कोरोना की पहली लहर में बुजुर्ग ज़्यादा प्रभावित हुए। दूसरी लहर में मुख्य तौर पर युवा संक्रमित हुए। अब तीसरी लहर में क्या कौन होगा? दुनिया के कई देशों में तीसरी लहर भी आई है और भारत में भी विशेषज्ञ इसके आने की आशंका जता चुके हैं। और अब विशेषज्ञ तो यह कह रहे हैं कि तीसरी लहर में वायरस उन्हें निशाना बनाएगा जो अब तक सुरक्षित रह गए हैं। यानी बच्चे। यदि तीसरी लहर में बच्चे संक्रमित हुए तो क्या हालात होंगे, क्या इसका अंदाज़ा है? इससे निपटने की तैयारी कैसी है?
इन सवालों का जवाब कार्डियक सर्जन और नारायण हेल्थ के अध्यक्ष और संस्थापक देवी शेट्टी देते हैं। उन्होंने 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में लेख लिखकर चेताया है। वह अपनी बात के समर्थन में भारत के सबसे अच्छे वायरोलॉजिस्टों में से एक निमहंस बेंगलुरु के डॉ. रवि की भविष्यवाणी का ज़िक्र करते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि तीसरी लहर में मुख्य रूप से बच्चों पर हमला होने की आशंका है। देवी शेट्टी ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा तीसरी लहर के दौरान कोविड-संक्रमित बीमार बच्चों के प्रबंधन के लिए एक टास्क फोर्स बनाए जाने का भी हवाला दिया है। वह यह भी साफ़ करते हैं कि वह एक महामारी विज्ञानी नहीं हैं, लेकिन सामान्य ज्ञान बताता है कि वे सही हो सकते हैं।
देवी शेट्टी सबसे पहले तो अपने लेख की शुरुआत में तीसरी लहर की आशंका को लेकर बात रखते हैं। वह कहते हैं कि कोरोना वायरस ख़ुद को म्यूटेट या नये रूप में परिवर्तित कर रहा है जिससे कि वह नये लोगों को संक्रमित करे। वह कहते हैं कि पहली लहर के दौरान वायरस ने मुख्य तौर पर बुजुर्गों और दूसरी लहर में युवाओं पर हमला किया। फिर वह आगे कहते हैं कि तीसरी लहर में बच्चों पर हमले की आशंका है क्योंकि अधिकतर युवा या तो पहले ही संक्रमित हो चुके होंगे या फिर उनमें एंडी बॉडी बन चुकी होगी।
तो अब क्या रास्ता है? कोरोना टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है, लेकिन अब जाकर अगस्त महीने में 12-18 साल के उम्र के बच्चों के लिए वैक्सीन की मंजूरी मिली है। यानी देश के सभी बच्चों को टीके लगाने में वक़्त लगेगा।
अब जाहिर है इतने आईसीयू बेड से काम तो नहीं चल पाएगा। जैसे हालात कोरोना की दूसरी लहर में बने, अब इसकी आशंका है कि वैसी ही स्थिति तीसरी लहर में कहीं बच्चों के साथ न हो जाए और उन्हें बेड नहीं मिल पाएँ।
इसीलिए देवी शेट्टी तीसरी लहर के लिए तैयार रहने के लिए आग्रह कर रहे हैं। हालाँकि बच्चों के लिए आईसीयू बेड होने पर भी वह एक बड़ी चुनौती की ओर इशारा करते हैं।
देवी शेट्टी ने लेख में लिखा है कि बच्चों को एक व्यस्क की तरह नहीं माना जा सकता है। वह कहते हैं कि 2 महीने के बच्चे को आईसीयू बेड में बिना किसी पैरेंट के नहीं रखा जा सकता है। यहीं पर वह सवाल उठाते हैं कि कैसे बिना टीका लिए हुए पिता या माँ को आईसीयू में कोरोना संक्रमित बच्चे के पास भेजा जा सकता है। वह कहते हैं कि आईसीयू में एक व्यस्क को तो नर्स और डॉक्टर के भरोसे रखा जा सकता है लेकिन नवजात और छोटे बच्चों को नहीं।
लेख में वह लिखते हैं, 'माताओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने की आवश्यकता होती है, और किसी को यह सुनिश्चित करने के लिए वहाँ होना चाहिए कि बच्चा ऑक्सीजन मास्क नहीं फेंके।'
यहीं पर वह जोर देकर कहते हैं कि अब उन युवाओं को कोरोना टीका लगाना ज़रूरी है जो बच्चे के माता-पिता हैं। टीका लगाए हुए माँ-पिता ही आईसीयू में बच्चे के पास देखभाल के लिए भेजे जा सकते हैं। इसके साथ ही देवी शेट्टी यह भी कहते हैं कि यदि घर में युवा माता-पिता को टीके लगे होंगे तो बच्चों के संक्रमण का ख़तरा भी बहुत कम ही रहेगा।
लेकिन भारत में टीकाकरण की रफ़्तार काफ़ी धीमी है। सरकार ने ही ख़ुद लक्ष्य तय किया है कि वह इस साल दिसंबर तक सभी व्यस्कों को टीका लगवा देगी, लेकिन फ़िलहाल यह मुश्किल लगता है। ऐसा इसलिए कि अब तक देश में वयस्क आबादी की क़रीब 13.9 फ़ीसदी आबादी को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं जबकि 48 फ़ीसदी आबादी को एक-एक टीके लगाए गए हैं।
मौजूदा समय में औसत रूप से 51 लाख लोगों को हर रोज़ टीका लगाया जा रहा है। इस गति से दिसंबर के आख़िर तक 34 फ़ीसदी आबादी को दोनों टीके लगाए जा सकते हैं। हर रोज़ एक करोड़ से ज़्यादा टीके लगाए जाने पर लक्ष्य को प्राप्त किया जाना संभव हो सकता है।
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