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चंदा कोचर को बचाना चाहती है या फँसाना चाहती है मोदी सरकार?

सीबीआई निदेशक को पद से हटाने से जुड़ा विवाद अभी थमा भी नहीं था कि एजेंसी एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार भी उसके कामकाज के तौर तरीके पर सवाल उठ रहे हैं और ब्यूरो के अंदर की ख़ामियाँ बाहर आने लगी हैं। आईसीआईसाईआई  बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी चन्दा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन समूह के प्रमुख वेणुगोपाल धूत के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराने वाले अफ़सर के तबादले से कई सवाल उठे हैं। आरोप लग रहा है कि सुधांंशु धर मिश्रा को बलि का बकरा बनाया गया है और कोचर को बचाने की कोशिश की जा रही है। यह आरोप भी है कि यह तबादला केंद्र सरकार के दबाव में किया गया था।

क्यों उठ रहे हैं सवाल?

मिश्रा ने कोचर और दूसरे लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराई और उसके अगले ही दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीबीआई से ‘इनवेस्टिगेटिव एंडवेंचरिज्म’ यानी ‘दुस्साहसिक जाँच’ नहीं करने की सलाह देते हुए एक ब्लॉग लिख डाला। अगले दिन उस अफ़सर का तबादला हो गया।

‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ ने ख़बर दी है कि दरअसल, सुधांशु मिश्रा ने कोचर को जाँच में दोषी नहीं पाया था। वे उस टीम के हिस्सा भर थे, जिसने आईसीआईसीआई मामले की जाँच की थी। उस टीम ने जाँच अधिकारी डी. जे. वाजपेयी की उस शुरुआती जाँच को सही पाया था, जिसमें कहा गया था कि कोचर के ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं। ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की ख़बर के मुताबिक़, सीबीआई के अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव ने इस टीम की जाँच को दरकिनार करते हुए कोचर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराने का आदेश दे दिया। इसमें कहा गया कि चंदा कोचर ने ‘2012 में वीडियोकॉन समूह को क़र्ज़ की मंज़ूरी बेईमान तरीके से दी थी।’लेकिन इसके दो दिन बाद ही वित्त मंत्री ने ब्लॉग लिख कर इस तरह के 'दुस्साहसिक जाँच' से बचने की सलाह दी और उसके बाद मिश्रा का तबादला कर दिया गया।  

विभागीय जाँच

मिश्रा का तबादला दूसरे कई अफ़सरों के साथ ही किया गया, पर वह रूटीन तबादला नहीं था। उन पर पहले यह आरोप लगाया गया कि वह चंदा कोचर मामले की जाँच 2017 से ही कर रहे हैं और उन्होंने जानबूझ कर इसमें देरी की। अब कहा जा रहा है कि उन्होंने चंदा कोचर मामले को 'लीक' कर दिया, इसके लिए उनका तबादला हुआ।लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। केंद्रीय एजेंसी ने इस पूरे मामले की अंदरूनी और विभागीय जाँच के आदेश दिए हैं। यानी ब्यूरो, ख़ुद यह तय नहीं कर पा रहा है कि मिश्र की क्या ग़लती थी।

क्या है मामला?

चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक की क़र्ज़ मंज़ूरी देने वाली कमेटी की प्रमुख थीं। बैंक ने वीडियोकॉन समूह की अलग-अलग कंपनियों को कुल मिला कर 1,575 करोड़ रुपए का क़र्ज दिए। कुछ दिन बाद ही वे क़र्ज़ एनपीए हो गए, यानी बैंक को किश्त मिलना बंद हो गया। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इसी वीडियोकॉन ने चंदा के पति दीपक कोचर की कंपनी न्यूपावर रीन्यूअल्स में 64 करोड़ रुपये का निवेश किया और कुछ महीनों बाद अपने शेयर कम क़ीमत पर न्यूपावर को ही बेच दिए। यह साफ़ तौर पर ‘क्वि़ड प्रो को’ का मामला बनता है। इसका शाब्दिक अर्थ हुआ ‘कुछ के बदले कुछ’, यानी आपने हमारे लिए कुछ किया तो बदले में हमने भी आपके लिए कुछ किया। यानी, यह आरोप साफ़ है कि वीडियोकॉन ने क़र्ज़ के बदले में वह पैसा चंदा कोचर के पति की कंपनी में लगाया। संदेह तब पक्का हो गया जब वीडियोकॉन ने शेयर उसी कंपनी को बेच दिए।

सरकार की नीयत पर संदेह

लेकिन वित्त मंत्री के ब्लॉग से भी कई सवाल उठते हैं और वे सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगाते हैं। जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा , ‘पेशेवर जाँच और जाँच के नाम पर एडवेंचर यानी दुस्साहस में मौलिक अंतर होता है। जाँच के नाम पर दुस्साहस में जाँच का दायरा बहुत दूर-दूर तक फैला लिया जाता है और इसमें ऐसे लोगों को भी शामिल कर लिया जाता है जो किसी तरह मामले से जुड़े नहीं होते हैं, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया होता है और उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं होता है और सिर्फ सुनी-सुनाई बातों और अपनी मान्यताओं के आधार पर ही उन्हें जाँच में शामिल कर लिया जाता है। दुस्साहसिक जाँच में मामले को लीक कर दिया जाता है, जाँच करने वाली संस्था की साख पर बट्टा लगता है, आलोचना होती है और अंत में किसी को सज़ा नहीं मिलती है।’ अब सवाल उठता है कि आखिर जेटली ने यह कैसे निष्कर्ष निकाल लिया कि चंदा कोचर का इस मामले में दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था? साफ़ है, सरकार को इस पर सफ़ाई देनी होगी।सीबीआई पर सरकार के दबाव में आकर जाँच करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। एक बार फिर उसकी विश्वसनीयता पर अंगुली उठ रही है। मिश्रा की जाँच में क्या नतीजा निकलता है, यह तो बात में पता चल पाएगा, पर सीबीआई ने अपनी फ़जीहत एक बार फिर करवा ली है।
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क़मर वहीद नक़वी

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