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फ़ाइल फ़ोटो।

अब गाँवों में कोरोना संक्रमण में आई तेज़ी, बिना डॉक्टर-अस्पताल के क्या हाल होगा?

भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण अब ख़तरनाक स्थिति में पहुँच गया है। यह सिर्फ़ इसलिए नहीं कि भारत में हर रोज़ संक्रमण के मामले दुनिया में सबसे ज़्यादा आ रहे हैं या फिर दुनिया में तीसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है। यह उससे कहीं ज़्यादा घातक इसलिए है कि देश में संक्रमण वहाँ फैल रहा है जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ न के बराबर हैं। गाँवों-कस्बों और छोटे शहरों में। एक तो कोरोना संक्रमण का इलाज नहीं और दूसरे वहाँ दूसरी स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नहीं। जागरूकता की भी ऐसी ही स्थिति है जो कोरोना के संदर्भ में बेहद ज़रूरी है। अब ऐसे में क्या संक्रमण के ख़तरनाक स्थिति में होने की चिंता नहीं होनी चाहिए?

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एक ताज़ा सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण के फैलने की रिपोर्ट आई है। एसबीआई रिसर्च में कहा गया है कि जहाँ अप्रैल महीने में नये संक्रमण के मामले 23 फ़ीसदी ग्रामीण ज़िलों से आ रहे थे वे अब अगस्त में (13 अगस्त तक) 54 फ़ीसदी हो गए हैं। जुलाई में 51 फ़ीसदी नये संक्रमण के मामले ग्रामीण ज़िलों से आए थे। इससे पहले मई में 27 फ़ीसदी और जून में 24 फ़ीसदी ग्रामीण ज़िलों से। पहले अप्रैल में जहाँ 415 ऐसे ग्रामीण ज़िले थे जहाँ 10 से भी कम संक्रमण के मामले थे, अब अगस्त में सिर्फ़ 14 ऐसे ज़िले हैं जहाँ 10 से कम केस आए हैं, बाक़ी सभी में काफ़ी ज़्यादा मामले आए हैं। इसका साफ़ संकेत है कि ग्रामीण क्षत्रों में संक्रमण अब शहरों से ज़्यादा तेज़ी से फैलने लगा है। 

देश की 60 करोड़ से ज़्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार ग्रमीण क्षेत्रों में सिर्फ़ 25 फ़ीसदी लोग ही सार्वजनिक ओपीडी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच रखते हैं।

ऐसे में एक बड़ी चिंता यह है कि गाँवों में संक्रमण फैलने पर जाँच और इलाज के बिना शायद लोगों को पता भी नहीं चले कि उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ है और उनकी मौत हो जाए।

गाँवाों में डॉक्टर-अस्पताल

वैसे तो पूरे देश में ही डॉक्टर और अस्पताल की काफ़ी कमी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी ज़्यादा दुर्दशा है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि क़रीब 80 फ़ीसदी डॉक्टर और 60 फ़ीसदी अस्पताल शहरी क्षेत्रों में हैं। जबकि क़रीब 70-80 फ़ीसदी आबादी गाँवों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल के नाम पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या ज़िला अस्पताल हैं, वे तो बस राम भरोसे ही हैं, ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं। 

गाँव की दुर्दशा को छोड़िए शहरों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होने पर भी पूरे देश की स्थिति को ही देखिए। देश भर में कितने आईसीयू हैं, इसकी सटीक जानकारी तो नहीं है, लेकिन एक अनुमान है कि 80 हज़ार से लेकर एक लाख आईसीयू बेड होंगे। बेड की यह संख्या कोरोना संक्रमण से पहले की है, कोरोना संक्रमण के बाद कई मेकशिफ़्ट कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं और बेडों की संख्या कुछ बढ़ी है। हालाँकि 1.3 अरब की जनसंख्या में ये भी नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं। 

यही हाल वेंटिलेटर और आईसीयू यूनिट को लेकर भी है और कोरोना संक्रमण के तेज़ी से फैलने के बाद तात्कालिक तौर पर कुछ उपाय किए गए हैं। 

ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच अब यदि संक्रमण का पीक आना बाक़ी हो तो स्थिति कैसी होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।

एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब भारत में रिकवरी दर 75 फ़ीसदी पार हो जाएगी, तब कोरोना अपने पीक पर होगा। अभी भारत की रिकवरी रेट क़रीब 72 फ़ीसदी है। हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रिकवरी रेट और संक्रमण के पीक पर आने में कोई ठोस संबंध नहीं मिला है। 

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बता दें कि भारत में हर रोज़ अभी दुनिया में सबसे ज़्यादा मामले आ रहे हैं। भारत में 24 घंटों में कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड 69,651 मामले सामने आए हैं और 977 लोगों की मौत हुई है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 28,36,925 हो गयी है और अब तक कुल 53,866 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमित लोगों में से 6,86,395 का इलाज चल रहा है जबकि 20,96,664 लोग ठीक हो चुके हैं। महाराष्ट्र में संक्रमितों का आँकड़ा बढ़कर 6,28,642 हो गया है और 21,033 लोगों की मौत हो चुकी है। तमिलनाडु में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 3,55,449 हो गई है और अब तक 6,123 लोगों की मौत हो चुकी है। आंध्र प्रदेश में 3,16,003 लोग संक्रमित हो चुके हैं और अब तक 2,906 लोगों की मौत हो चुकी है। कर्नाटक में 2,49,590 लोग संक्रमित हो चुके हैं और अब तक 4,327 लोगों की मौत हो चुकी है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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