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सीसीएमबी : भारत में कोरोना वायरस के 7,569 म्यूटेंट्स

ऐसे समय जब भारत में कोरोना टीका एक करोड़ से अधिक लोगों को दिया जा चुका है, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कोरोना वायरस के 7,569 से अधिक प्रकार मौजूद हैं। हैदराबाद स्थित सेंटर ऑफ सेल्युलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने 5,000 प्रकार के कोरोना वायरस का विस्तार से अध्ययन किया है। 

चीन के शहर वुहान में पहली बार कोरोना वायरस का पता चला और उसके बाद यह पूरी दुनिया में फैला। अब दुनिया के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग वैरिएंट्स यानी प्रकार पाए जा रहे हैं, जो एक दूसरे से थोड़े से अलग होते हैं। इस कारण वैज्ञानिकों को इस महामारी की रोकथाम में दिक्क़तें हो रही हैं। 

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'टाइम्स ऑफ इंडिया' के अनुसार, हैदराबाद में पाए गए कोरोना वायरस म्यूटेंट में ई484के भी है, जो ख़ुद पूरी तरह इम्यून है। इसके अलावा एन501वाई वायरस म्यूटेंट का पता भी सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने लगाया है। इसकी खूबी यह है कि यह बहुत तेज़ी से फैलता है, इसके संक्रमण की तेज़ गति अधिक चिंता का विषय है।

सीसीएमबी के निदेशक आर. के. मिश्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, 

"इस तरह के वायरस कम इसलिए हैं कि इनकी सीक्वेन्सिंग नहीं की गई है। वायरस की अधिक से अधिक जीनोम सिक्वेंन्सिंग तैयार करने की ज़रूरत है ताकि उसका पूरा अध्ययन किया जा सके।"


आर. के. मिश्र, निदेशक, सीसीएमबी

मिश्रा ने यह भी कहा कि अध्ययन से यह भी पता चला है कि एक ही राज्य में कुछ ख़ास किस्म के वायरस अधिक सक्रिय हैं, तो कुछ कम सक्रिय। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि ए3आई म्यूटेंट के बारे में अनुमान लगाया है कि यह कम रफ़्तार से फैलता है। दूसरी ओर जून, 2020, तक ए2 किस्म के म्यूटेंट पूरी दुनिया में फैल गए थे। 

क्या होता है म्यूटेशन

वैसे किसी भी वायरस के नये म्यूटेशन या क़िस्म का आना कोई नयी बात नहीं है। इसे आसान भाषा में यूँ समझें। कोरोना एक वायरस है। वायरस यानी ऐसी चीज जो न तो जीवित है और न ही मृत। जब यह किसी जीव के संपर्क में आता है तो सक्रिय हो जाता है। यानी बिना किसी जीव के संपर्क में आए यह एक मुर्दे के समान है और यह ख़ुद को नहीं बढ़ा सकता है। जब वायरस किसी जीव में या यूँ कह लें कि इंसान के संपर्क में आता है तो यह सक्रिए हो जाता है। फिर यह ख़ुद की कॉपी यानी नकल कर संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है। 

नकल करने की इस प्रक्रिया में वायरस हमेशा बिल्कुल पहले की तरह अपनी नकल नहीं कर पाता है और कई बार उस प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियाँ रह जाती हैं। उन कुछ वायरसों में ऐसी गड़बड़ियाँ होने के आसार बहुत कम होते हैं जिनमें अंदुरुनी मेकनिज़्म मज़बूत होते हैं।

लेकिन RNA वाले वायरस में ऐसा मेकनिज़्म नहीं होता है और इस कारण नये क़िस्म का वायरस बन जाता है। यानी वायरस ख़ुद को म्यूटेट कर लेता है। इसका मतलब है कि पहले की अपनी विशेषता में बदलाव कर लेता है। कोरोना वायरस भी RNA वायरस है।

कई रिपोर्टें तो ऐसी भी आ चुकी हैं कि दक्षिण अफ़्रीकी वायरस पर कुछ वैक्सीन उस तरह का असर भी नहीं कर रही हैं। हालाँकि, बड़े स्तर पर अभी शोध होना बाक़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी इस पर शोध कर रहा है कि भारत में बनी वैक्सीन का असर ब्राज़ीलियन और दक्षिण अफ़्रीकी क़िस्म के कोरोना पर कैसा होता है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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