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जामिया फ़ायरिंग के अभियुक्त को बचा रही है दिल्ली पुलिस?

क्या दिल्ली पुलिस ग़ैरक़ानूनी हथियार रखने और गोली चलाने के अभियुक्त को जानबूझ कर बचा रही है? क्या पुलिस इस अभियुक्त को बचाने के लिए उसे नाबालिग़ बता रही है? क्या यह ऊपर के किसी आदमी के संकेत पर किया जा रहा है?

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि शाहीन बाग में गोली चलाने वाले शख़्स गोपाल शर्मा उर्फ़ रामभक्त गोपाल को दिल्ली पुलिस ने नाबालिग बताया।
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लेकिन, चुनाव आयोग के आधिकारिक वेबसाइट पर उसके नाम से प्रमाण पत्र बना हुआ है। नाबालिक का मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाया जाता है। बालिग होने के बाद ही यह मुमकिन है। 

याद दिला दें कि बीते गुरुवार को जामिया मिल्लिया इसलामिया के बाहर गोपाल शर्मा ने गोली चला दी थी और चिल्ला कर कहा था, ‘ये लो आज़ादी।’ वहाँ खड़ी पुलिस तमाशबीन रही और उसे गोली चलाने से नहीं रोका। अभियुक्त ने हवा में तमंचा लहराया, हल्ला किया, गोली चलाई। उसके बाद पुलिस का एक अफ़सर आकर गोपाल को पकड़ पाया, गोपाल ने कोई विरोध नहीं किया।
थोड़ी देर बाद ही पुलिस ने कहा कि गोपाल नाबालिग है।

पड़ताल

सत्य हिन्दी ने अपनी पड़ताल के लिए चुनाव आयोग के आधिकारिक वेबसाइट का सहारा लिया। इस वेबसाइट के मुताबिक गोपाल शर्मा का पहचान पत्र क्रमांक यानी ईपीआईसी नंबर एनज़ेडक्यू 3264413 है। वह विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र जेवर 63 के रहने वाले हैं।
Delhi police shielding firing accused by telling him minor - Satya Hindi
उनके पिता का नाम दीपचंद शर्मा है और मतदान केंद्र प्राइमरी स्कूल रामपुर बांगर 143 है। इसके मुताबिक़, मतदान की तारीख 11 अप्रैल 2019 है। यानी इस तारीख के पहले ही गोपाल शर्मा बालिग हो चुके थे। 

Delhi police shielding firing accused by telling him minor - Satya Hindi
सवाल यह उठता है कि आख़िर पुलिस ऐसा क्यों कर रही है? क्या पुलिस ने गोपाल के उम्र प्रमाण पत्र की जाँच की थी? उसकी गिरफ़्तारी के तुरन्त बाद ही पुलिस कैसे इस निष्कर्ष पर पहुँची की वह नाबालिग़ है?
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि आख़िर पुलिस ऐसा कर ही क्यों रही है? क्या वह किसी तरह के दबाव में है, क्या ऊपर से उस पर दबाव पड़ रहा है?

पुलिस की कार्रवाई पर एक नज़र डालने से कुछ संकेत मिलता है। पुलिस के 20 से अधिक जवान व अफ़सर ठीक उसी जगह खड़े थे। किसी ने गोपाल को रोकने की कोशिश नहीं की।
पुलिस की कार्रवाई पर एक नज़र डालने से कुछ संकेत मिलता है। पुलिस के 20 से अधिक जवान व अफ़सर ठीक उसी जगह खड़े थे। किसी ने गोपाल को रोकने की कोशिश नहीं की। यह वही दिल्ली पुलिस है, जिसने जामिया मिल्लिया इसलामिया के अंदर घुस कर छात्रों को बुरी तरह पीटा था, पुस्तकालय में पढ़ रहे छात्रों को भी नहीं बख़्शा था। उसी पुलिस ने इस हमलावर को रोकने की कोशिश नहीं की। पुलिस के इस व्यवहार से कई चीजें साफ़ हो जाती हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी

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