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कमलनाथ मुद्दा बना तो मोदी, शाह भी निशाने पर

1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों ने मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने उन दंगों के  दौरान 5 लोगों की हत्या के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है। पीड़ितों के साथ ही दंगा पीड़ितों के साथ-साथ दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चेयरमैन मनजीत सिंह जीके और पीड़ितों की ओर से मुकदमा लड़ने वाले वकील एचएस फुल्का ने सिख विरोधी हिंसा की जांच कर रही एसआईटी में कमलनाथ पर मुक़दमा चलाने के लिए नई अर्ज़ी देने का एलान किया है।

कांग्रेस की मुश्किलें

हिंसा पीड़ित सिखोंं और उनके पैरोंकारों की तरफ़ से खोले गए मोर्चे से जहां कमलनाथ की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, वहीं कांग्रेस को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में साफ़ कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर हुई सिख विरोधी हिंसा के लिए पूरी तरह तत्कालीन सरकार और सरकारी मशीनरी ज़िम्मेदार है। इस हिंसा के दोषियों को उस समय की सरकार ने पूरी तरह राजनीतिक संरक्षण दिया था और उन्हें बचाया था। इसे लेकर बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस पर हमले तेज़ कर दिए हैं। दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चेयरमैन मनजीत सिंह जीके और वकील फुल्का ने एलान किया है कि वे कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा कर ही दम लेंगे।

Congress to target Modi, Shah and Maya Kodnani if Kamalnath is made an issue - Satya Hindi
देश के अलग अलग जगहों पर हुए सिख विरोधी दंगों में लगभग 3,000 लोग मारे गए थे।
सिख विरोधी हिंसा के पीड़ितों और उनके पैरोकारों का दावा है कि 1 से 4 नवंबर 1984 के बीच हुई सिख विरोधी हिंसा के एक मामले में कमलनाथ का नाम भी आया है।
सिख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे के पास 2 लोगों को जिंदा जला कर मारा गया था। कमलनाथ पर आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया था। इस बाबत कई अखबारों में खबरें भी छपी थींं।
हिंसा पीड़ित सिख और उनके पैरोकार उस ज़माने के अखबारों की कतरनें और गवाहों के पुराने हलफ़नामों के आधार पर दंगों की जांच कर रही एसआईटी को कमलनाथ के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने के लिए नए सिरे से अपील करेंगे। इस अपील से मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस दोनों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

कमलनाथ का जवाब

वहीं मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कमलनाथ ने इन तमाम आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा है कि उनके ख़िलाफ़ न तो कोई एफ़आईआर दर्ज हुई और न ही वे किसी मामले में दोषी क़रार दिए गए। लिहाज़ा, उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की कोई ज़रूरत नहीं है। कमलनाथ का कहना है कि वह कई बार केंद्र में मंत्री रह चुके हैं और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के इंचार्ज भी, लेकिन यह मामला उनके ख़िलाफ़ कभी नहीं उठा। अब उनके विरुद्ध राजनीतिक साजिश के तहत यह मामला उठाया जा रहा है।
ग़ौरतलब है कि 2 साल पहले कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ को वहां का प्रभारी नियुक्त किया था, तब शिरोमणि अकाली दल ने 1984 के सिख विरोधी हिंसा में उनके नाम का मुद्दा उठाया था। कमलनाथ ने खुद ही पंजाब के प्रभारी पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में कहा था  कि सिख विरोधी हिंसा में उनके उनका नाम उठाकर शिरोमणि अकाली दल पंजाब में कांग्रेस को नुक़सान पहुंचा सकता है। लिहाज़ा, वह इस चुनावी प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर रहे हैं, हालांकि अपनी चिट्ठी में उन्होंने यह भी कहा था कि 1984 के सिख विरोधी हिंसा में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
दंगा पीड़ितों का कहना है कि जिस तरह सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ सत्ता के दबाव में कोई एफ़आईआर नहीं लिखी गई थी, उसी तरह कमलनाथ भी के ख़िलाफ़ भी कोई मामला कहीं दर्ज नहीं हो पाया था।

कांग्रेस का पलटवार

लेकिन इसके जवाब में कांग्रेस ने भी आक्रामक रुख अख्त़ियार कर लिया है। दिल्ली हाई कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने कमलनाथ पर निशाना साधा और उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर गंभीर सवाल उठाए। इसके जवाब में कांग्रेस ने बीजेपी को याद दिलाया है कि 2002 में अहमदाबाद में हुए मुस्लिम विरोधी दंगा में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी नाम आया था। उनके ख़िलाफ़ भी एसआईटी नए सिरे से जांच करे।  
कांग्रेस ने अपने प्रवक्ताओं को सीधे-सीधे निर्देश दिए हैं कि इस मुद्दे पर टीवी चैनलों पर होने वाली बहस में बीजेपी प्रवक्ताओं के तर्कों का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। अगर बीजेपी प्रवक्ता कमलनाथ का इस्तीफ़ा मांगे तो उनसे पूछा जाए कि आपने माया कोडनानी के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की गई थी?अहमदाबाद के नरोदा की पूर्व विधायक माया कोडनानी पर आरोप है कि उन्होंने मुसलमान विरोधी दंगों के दौरान नरोदा पटिया में दंगाइयों को उकसाया था। विशेष अदालत ने उन्हें 28 साल के जेल की सज़ा सुनाई थी।  पर बाद में अहमदाबाद हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उन्हें निर्दोष क़रार दिया था। 
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नरोदा की पूर्व विधायक माया कोडनानी को सज़ा भी सुनाई गई थी, बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था।
इस लिहाज से देखा जाए तो 1984 की स्थित विरोधी हिंसा को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच एक बार फिर तलवारें खिंच गई हैं। जहां बीजेपी कमलनाथ के मुद्दे को उठा रही है, वहीं कांग्रेस 2002 के गुजरात हिंसा के बहाने मोदी, अमित शाह और माया कोडनानी समेत और लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह बहस क्या मोड़ लेती है।
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क़मर वहीद नक़वी

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