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फ़ेसबुक कर्मचारियों की जान को बजरंग दल से ख़तरा?

क्या 100 से अधिक देशों में काम करने वाली और 3.10 अरब सब्सक्राइबर वाली अमेरिकी खरबपति कंपनी फ़ेसबुक भारत के उग्र हिन्दूवादी संगठन बजरंग दल से डरी-सहमी हुई है? क्या उसे डर है कि यदि उसने नफ़रत फैलाने वाले और कुछ चुनिंदा समुदायों को निशाना बनाने वाले पोस्ट हटाए तो उसके कर्मचारियों की जान ख़तरे में पड़ जाएगी? 
क्या उसे इसका भी डर है कि ऐसा करने से भारत में उसके व्यवसाय पर असर पड़ेगा और हाल-फ़िलहाल किए गए 5.7 अरब डॉलर का निवेश ख़तरे में पड़ जाएगा? और यह सब लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए अब तक मशहूर देश में उस संगठन के कारण हो रहा है, जिसका सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी से निकट का संबंध है और दोनों की विचारधाराओं में काफी समानता है? 
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ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि अमेरिका की मशहूर और बेहद प्रतिष्ठित पत्रिका वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी ताज़ा ख़बर में इस तरह की आशंकाएं जताई हैं और कई सवाल उठाए हैं।

निशाने पर ईसाई?

वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक़, इस साल जून में बजरंग दल के कुछ लोगों ने दिल्ली के पास स्थित एक पेन्टीकोस्टल गिरजाघर पर यह कह कर हमला कर दिया कि वह एक मंदिर को तोड़ कर उसके ऊपर बनाया गया है। उन लोगों ने गिरजाघर तोड़ दिया, पादरी को मारा-पीटा और वहां एक मूर्ति स्थापित कर दी।
facebook india scared of bajrang dal, not removed facebook Hate Post - Satya Hindi
बजरंग दल के कार्यकर्ता (फ़ाइल फ़ोटो)
इतना ही नहीं, बजरंग दल के लोगों ने इसका एक वीडियो बना कर फ़ेसबुक पर डाला जिसे 2.50 लाख लोगों ने देखा।
फ़ेसबुक इंडिया की आतंरिक सुरक्षा टीम ने पाया कि बजरंग दल 'ख़तरनाक संगठन' है, उसके पोस्ट को हटा दिया जाना चाहिए और उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। पर उसे डर है कि ऐसा करने से उसके कर्मचारियों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी और उसका व्यावसायिक हित बुरी तरह प्रभावित होगा।

भारत में फ़ेसबुक

भारत फ़ेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है, फ़िलहाल भारत में इसके 34.62 करोड़ सब्सक्राइबर हैं, जिसके 2023 में बढ़ कर 44.42 करोड़ हो जाने की संभावना है। 
मार्केट इंटेलीजेंस कंपनी टॉफ़्लर के अनुसार,वित्तीय वर्ष 2019-2020 के दौरान फ़ेसबुक ने भारत में 1,277.3 करोड़ रुपए का कारोबार किया, जो पिछले साल से 43 प्रतिशत अधिक है। इसे इस दौरान 135.7 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफ़ा हुआ।
फ़ेसबुक ने बीते दिनों ही भारतीय कंपनी रिलायंस में डिजिटल लेनदेन और ऑनलाइन बाज़ार के व्यवसायों में 5.7 अरब डॉलर का निवेश किया है।

डरा हुआ है फ़ैसबुक!

आख़िर फ़ेसबुक क्यों डरा हुआ है, यह सवाल है जो उस कंपनी के लिए ही नहीं, भारत के लिए भी ज़रूरी है। फ़ेसबुक प्रवक्ता एंडी स्टोन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा, "हम ख़तरनाक व्यक्ति व संगठन नीति को पूरी दुनिया में राजनीतिक स्थिति और पार्टी के परवाह किए बग़ैर लागू करते हैं।"
फिर भारत में क्या हुआ? स्टोन इसका बहुत ही संभल कर गोलमोल जवाब देते हैं। 
फ़ेसबुक प्रवक्ता कहते हैं कि "भारत में बजरंग दल को ख़तरनाक संगठन घोषित करने के मुद्दे पर बहस हुई और इसमें कंपनी के कर्मचारियों की सुरक्षा का मुद्दा उठा।" पर वह खुल कर यह नहीं कहते कि कंपनी ने बजरंग दल को 'ख़तरनाक संगठन' घोषित किया या नहीं।

