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दुगनी आमदनी का सरकारी वादा और घटता कृषि निर्यात!

छले गए किसानों का पूरा अनुभव उन्हें यही सिखाता है कि वे किसी हाई वैल्यू फसल या मोटी कमाई के चक्कर में पड़ने के बजाए उन फसलों की खेती ही करें, जिन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की थोड़ी बहुत गारंटी होती है। इसलिए इस गारंटी का छीना जाना उन्हें किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं।  
हरजिंदर
किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाई जा सकती है, इसके लिए दो बातें अक्सर कही जाती हैं। सबसे पहले यह कहा जाता है कि भारत में कृषि उत्पादन काफी होता है और इसके निर्यात से किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। दूसरा यह कहा जाता है कि फूड प्रोसेसिंग उद्योग को बढ़ावा देकर किसानों की आर्थिक हालत रातों-रात सुधारी जा सकती है। 

इसी के साथ एक तीसरी बात भी कही जाती है कि अगर सीधे कृषि उत्पादों का निर्यात करने के बजाए उन्हें प्रोसेस करके निर्यात किया जाए तो देश, गाँव और किसान वगैरह सबका भला किया जा सकता है।
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इस सबके लिए सप्लाई चेन और वैल्यू चेन बनाने की बड़ी-बड़ी बातें भी हमें अक्सर सुनाई देती हैं। ये सारी बातें हम सब इतनी सुन चुके हैं कि अब तक इन चीजों के अर्थ समझ में आने भी बंद हो गए हैं। 

क्या है ज़मीनी हक़ीक़त?

लेकिन क्या सचमुच निर्यात से किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में कोई बड़ा काम हो रहा है? कृषि निर्यात से किसानों की आमदनी कैसे बढ़ सकती है, इसके लिए कुछ समय पहले 15वें वित्त आयोग ने एक हाई लेवल एक्सपर्ट ग्रुप बनाया था।

एक्सपर्ट ग्रुप का काम सरकार की उस महत्वाकांक्षा के लिए संभावनाओं को तलाशना था, जिसके तहत देश के कृषि निर्यात को मौजूदा 40 अरब डाॅलर से बढ़ाकर 100 अरब डाॅलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।

कितना निर्यात?

इस एक्सपर्ट ग्रुप में कई आला नौकरशाहों के अलावा निजी क्षेत्र की उन खाद्य कंपनियों के लोग शामिल थे, जो कृषि निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस साल जुलाई में आई एक्सपर्ट ग्रुप की रिपोर्ट भारत के कृषि निर्यात के बारे में बहुत कुछ कहती है।
रिपोर्ट बताती है कि भारत भले ही दुनिया का दूसरे नंबर का कृषि उत्पादक हो, लेकिन कृषि निर्यात के मामले में वह 13वें नंबर पर है। पिछले कुछ साल के निर्यात आँकड़े देखें तो कृषि कारोबार लगातार कम होता जा रहा है।

सरकारी दावे के उलट

दिलचस्प बात यह है कि कृषि निर्यात में यह कमी केंद्र में उस सरकार के बनने के साथ शुरू हुई, जिसने किसानों की आमदनी को दुगना करने का वादा किया था।
वित्त आयोग के आँकड़े बताते हैं कि 2009 से 2013 तक जहाँ भारत का कृषि निर्यात 27.2 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ रहा था, इसके बाद से 12.3 फ़ीसदी की दर से लुढ़कने लग गया।
पिछले दो साल में इसमें 1.2 फ़ीसदी की मामूली बढ़त ही देखी गई। इस साल के शुरू होते ही वह फिर लुढ़क गया, लेकिन इसमें ज़्यादा बड़ी भूमिका कोरोना संक्रमण की रही।

चावल निर्यात

देश से सबसे ज्यादा कृषि निर्यात चावल का होता है, जिसमें बासमती और ग़ैर-बासमती दोनों ही तरह के चावल शामिल हैं। यह एक ऐसा निर्यात है, जिसमें प्रोसेसिंग के नाम पर सिर्फ धान को चावल में बदला जाता है। इस निर्यात में भी पिछले कुछ समय में कमी आई है, हालांकि पिछले तीन महीनों में इसका निर्यात बढ़ने की बातें भी सुनाई दी हैं।
Farm bill 2020 : food processing industry to increase agriculture exports - Satya Hindi
देश से होने वाले जिस निर्यात में थोड़ी बहुत फूड प्रोसेसिंग होती है, वह सी-फूड या मीट निर्यात है। हालांकि इनकी प्रोसेसिंग भी प्राथमिक स्तर की ही होती है।
देश से होने वाले मीट निर्यात की मात्रा में बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा है सिवाय इसके कि पहले इसे ‘बीफ एक्सपोर्ट’ कहा जाता था, आजकल ‘बफेलो एक्सपोर्ट’ कहा जाने लगा है।

हाई वैल्यू एक्सपोर्ट!

कृषि निर्यात से किसानों की आमदनी बढ़ाने के तर्क में एक बात अक्सर कही जाती है कि इसके लिए किसानों को परंपरागत फसलों से आगे बढ़ते हुए उन हाई वैल्यू कृषि उत्पादों की ओर बढ़ना चाहिए जिनका दुनिया में बहुत अच्छा बाज़ार है। 
लेकिन दिक्क़त यह है कि इस रास्ते को अपनाने वाले बहुत से किसानों के अनुभव काफी खराब हैं। 

सबसे अच्छा उदाहरण केरल के उन किसानों का है जिन्हें कहा गया था कि वे वनीला की खेती करें तो उन्हें अच्छा लाभ होगा। बहुत से किसानों ने इस आश्वासन को पूरी गंभीरता से लिया और फसल भी अच्छी हुई, लेकिन बाद में ज़्यादातर घाटे में रहे।
यही आस्ट्रेलियाई पक्षी एमू की फार्मिंग के मामले में भी हुआ था। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं।

सरकार जो दावे करे, सच यह है कि किसानों को उस पर भरोसा नहीं है। 
देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का क्या मानना है।
ऐसे तमाम प्रयोगों में छले गए किसानों का पूरा अनुभव उन्हें यही सिखाता है कि वे किसी हाई वैल्यू फसल या मोटी कमाई के चक्कर में पड़ने के बजाए उन फसलों की खेती ही करें, जिन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की थोड़ी बहुत गारंटी होती है। इसलिए इस गारंटी का छीना जाना उन्हें किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं।  

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हरजिंदर

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