वैक्सीन खरीद का ज़िम्मा राज्यों पर डालने के लिए आलोचनाओं का सामना कर रही केंद्र सरकार अब खरीद का ज़िम्मा उठाने पर विचार कर रही है। सूत्रों के अनुसार सरकारी अधिकारी ने ऐसे संकेत दिए हैं। इस पर फिर से विचार तब किया जा रहा है जब हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केंद्र की वैक्सीन नीति की आलोचना कर रहे हैं। राज्य सरकारें बार-बार केंद्र सरकार को वैक्सीन खरीदने के लिए कह रही हैं। वैक्सीन खरीद का जिम्मा राज्यों पर छोड़ने की वजह से वैक्सीन ख़रीद और वितरण में बड़ी असमानता की बात कही जा रही है।
केंद्र सरकार ने 18-44 साल के लोगों के लिए 1 मई को जो वैक्सीन नीति की घोषणा की थी उसी दौरान राज्यों के लिए वैक्सीन की नीति की भी घोषणा की थी। यही वह समय था जब वैक्सीन के लिए खुले बाज़ार नीति अपनाई गई। सरकार ने तय किया कि इसमें सरकार और निजी क्षेत्र दोनों भूमिका निभाएँगे। केंद्र सरकार ने यह तय किया था कि कंपनियाँ जितने कोरोना टीके बनाएँगी, उसका आधा केंद्र सरकार लेगी और बाक़ी आधे में राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र अपनी-अपनी खरीद करेंगे।
लेकिन सरकार की यह नीति तब आलोचनाओं का शिकार होने लगी जब वैक्सीन कम पड़ने लगी। राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर वैक्सीन की ख़रीद शुरू की और निजी क्षेत्रों ने अपने स्तर पर। इसके बाद आरोप लगा कि इस वजह से वैक्सीन का असमान बंटवारा हुआ।
पिछले हफ़्ते ही ख़बर आई थी कि सरकार ने निजी क्षेत्र को देने के लिए जितने कोरोना टीके सुरक्षित रखे, उसमें से आधा टीके सिर्फ 9 कॉरपोरेट अस्पतालों ने ले लिए, जिनके अस्पताल बड़े शहरों में हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मझोले व छोटे शहरों के निजी अस्पतालों को कोरोना वैक्सीन नहीं मिलीं और इस तरह इन शहरों के लोगों को निजी अस्पतालों में टीका नहीं दिया जा सका। रिपोर्टों में कहा गया कि यह केंद्र सरकार की कोरोना टीका नीति की नाकामी उजागर करता है क्योंकि इससे यह साफ़ हो गया कि कोरोना टीके का समान व न्यायोचित वितरण नहीं हुआ। हालाँकि, केंद्र सरकार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया।
इस बीच राज्यों से लगातार मांग उठती रही है कि केंद्र वैक्सीन खरीद का जिम्मा संभाले। विपक्षी दल के नेता भी यही मांग करते रहे हैं। राहुल गांधी तो लगातार कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार टीके खरीदकर राज्यों को दे और राज्य सराकर उन टीकों को बांटें।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक केंद्रीय स्तर पर वैक्सीन की खरीद की वकालत करते हैं।
विजयन ने ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों को पत्र लिखा है और रेड्डी ने भी कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इस संदर्भ में पत्र लिखा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने तो मुफ़्त वैक्सीन उपलब्ध कराने की मांग की है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी कहना है कि विभिन्न राज्यों की मांग के अनुरूप केंद्र सरकार को नीति में बदलाव लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी मुख्यमंत्रियों को मिलकर प्रधानमंत्री मोदी से वैक्सीन खरीद की केंद्रीय नीति के लिए आग्रह करना चाहिए।
ऐसी प्रतिक्रिया के बीच ही सरकार के एक उच्च अधिकारी ने खरीद नीति पर फिर से विचार के संकेत दिए हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार एक उच्च अधिकारी ने कहा, 'यदि सभी राज्य चाहते हैं कि केंद्र सरकार खरीद करे, तो हम इस पर विचार करेंगे। हम ऐसे आग्रह पर विचार करने को तैयार हैं।'
बता दें कि इस मामले में पिछले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की वैक्सीन नीति को लेकर जबरदस्त आलोचना की है। अदालत ने इस पर संदेह जताया था कि कोरोना टीका उत्पादन का 50 प्रतिशत राज्यों और निजी क्षेत्र के लिए छोड़ देने से टीका उत्पादन के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में प्रतिस्पर्द्धा होगी और टीके की कीमत कम हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर भी सफाई माँगी कि विदेशी टीका निर्माता सीधे राज्यों और केद्र-शासित क्षेत्रों से टीका देने पर बात नहीं करना चाहते और वे सीधे केंद्र सरकार से बात करना चाहते हैं तो इस पर सरकार का क्या कहना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि 18-44 की उम्र के बीच के लोगों को भी कोरोना टीका की वैसी ही ज़रूरत है जैसे 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए। ऐसे में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को मुफ्त कोरोना टीका देना और 18-44 के लोगों से इसके लिए पैसे लेना 'अतार्किक' और 'मनमर्जी' है।
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