सनातन धर्म संस्था

लेकिन वॉल स्ट्रीट जर्नल का कहना है कि फ़ेसबुक ने बजरंग दल ही नहीं, दूसरे दो उग्रवादी हिन्दू संगठनों पर भी विचार किया। कंपनी की आतंरिक टीम ने कहा कि सनातन संस्था और श्री राम सेने इस तरह के संगठन हो सकते हैं, पर उन्हें प्रतिबंधित करने से कंपनी के कर्मचारी ख़तरे में पड़ जाएंगे। सनातन संस्था ने इससे इनकार किया है, श्री राम सेने ने कोई जवाब नहीं दिया है।
कर्मचारियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिहाज से फ़ेसबुक ने भारत को 'टीयर वन' में रखा है, यानी वह इसे सबसे 'अधिक ख़तरनाक जगह' मानता है, जहाँ 'सामाजिक हिंसा की आशंका सबसे ज़्यादा' है। उसका मानना है कि उसके कर्मचारी जिन देशों में सबसे अधिक ख़तरनाक स्थितियों में काम करते हैं, उनमें भारत प्रमुख है। फ़ेसबुक की इस सूची में भारत म्याँमार, श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ है।

बीजेपी से डर!

याद दिला दें कि इसके पहले फ़ेसबुक तब ज़ोरदार विवादों में फँसा था, जब उसने तेलंगाना से चुने गए बीजेपी विधायक राजा सिंह के मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट को आतंरिक टीम के कहने के बावजूद नहीं हटाया था। फ़ेसबुक इंडिया की तत्कालीन भारत लोक नीति प्रमुख आँखी दास ने पोस्ट हटाने का विरोध यह कह कर किया था कि इससे भारतीय सरकार के साथ कंपनी के रिश्ते ख़राब होंगे और उसके व्यवसाय पर बुरा असर पड़ेगा।
इस तरह के दूसरे मामले भी आए थे। इस मामले पर देखें सत्य हिन्दी का यह वीडियो। 
फ़ेसबुक पर यह आरोप भी लगा रहा है कि इसने बीजेपी के कहने पर कुछ लोगों के फ़ेसबुक पेज को हटा दिया।

बीजेपी के कहने पर पेज हटाए

'इंडियन एक्सप्रेस' में छपी एक खबर के अनुसार, पिछले साल लोकसभा चुनाव के पहले जनवरी में बीजेपी ने 44 फ़ेसबुक पेजों की शिकायत यह कह कर की कि उन पर पोस्ट 'अपेक्षित मानकों का के ख़िलाफ़' हैं और 'तथ्यों से परे' हैं। उनमें से 14 पेज हटाए जा चुके हैं, वे इस समय फ़ेसबुक पर नहीं हैं।
जिन पेजों को हटाया गया है, उनमें से प्रमुख हैं 'भीम आर्मी', 'वी हेट बीजेपी', कांग्रेस का समर्थन करने वाले अनाधिकारिक पेज और 'द ट्रुथ ऑफ़ गुजरात'। इसके अलावा पत्रकार रवीश कुमार और विनोद दुआ के पेज भी हटा दिए गए हैं।

बीजेपी के कहने पर पेज बहाल?

इतना ही नहीं, बीजेपी ने पिछले साल नवंबर में फ़ेसबुक इंडिया से कहा कि वह 17 पेजों को प्लैटफ़ॉर्म पर वापस ले आए, दो पेजों को मनीटाइज़ कर दे। ये पेज थे 'द चौपाल' और 'ऑपइंडिया' के। मनीटाइज करने से इन्हें अपने कंटेन्ट पर बाहर से पैसे मिलने लगते।
फ़ेसबुक ने बीजेपी के कहने पर जिन 17 पेजों को बहाल कर दिया, उनमें से ज़्यादातर कन्नड़ भाषा में हैं और उन पर पोस्टकार्ड न्यूज़ से ली गई सामग्री रहती है।
'पोस्टकार्ड न्यूज़' के संस्थापक महेश वी हेगड़े हैं, जिन्हें मार्च 2018 में बेंगलुरु सांप्रदायिक बैर और नफ़रत फैलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। उन पर फ़ेक न्यूज प्रसारित करने का भी आरोप था।

मोदी के साथ फ़ेसबुक?

