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लॉकडाउन से ग़रीब ज़्यादा प्रभावित, आय घटी, नौकरी भी नहीं

कोरोना लॉकडाउन के वक़्त तो कामगार बुरी तरह प्रभावित हुए थे, लेकिन अब उनपर कैसा असर है और क्या उनकी हालत अब सुधर रही है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक के बाद एक सर्वे रिपोर्टें की जा रही हैं। हाल की रिपोर्टों में भले ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आती दिख रही है, लेकिन सर्वे में सभी कामगार लोगों की ज़िंदगी पटरी पर आती नहीं दिख रही है। चाहे वह नौकरी मिलने का मामला हो या लॉकडाउन से पहले जैसी कमाई का।

अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक ताज़ा सर्वे में भी कुछ ऐसी ही रिपोर्ट सामने आई है। पहले अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने ही अप्रैल और मई में 4942 कामगारों पर सर्वे किया था। अब उसके छह महीने बाद विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने सितंबर से नवंबर तक उन्हीं कामगारों में से 2778 कामगारों का इंटरव्यू लिया है। 

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सर्वे टेलीफ़ोन से 12 राज्यों में छह सहयोगी सामाजिक संगठनों की मदद से किया गया है। अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधार्थी परितोष नाथ, एस नेल्सन मंडेला और एश्वर्या गवली के शोध को हिंदुस्तान टाइम्स ने छापा है। 

रिपोर्ट के अनुसार सर्वे में ख़ासकर यह देखा गया कि अभी बेरोज़गारी की स्थिति कैसी है और कितने लोगों को फिर से नौकरी मिल गई। इस सर्वे में पाया गया है कि ओवरऑल 26.2 फ़ीसदी लोगों की स्थिति बिल्कुल नहीं बदली। यानी उनकी पहले जैसी ही स्थिति रही। जबकि 54.7 फ़ीसदी लोगों को नौकरी वापस मिल गई। 14.6 फ़ीसदी को महीने में एक दिन भी काम नहीं मिला यानी उन्हें शायद ही कहीं काम और कभी-कभी ही काम मिल पाया। 4.6 फ़ीसदी लोगों की तो नौकरी चली गई और उसके बाद से कोई काम नहीं मिला। 

बता दें कि रिपोर्ट में फ़रवरी महीने में 69 फ़ीसदी लोगों की नौकरियाँ चली गई थीं। छह महीने बाद भी 19 फ़ीसदी लोगों को काम नहीं मिला। इसका मतलब है कि सर्वे किए जाने वाले उस पूरे महीने में एक दिन भी उन लोगों को काम नहीं मिला। यदि महीने में 15 दिन काम मिलने का पैमाना माना जाए तो लॉकडाउन के बाद भी 35 फ़ीसदी लोग बेरोज़गार थे। 

इस मामले में महिलाओं पर इसका ज़्यादा बुरा असर हुआ। जहाँ 25 फ़ीसदी महिलाएँ ही पहले की स्थिति में रहीं वहीं 27.8 फ़ीसदी पुरुष पहले की स्थिति में रहे। महिलाएँ 52.7 फ़ीसदी नौकरी वापस पाने में सफल रहीं तो पुरुष 57.2 फ़ीसदी।

16.9 फ़ीसदी महिलाओं को महीने में एक दिन भी काम नहीं मिला जबकि ऐसे पुरुषों का प्रतिशत 11.4 ही रहा। 5.3 फ़ीसदी महिलाओं की नौकरियाँ चली गईं और उन्हें काम नहीं मिला तो पुरुषों में यह स्थिति 3.6 फ़ीसदी के साथ ही रही।

बेरोज़गारी का स्तर डरावना

वैसे, दूसरे सर्वे की बात करें तो ओवरऑल बेरोज़गारी दर डरावनी स्तर तक पहुँच गई है। इस साल की शुरुआत में ही सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर में राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 9.06 प्रतिशत पर पहुँच गई। यह नवंबर में 6.51 प्रतिशत थी। इसी तरह ग्रामीण बेरोज़गारी दिसंबर में 9.15 प्रतिशत पर थी, यह नवंबर में 6.26 प्रतिशत पर थी। यानी लॉकडाउन के बाद भी बेरोज़गारी दर बढ़ती ही दिख रही है। 

अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफ़ैम ने अपनी रिपोर्ट  'द इनइक्वैलिटी वायरस'  में ऐसी ही डरावनी रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस और उस वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से जहाँ एक ओर 12 करोड़ लोगों का रोज़गार गया, वहीं सबसे धनी अरबपतियों की जायदाद 35 प्रतिशत बढ़ गई। इस दौरान भारत के सौ अरबपतियों की संपत्ति में 12.97 खरब रुपए का इज़ाफ़ा हुआ। 

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कमाई घटी, खाद्य असुरक्षा बढ़ी

बहरहाल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के सर्वे में यह बात सामने आई है कि लोगों की कमाई घटी है और खाद्य असुरक्षा बढ़ी है। लॉकडाउन से पहले सर्वे किए गए परिवारों की जितनी आमदनी थी लॉकडाउन के बाद उसकी आधी रह गई। ऐसी स्थिति गाँवों और शहरों दोनों जगह रही। लेकिन शहरों में स्थिति ज़्यादा ख़राब रही।

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ लॉकडाउन से पहले आमदनी पहले 100 रुपये थी वह लॉकडाउन के बाद 63 रुपये रही वहीं शहरों में यह आमदनी घटकर 40 रुपये पर आ गई।

क्या कहता है दूसरा सर्वे?

ऐसा ही एक सर्वे यूपी के तीन ज़िलों में 400 परिवारों के 2149 लोगों पर किया गया था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के आर्थिक अध्ययन और नियोजन केंद्र में सहायक प्रोफ़ेसर सुरजीत दास और गिरि विकास अध्ययन संस्थान लखनऊ में सहायक प्रोफ़ेसर मंजूर अली ने यह सर्वे किया था। सर्वे में पाया गया था कि सैम्पल लिए गए घरों की औसत आय कोरोना लॉकडाउन के कारण उनकी लॉकडाउन से पहले की आय के पाँचवें भाग से भी कम हो गई थी। लॉकडाउन से पहले इन 409 परिवारों की औसत आय 8445 रुपये प्रति माह थी जो लॉकडाउन के बाद अप्रैल, मई और जून के महीनों में लगभग 1641 रुपये पर आ गई।

उत्तर प्रदेश की इस रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया था कि लोगों के दिमाग़ में आय की अनिश्चितता और आजीविका को लेकर अतिसंवेदनशीलता बनी हुई थी।

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क़मर वहीद नक़वी

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