अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ ने चीन में फैले कोरोना वायरस का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की जो आशंका जताई थी, वह सही साबित होती दिख रही है। कोरोना वायरस के कारण भारत के व्यापार पर असर पड़ा है और ऐसी रिपोर्टें हैं कि कई जीचें 30 से 50 फ़ीसदी तक महँगी हो गई हैं। इसका सबसे ज़्यादा असर चिकित्सा उपकरणों और दवाओं पर हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक, खिलौने जैसे प्लास्टिक के उत्पाद महँगे हो गए हैं और चीन को भारत से निर्यात किए जाने वाले सामान सस्ते हो गए हैं। इसका साफ़ मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था पर इसका असर होगा। इसी ओर मूडीज़ ने भी इशारा किया है।
मूडीज़ ने दो दिन पहले ही कहा है कि चीन में कोरोना वाइरस संक्रमण की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। मूडीज़ ने कहा कि कोरोना संक्रमण का असर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसने कहा, 'हमने अपने अंतरराष्ट्रीय अनुमान में कटौती की है। हमारा अनुमान है कि जी-20 के देशों में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत होगी।'
इसने भारत के संदर्भ में कहा, 'अर्थव्यवस्था के कुछ इंडिकेटर में सुधार होने की वजह से यह उम्मीद की जा रही थी कि स्थिरता आ जाएगी। हालाँकि अर्थव्यवस्था में सुधार शुरू हो जाएगी, पर हमें लगता है कि इसकी रफ़्तार हमारे अनुमान से कम होगी।' इसी कारण इसने 2020 के लिए विकास की दर के अनुमान 6.6 फ़ीसदी से घटाकर 5.4 कर दिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोरोना वायरस एक नया वायरस है। चीन के हुएई प्रांत के वुहान शहर में न्यूमोनिया जैसे बीमारी के लक्षण दिखे। बता दें कि इससे 2000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है और 75 हज़ार से ज़्यादा लोग इससे प्रभावित हैं। और इसी कारण इसका असर दुनिया भर के व्यापार पर भी पड़ा है।
दवाओं पर असर
वैसे तो देश में ही ज़्यादातर दवाएँ बनती हैं, लेकिन इनको बनाने के लिए जिन रसायनों की ज़रूरत होती है उसमें से ज़्यादातर को चीन से आयात किया जाता है। अब जब इन रसायनों का आयात प्रभावित हुआ है तो दवाएँ महँगी हो गई हैं। दर्द, बुखार और एंटीबायोटिक दवाओं के दाम 30 से 50 फ़ीसदी बढ़ गए हैं। पैरासिटामोल की दवाएँ क़रीब 46 फ़ीसदी बढ़ गई हैं। एजिथ्रोमाइसीन में 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। निमूस्लाइड की क़ीमत भी क़रीब 40 फ़ीसदी बढ़ गई है।
दूसरे उत्पाद भी महँगे हुए
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कई राज्यों में चीनी सामान महँगे हो गए हैं। प्लास्टिक के खिलौने, फ़र्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जैसे सामान की क़ीमतें 20 से 30 फ़ीसदी तक ज़्यादा हो गई हैं। हालाँकि, अभी तक मोबाइल की क़ीमतें नहीं बढ़ी हैं, लेकिन मोबाइल पार्ट्स के दाम 25 से 30 फ़ीसदी तक बढ़ गए हैं। मोबाइल बैट्री 40 फ़ीसदी तक महँगी हो गई हैं। जहाँ पहले से कुछ स्टॉक बचे थे वहाँ अभी सामान उतने महँगे नहीं हुए हैं। लेकिन जहाँ कच्चा माल नहीं पहुँच रहा है वहाँ क़ीमतें ज़्यादा बढ़ रही हैं।
भारत के उद्योग-व्यापार जगत पर असर कैसे पड़ रहा है, यह इससे समझा जा सकता है कि भारत में बीते दिनों कई कारखाने खुले हैं, जो मोबाइल फ़ोन बनाते हैं। पर ये ईकाइयाँ चीनी कंपनियों ने या तो ख़ुद या किसी स्थानीय कंपनी के साथ मिल कर खोली हैं और ये पूरी तरह चीनी कल-पुर्जों पर निर्भर हैं। चीनी कल-पुर्जों की आपूर्ति कम होने से उत्पादन पर असर पड़ रहा है।
चीन में कोरोना वायरस फैलने के कारण अब स्थिति यह है कि इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है। ऐसे में क्या उस स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसमें चीन के सामानों के बहिष्कार करने की धमकी दी जाती है?
कई बार दक्षिणपंथी विचारों वाले और बीजेपी का समर्थन करने वाले चीन के सामान का बहिष्कार कर चुके हैं। जब चीन ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयास में अड़ंगा लगा दिया था तब भी भारत में ट्विटर पर हैशटैग #BoycottChineseProducts ट्रेंड करने लगा था। मसूद अज़हर पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड है और फ़िलहाल पाकिस्तान में है। तब योग गुरु बाबा रामदेव ने ट्वीट किया था कि चीन तो विशुद्ध रूप से व्यावसायिक भाषा ही समझता है, हमें उसका आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए और यह युद्ध से भी ज़्यादा ताक़तवर है। बाद में भी दीपावली पर चीन की लाइट वाली लड़ियों का बहिष्कार किया था।
अब कोरोना वायरस के कारण चीन के सामानों के आयात कम होने पर भारत पर पड़ने वाला असर एक सबक़ होना चाहिए।
अपनी राय बतायें