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‘जय श्री राम’ न बोलने पर कब्रिस्तान भेजने वालों को कौन दे रहा है बढ़ावा?

एक धर्म और समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत को बढ़ावा देने वाला एक गाना इन दिनों सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है। गाने में गायक कहता है - ‘जो न बोले जय श्री राम, भेज दो उसको कब्रिस्तान।’ गाने के बोल बेहद उत्तेजक हैं और नफ़रत और सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा देने वाले हैं। सोशल मीडिया पर गाने का जोरदार विरोध होने के बाद इसके गायक वरुण बहार उपाध्याय को गिरफ़्तार कर लिया गया है। वरुण के अलावा गाने के प्रोड्यूसर राजेश वर्मा, गीतकार संतोष यादव और मुकेश पांडेय को भी गिरफ़्तार किया गया है। लेकिन बात यहीं से शुरू होती है कि आख़िर ऐसे लोगों को इतनी हिम्मत कैसे मिल रही है कि वे यह गाना बना दें कि ‘जय श्री राम’ न बोलने वाले को कब्रिस्तान भेज देना चाहिए।
कब्रिस्तान शब्द का जिक्र इस गाने में क्यों किया गया है, इसे भी आसानी से समझा जा सकता है। इस तरह के नफ़रत को बढ़ावा देने वाले गानों को सोशल मीडिया पर एक वर्ग ख़ूब शेयर भी कर रहा है और एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ जमकर आग भी उगली जा रही है।

उत्तर प्रदेश के गोंडा के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले वरुण ने कहा कि यह गीत उनके मित्र संतोष यादव ने लिखा है। जब वह लखनऊ की म्यूजिक कंपनी ‘जनता म्यूजिक’ के स्टूडियो गए तो वहाँ पर ‘भेज दो पाकिस्तान’ की जगह ‘भेज दो कब्रिस्तान’ कर दिया गया। वरुण बहार ने सफ़ाई दी थी कि यह गाना किसी धर्म को मानने वालों के ख़िलाफ़ नहीं है और लोग और मीडिया बेवजह उसके पीछे पड़े हुए हैं। बताया जाता है कि वरुण अश्लील और उत्तेजक गाने गाते हैं। गाने के विरोध में देश भर के कई शहरों में एफ़आईआर दर्ज की गई हैं। 

वरुण ने सफ़ाई देते हुए कहा कि उन्हें देश भर से धमकियाँ मिल रही हैं। उन्होंने कहा कि बजरंग दल, हिंदू युवा वाहिनी से उन्हें मदद की सख़्त ज़रूरत है। वरुण ने कहा कि राम के नाम से जिन लोगों को परेशानी होती है, उनके ख़िलाफ़ यह गाना गाया गया है। 

गीतकार संतोष यादव तो यहाँ तक कहते हैं कि उन्होंने यह गाना धर्म की रक्षा के लिए बनाया है और वे लोग बस अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। वे लोग गाने को लाइक और शेयर करने की भी अपील करते हैं।
मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं में ‘जय श्री राम’ के नारे के सामने आने को लेकर फ़िल्मी हस्तियों, कलाकारों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आपत्ति जताने के बाद दूसरी ओर से इसके ख़िलाफ़ पत्र लिखे जाने का मुद्दा इन दिनों बेहद चर्चा में है। पहले पत्र लिखने वाली 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री मोदी से माँग की है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं को तुरंत रोका जाए। जबकि इसके विरोध में पत्र लिखने वाले 62 नामचीन लोगों का कहना है कि कुछ लोग चुनिंदा ढंग से सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष दिखाने के लिए पत्र लिख रहे हैं और उनके विरोध करने का मक़सद सिर्फ़ देश के लोकतंत्र को बदनाम करना है। लेकिन फिर भी मॉब लिंचिंग में मुसलमानों को पीटे जाने की घटनाओं से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। 
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झारखंड के तबरेज़ अंसारी की पिटाई वाले वीडियो में भी यह देखा गया कि भीड़ उसे बुरी तरह पीटने के साथ ही ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ का नारा लगाने के लिए कह रही है। कुछ दिन पहले ही दिल्ली, कोलकाता में मदरसे के टीचर्स के साथ भी ‘जय श्री राम’ बोले जाने को लेकर मारपीट की घटनाएँ हुई थीं। 

कुछ महीने पहले ही बिहार के बेगूसराय में एक मुसलिम फेरीवाले को उसका नाम पूछने के बाद उसे गोली मार दी गई थी और उसे पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया था। फेरीवाले का नाम मोहम्मद कासिम था।
देश में हज़ारों लोग सोशल मीडिया पर और सड़कों पर उतरकर भी देश में बन रहे नफ़रत के इस माहौल का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों से जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाना और न बोलने पर उन्हें पीटे जाने से देश का नाम दुनिया भर में बदनाम हो रहा है। आख़िर क्यों अपने धर्म की मान्यताओं और नारों को दूसरों पर थोपा जा रहा है।
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मॉब लिंचिंग की घटनाओं की शुरुआत सितंबर 2015 में ग्रेटर नोएडा के दादरी में स्थानीय नागरिक अख़लाक़ को पीटे जाने से हुई थी। उनके घर में गो माँस रखे होने के शक के आधार पर भीड़ ने उन्हें घर में घुसकर पीट-पीट कर मार डाला था। फिर ऐसी घटनाएँ बढ़ती गईं और अप्रैल 2017 में कथित गो रक्षकों ने राजस्थान के अलवर में 55 वर्षीय बुजुर्ग पहलू ख़ान की गो तस्करी के शक में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। गो तस्करी के शक में ही रकबर और कई और लोगों की पीट-पीटकर हत्या हो चुकी है।
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सोशल मीडिया पर नफ़रत भरे संदेशों की बाढ़ आई हुई है और हम बात कर रहे हैं कि देश को 5 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाएँगे। सबसे पहले तो जाँच इस बात की होनी चाहिए कि दिन-रात देश में धार्मिक आधार पर नफ़रत का माहौल क्यों बनाया जा रहा है। आख़िर क्यों इनके ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई नहीं होती जिससे इनके मंसूबे नाकाम हो सकें। ये आए दिन की बात हो गई है कि देश में सारी चर्चा हिंदू-मुसलमान पर सिमटकर रह गई है। 

देश में एक ओर से अर्थव्यवस्था, रोज़गार के मोर्चे पर लगातार निराश करने वाली ख़बर आ रही है। ऑटो इंडस्ट्री से 10 लाख लोगों के नौकरी जाने की ख़बर हाल ही में आई है, बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ज़्यादा होने की ख़बर को भी सरकार ने स्वीकार किया है। लेकिन इस पर बात करने के लिए कोई तैयार नहीं है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और सभी को संवैधानिक रूप से समान अधिकार मिले है। कोई किसी धर्म, जाति, भाषा, नस्ल के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की बात करता है तो क़ानून के हिसाब से सख़्त कार्रवाई किये जाने की ज़रूरत है। लेकिन बावजूद इसके सख़्त कार्रवाई नहीं होती और धार्मिक आधार पर नफ़रत फैलाने का यह नापाक काम जारी है और इससे देश का नाम बदनाम हो रहा है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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