हैं और कहा था कि रक्षा मंत्रालय का रवैया इस मामले में बहुत ही शर्मनाक है। इस रिपोर्ट में बताया था कि हमारे क़रीब 68 फ़ीसदी गोला-बारूद और हथियार बाबा आदम के जमाने के हैं। केवल 24 फ़ीसदी ही ऐसे हथियार हैं, जिन्हें हम आज के ज़माने के हथियार कह सकते हैं और सिर्फ़ आठ फ़ीसदी हथियार ऐसे हैं, जो 'स्टेट ऑफ़ द आर्ट' यानी अत्याधुनिक कैटेगरी में रखे जा सकते हैं।
सेना की ऐसी हालत तब है जब बीजेपी के हर नेता ‘राष्ट्रवाद’ का नारा जपते रहते हैं और ख़ुद को सबसे बड़े राष्ट्रवादी बताते रहते हैं। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ऐसा ही करते हैं। वह तो दिवाली भी जवानों के साथ मनाते रहे हैं। मोदी ने 27 अक्टूबर 2019 को राजौरी में भारतीय सेना के जवानों के साथ दिवाली मनाई। 7 नवंबर 2018 को प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-चीन सीमा पर हर्षिल में आईटीबीपी के जवानों के साथ दिवाली मनाई थी। मोदी पहले भी कई मौक़ों पर जवानों के साथ दिवाली की खुशियाँ मनाते रहे हैं।
इन बातों से सवाल उठता है कि सत्तारूढ़ दल चुनाव जीतने के लिए भले ही सेना और, उसके पराक्रम का इस्तेलाल करे, पर क्या वह सेना के प्रति गंभीर है?
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