कोरोना के बढते संक्रमण के बीच यह तथ्य सामने आया है कि इससे प्रभावित वालों में वे लोग ज़्यादा हैं, जिन्हें पहले से कोई दूसरा रोग है। इसके अलावा इसके रोगियों में 50 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या अधिक है।
कोरोना संक्रमण पूरे देश में फैलने के कारणों पर शोध कर रही संस्था इंटीग्रेटेड डिजीज़ सर्विलान्स प्रोग्राम (आईडीएसपी) का यह कहना है।
यह डाटा कोरोना जाँच में पॉज़िटिव पाए जाने वाले लगभग एक लाख लोगों के मामलों के अध्ययन का है। कोरोना के अब तक 6.50 लाख से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
मधुमेह-हाइपरटेन्शन की भूमिका
अध्ययन में यह भी पाया गया है कि कोरोना से होने वाली मौतों में पहले से मौजूद दूसरे रोग अधिक घातक साबित होते हैं और उनके होने से मौत का ख़तरा बढ़ जाता है। यह भी पाया गया है कि इस तरह की मौतों में मधुमेह और हाइपरटेन्शन की भूमिका सीमित है। आईडीएसपी का कहना है कि उसके पास जो डाटा है, उसके अनुसार 16,155 मामलों में से सिर्फ 8 प्रतिशत लोगों को मधुमेह और 9 प्रतिशत लोगों को हाइपरटेन्सन था। इसके पहले की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि कोरोना रोगियों में 29 प्रतिशत को हाइपरटेन्सन और 11 प्रतिशत को मधुमेह है। इसके अलावा कोरोना के साथ 30 प्रतिशत दूसरे रोग पाए गए थे।
दूसरे रोगों की भूमिका?
विशेषज्ञों का कहना है कि पॉजिटिव पाए गए लोगों में कई तरह के दूसरे रोग भी थे। कोरोना होने में इन रोगों की क्या भूमिका है, यह अभी तय नहीं हो सका है और इसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल के निदेशक सुजीत कुमार सिंह ने 'द हिन्दू' से कहा,
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'कोरोना प्रभावित लोगों में पाए जाने वाले रोगों में प्रमुख हैं कैंसर, बाईपास, हेपेटाइटिस और किडनी से जुड़े रोग।'
सुजीत कुमार सिंह, निदेशक, नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल
वे इसके आगे कहते हैं, 'हमारे पास पर्याप्त मामले हैं जिनके आधार पर हम और अधिक गंभीर अध्ययन कर सकते हैं और इस महामारी के बारे में निष्कर्ष निकाल सकते हैं। अब हमें इसके लिए किसी विदेशी शोध पर निर्भर होने की ज़रूरत नहीं है।'
यह भी देखा गया है कि अस्पतालों में दाखिल 19,813 रोगियों के अध्ययन से पता चला है कि कोरोना रोगियों में सिर्फ 26 प्रतिशत लोगों में बुखार आम रोग था, 19 प्रतिशत लोगों को खाँसी थी।
इसके अलावा 21 प्रतिशत लोगों में दूसरे रोग थे, यानी उनमें 19 प्रतिशत लोगों में डायरिया, सिरदर्द, उल्टी वगैरह देखे गए।
आईडीएसपी ने यह भी कहा है कि वायरस अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग लोगों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करता है। जुलाई महीने तक पाया गया था कि सार्स-कोव 2 की कम से कम 6 प्रजातियाँ भारत में हैं।
इसके अलावा 83 हज़ार कोरोना रोगियों की भौगोलिक स्थितियों का भी अध्ययन किया गया। यह पाया गया कि इनमें से 37 प्रतिशत महानगर में रहने वाले थे जबकि 13 प्रतिशत लोग गाँव के थे।
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