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कोरोना का ख़तरा: कई राज्यों में गांवों में बुरा हाल, खांसी-बुखार फैला

शहरों में तबाही मचाने के बाद जानलेवा कोरोना वायरस अब गांवों की ओर बढ़ चुका है। क्या उत्तर प्रदेश, बिहार और क्या पंजाब, हरियाणा से लेकर झारखंड, उत्तराखंड। इन राज्यों से आ रही मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर सक्रिय इन राज्यों के लोग राज्य सरकारों को चेता रहे हैं कि गांवों में खांसी-बुखार से लोग बुरी तरह परेशान हैं और बेहतर इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। लेकिन शहरों के हालात संभालने में फेल राज्य सरकारों तक इनकी आवाज़ शायद नहीं पहुंच रही है। 

हरियाणा: कई गांवों में मौतें

बात शुरू करते हैं हरियाणा से। दिल्ली से लगने वाले इस राज्य के रोहतक, हिसार, भिवानी जिले में बीते कई दिनों में खांसी-बुखार से परेशान लोगों की मौत हो चुकी है। रोहतक के टिटौली, हिसार के सिसाय, खरड़, अलीपुर, भाटला सहित पानीपत के डिडवाड़ी में बीते कई दिनों से लगातार मौतें हो रही हैं। 

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भिवानी जिले में मुंदल खुर्द और मुंडल कलां गांवों में पिछले एक सप्ताह में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। यही हाल सोनीपत के हरसाना कलां और सिसाना गांवों का भी है। यहां कई घरों में लोग खांसी-बुखार से पीड़ित हैं। इन इलाक़ों के लोगों का कहना है कि जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें लक्षण कोरोना वाले ही थे। 

लगातार हो रही इन मौतों से परेशान हरियाणा सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने सक्रियता बढ़ाई है। प्रभावित इलाक़ों में टेस्टिंग कराई जा रही है। शवों का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग जिन घरों में मौत हो रही है, वहां के पूरे गांव को सैनिटाइज कर रहा है। 

गांवों में स्वास्थ्य का ढांचा कितना दुरुस्त है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कोरोना की दूसरी लहर अभी कितना कहर बरपाएगी, यह पता नहीं है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को तुरंत प्रभावित गांवों में युद्धस्तर पर काम करना होगा, वरना हालात बदतर हो सकते हैं।

पंजाब में अमरिंदर परेशान

पंजाब में भी कोरोना का संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल रहा है। लेकिन मुश्किल यहां इसलिए है कि शहरों से ज़्यादा मौतें गांवों में हो रही हैं। दूसरी मुश्किल यह है कि राज्य में कई जगहों पर किसान आंदोलन को लेकर धरने चल रहे हैं और पुलिस की लाख सख़्ती के बाद भी आंदोलनकारी धरनों से उठने के लिए तैयार नहीं हैं। 

कोरोना के हालात को लेकर देखिए चर्चा- 
पंजाब के शहरों में 0.7 फ़ीसदी मौतें हुई हैं तो गांवों में 2.8 फीसदी। सरकार का कहना है कि शहरों में लोग टीकाकरण के लिए जागरूक हैं जबकि गांवों में ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कहते हैं कि कोरोना का यूके स्ट्रेन गांवों में पहुंच गया है और जालधंर, मोहाली, फाजिल्का, मुक्तसर, मानसा के कई गांवों में इस स्ट्रेन के नये केस मिले हैं। उन्होंने कहा है कि इस बार युवा इसकी चपेट में ज़्यादा हैं। उन्होंने चेताया है कि लोग क़तई लापरवाही न करें और बुखार वगैरह को नज़रअंदाज न करें। 
Corona infections in indian villages - Satya Hindi

उत्तर प्रदेश: पंचायत चुनाव ने बिगाड़े हालात

लचर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले उत्तर प्रदेश में कोरोना को लेकर हालात तो बिगड़ ही रहे थे, पंचायत चुनाव ने ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया। पहले प्रवासी मजदूर गांवों में पहुंचे और उसके बाद पंचायत चुनावों के दौरान ज़ीरो सोशल डिस्टेंसिंग और बिना मास्क वाले लोगों ने बेड़ा गर्क कर दिया। 