फ़ेसबुक पर यह आरोप भी लगा है कि भारत में वह खुलकर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ है और उनकी पार्टी और सरकार की सोशल मीडिया पर मदद कर रहा है। फेसबुक दावा करता है कि वह हर देश में निष्पक्ष रहता है, न तो वह किसी पार्टी का समर्थन करता है और न ही किसी नेता का। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर अख़बार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में उसके दावे की क़लई खोल दी है।
'वॉल स्ट्रीट जर्नल' की एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक़, फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डाइरेक्टर आंखी दास पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने और अपनी ही कंपनी के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप लगाये हैं।
'वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने कहा है कि कंपनी के कर्मचारियों के आपसी संचार के लिए बने ग्रुप पर आंखी दास ने पोस्ट किया, 'हमने उनके (नरेंद्र मोदी) के लिए सोशल मीडिया की चिनगारी सुलगाई और बाकी तो इतिहास बन गया।'
आंखी दास के कहने का मतलब यह था कि फ़ेसबुक ने नरेंद्र मोदी को उनके सोशल मीडिया कैंपेन में समर्थन किया और वह चुनाव जीत गए। बहरहाल, विवादों में फँसने के बाद आँखी दास ने इस्तीफ़ा दे दिया। वह फ़िलहाल इस सोशल मीडिया साइट से जुड़ी हुई नहीं हैं।
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आँखी दास, फ़ेसबुक इंडिया की पूर्व पब्लिक पॉलिसी निदेशक
इसी तरह अक्टूबर 2012 में दास ने कहा था, 'मोदी की बीजेपी टीम को चुनाव के पहले हमने प्रशिक्षित किया' और 'गुजरात में हमें कामयाबी मिली'।

'बीजेपी की हर तरह से मदद की'

गुजरात चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर नेता बन कर उभरे और पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना कर पेश किया। एक बार फिर फ़ेसबुक ने उनके लोगों को प्रशिक्षण दिया और उनकी हर तरह से मदद की।
बीजेपी-फ़ेसबुक साँठगाँठ समझने के लिए देखें वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का यह वीडियो। 
फ़ेसबुक में ही काम करने वाली केटी हरबर्थ ने कहा कि आंखी दास ने 2013 में नरेंद्र मोदी को 'भारत का जॉर्ज डब्लू बुश' कहा था। कंपनी के एक आंतरिक पोस्ट में इन दोनों महिलाओं के साथ नरेंद्र मोदी की तसवीर भी प्रकाशित की गई थी।
इतना ही नहीं, फ़ेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डाइरेक्टर ने 2014 में आंतरिक पोस्ट में यह भी कहा था कि उन्होंने बीजेपी के लिए लॉबीइंग की है। उन्होंने लिखा, 'बस अब वे आगे बढ़ें और यह चुनाव जीत जाएं।'
वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, आंखी दास ने आतंरिक पोस्ट में भारत के विपक्ष के बारे में अपमानजनक बातें भी कहीं। उन्होंने ऐसे ही एक आंतरिक पोस्ट में कहा था, "इंडियन नैशनल कांग्रेस के साथ तुलना कर उन्हें छोटा मत कीजिए। ओह! यह नहीं लगना चाहिए कि मैं किसी का पक्ष ले रही हूँ।"
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फ़ेसबुक प्रमुख मार्क ज़करबर्ग को चिट्ठी लिख कर कांग्रेस ने विरोध जताया था, उसके बाद बीजेपी ने भी उन्हें चिट्ठी लिखी थी।फ़ेसबुक
पर ये बातें फ़ेसबुक को जितना परेशान कर सकती हैं, उससे ज़्यादा भारत और इसकी व्यवस्था को। सवाल यह उठता है कि क्या सत्तारूढ़ दल की नीतियों को मानने वाला और उसके नज़दीक रहने वाला संगठन इस तरह किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी को डरा-धमका सकता है? 
सवाल यह है कि क्या वह किसी कंपनी के लिए इतना ख़तरनाक साबित हो सकता है कि वह उसके डर से अपनी नीतियां ही लागू न करे? सवाल यह भी है कि सरकार इस तरह की बातों पर चुप क्यों है? वह क्यों नहीं इस तरह के संगठनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती है?
सवाल यह भी है कि क्या इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय जगत में भारत की प्रतिष्ठा खराब नहीं होगी? क्या लोग भारत में निवेश करने से हिचकेंगे नहीं? शून्य से 10 प्रतिशत नीचे जीडीपी वाले देश को इन सवालों पर गंभीरता से विचार करना ही चाहिए। 
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क़मर वहीद नक़वी

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