उदाहरण के तौर पर बुलंदशहर के परवाना गांव के हालात जानिए। इस गांव में पंचायत चुनाव के दौरान 18 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई। इनमें से कई लोगों में कोरोना के लक्षण थे लेकिन जब तक स्वास्थ्य विभाग की टीम जांच शुरू करवाती, कई लोग मर चुके थे। 

ऐसे ही हालात राज्य के कई और गांवों में हैं, जहां पर पंचायत चुनाव के दौरान या उसके बाद कई मौतें हुई हैं। ऐसे में समझदारी दिखाते हुए पंचायत चुनाव रोक दिए जाने चाहिए थे लेकिन इन्हें हर हाल में कराया गया। 

बिहार में दहशत में लोग

बिहार के सुपौल से लेकर छपरा या फिर सहरसा और पटना से लगने वाले गांव। इन सभी जगहों के ग्रामीण दहशत में हैं। इन इलाकों में वैक्सीन से लेकर RT-PCR टेस्ट किट की भारी कमी है। शहरों में भी ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों तक के लिए लोग परेशान हैं। 

बिहार में कोरोना संक्रमण बढ़ने का कारण प्रवासी मजदूरों का आना भी है। पिछली बार प्रवासी मजदूरों को क्वारेंटीन सेंटर्स में रोका गया था लेकिन इस बार महाराष्ट्र, दिल्ली से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर गांवों में पहुंच गए क्योंकि कोई रोक-टोक करने वाला नहीं था। 

बिहार के कई इलाकों के ग्रामीण कहते हैं कि अगर टेस्टिंग बढ़ाई जाए तो यहां काफी संख्या में कोरोना के मरीज मिलेंगे। कई ग्रामीण कहते हैं कि बिना पूर्ण लॉकडाउन के कोरोना को नहीं संभाला जा सकता है।

उत्तराखंड में कई गुना बढ़ा संक्रमण

सवा करोड़ की आबादी वाले राज्य उत्तराखंड में पिछली लहर में जहां अधिकतम 2 हज़ार मामले पूरे राज्य में आते थे, इस बार यह आंकड़ा 10 हज़ार के करीब जा पहुंचा है। राज्य के कई गांवों में लोग बुखार-सिरदर्द से पीड़ित हैं और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। 

उत्तराखंड में भी मुश्किल वही उत्तर प्रदेश और बिहार वाली है। यहां भी प्रवासी चुपचाप से गांवों में चले आए और जिन जिलों में संक्रमण के 10-15 मामले मिलते थे, वहां अब 200 से ज़्यादा मामले हर दिन आ रहे हैं। संक्रमण बढ़ने का एक कारण कुंभ का मेला भी रहा होगा क्योंकि यह ऐसे वक़्त में हुआ जब संक्रमण तेज़ हो रहा था और इसमें शामिल कई लोग संक्रमित पाए गए थे। ऐसे लोग गांवों-शहरों में पहुंचे होंगे तो संक्रमण फैला होगा। 

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झारखंड में भी कोरोना का संक्रमण बहुत ज़्यादा है और कई बार 5 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। इससे बचने के लिए राज्य सरकार ने कई सख्तियां भी लागू की हैं और इनका असर भी देखने को मिल रहा है। रांची से लेकर धनबाद और पूर्वी सिंहभूमि से लेकर गिरिहीड, बोकारो और कोडरमा में भी संक्रमण की रफ़्तार तेज़ है। 

दक्षिण के राज्यों में भी हालात अच्छे नहीं हैं। लेकिन उत्तर भारत में तो साफ है कि अगर गांवों में जिस तरह लोग बुखार-खांसी को हल्के में ले रहे हैं या फिर उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल रहा है या सीधे कहें कि राज्य सरकारें इलाज नहीं दे पा रही हैं, ये स्थिति बेहद चिंताजनक है और इतनी मौतों के बाद चूकने या माफ़ी का कोई मौक़ा सरकारों के पास नहीं है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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