कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पिछले दो महीनों से दिल्ली की सीमा से सटे इलाक़ों में चल रहा किसान आन्दोलन मंगलवार को बेकाबू हो गया। ट्रैक्टरों पर सवार लोगों ने सभी तीनों बॉर्डर पर बैरिकेड तोड़ दिए और तयशुदा रूट से हट कर दिल्ली में दाखिल हो गए। अफरातफरी के बीच हजारों प्रदर्शनकारी दिल्ली में प्रगति मैदान और आईटीओ होते हुए लाल किले पर पहुँच गए जहां उन्होंने तिरंगा के साथ ही सिख धर्म का पवित्र झंडा निशान साहिब भी फहरा दिया।
लाल किले पर निशान साहिब
लाल किले पर निशान साहिब फहराने और कुछ देर तक किले की प्राचीर पर बने रहने के बाद प्रदर्शनकारी वहाँ से चले गए। वे लाल किला ही नहीं, दिल्ली के तमाम इलाकों को खाली कर वापस लौट गए हैं, वे पैदल चल रहे थे, हजारों की तादाद में ट्रैक्टर पर थे, पर लौट चुके हैं।
अव्यवस्था
लेकिन, मंगलवार की सुबह से अव्यवस्था और अफरातफरी का माहौल था। दिल्ली के पास जिन तीन सीमाओं पर आन्दोलनकारी किसान डटे हुए थे-सिंघु, टिकरी और ग़ाजीपुर, वहाँ पर्याप्त पुलिस व्यवस्था न होने से अफरताफरी मची हुई थी।
ट्रैक्टर परेड के लिए रूट तय थे और यह तय हुआ था कि गणतंत्र दिवस की परेड ख़त्म होने के बाद ही वे लोग कूच करेंगे। पर इसके पहले ही तीनों जगहों पर ट्रैक्टर पर सवार लोगों ने बैरीकेड तोड़ दिए और तयशुदा रूट से हट कर दिल्ली की सीमा में दाखिल हो गए।
सिंघु बोर्डर से 63 किलोमीटर, टिकरी बोर्डर से 62.5 किलोमीटर और गाजीपुर बोर्डर से 68 किलोमीटर का रूट था, जिसे होते हुए उन्हें फिर उसी जगह वापस लौट जाना था। लेकिन बैरिकेड तोड़ने के बाद लोगों को जहाँ इच्छा हुई, अंदर घुसते चले गए।
हज़ारों की तादाद में जब ट्रैक्टर सीमा से आगे बढ़ने लगे तो चारों ओर अव्यवस्था थी। जगह जगह पुलिस वालों ने बैरिकेड लगा रखी थी, लेकिन ट्रैक्टर की मदद से ये बैरिकेड तोड़ दिए गए।
लाचार पुलिस
हर जगह पुलिस वालों की तुलना में प्रदर्शनकारियों की संख्या ज़्यादा थी। कई जगहों पर लाठीचार्ज किया गया, आँसू गैस के गोले छोड़े गए, पर नतीजा सिफर रहा। प्रदर्शनकारी आगे बढ़ते रहे।
एक जगह पुलिस कार्रवाई की वजह से ट्रैक्टर पलट गई, उस पर सवाल एक व्यक्ति की मौत हो गई।
आईटीओ के पास बड़ी तादाद में पुलिस वाले थे और उन्होंने भीड़ को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया, आँसू गैस के गोले छोड़े। लेकिन यहाँ भी प्रदर्शनकारियों की तादाद ज़्यादा थी, क्योंकि सभी जगहों से लोग यहीं आ रहे थे। कुछ जगहों पर हथ में तलवार लिए लोग सड़क पर घूम रहे थे, पर सांकेतिक ही था क्योंकि उन्होंने किसी पर हमला नहीं किया। इसी तरह घोड़े पर सवार निहंग भी कुछ जगहों पर दिखे, पर वह भी सांकेतिक ही था। उन्होंने किसी अहिंसक वारदात को अंजाम नहीं दिया।
प्रदर्शनकारी जल्द ही लाल किला पहुँच गए और उसकी प्राचीर पर चढ़ कर तिरंगा झंडा फहरा दिया। लेकिन उन्होंने इसके साथ ही सिखों का पवित्र निशान साहिब का झंडा भी फहरा दिया।
लाल किला परिसर और उसके आसपास हज़ारों किसान और सैकड़ों ट्रैक्टर दिख रहे थे। पहले तो प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जब तक सरकार उनकी मांगे नहीं मानेगी, वे लाल किले से नहीं हटेंगे। पर बाद में यह कह कर हट गए कि उन्हें जो संकेत देना था, दे दिया, वे हिंसा नहीं चाहते और लौट रहे हैं।
किसान संगठन ने पल्ला झाड़ा
संयुक्त किसान मोर्चा के कंवलप्रीत सिंह पन्नू ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि लाल किला पहुँचने वाले उनसे जुड़े हुए नहीं हैं। उन्होंने कहा कि एक दिन पहले ही एक किसान संगठन ने ट्रैक्टर परेड की रूट को मानने से इनकार कर दिया था।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी किसानों से अपील की थी कि वे तय रूट पर ही ट्रैक्टर ले कर चलें, पर कोई उनकी बात सुन नहीं रहा था। यह साफ था कि प्रदर्शन अपने ही नेता की बात नहीं मान रहे थे।
तैयार नहीं थी पुलिस
दूसरी ओर यह भी स्पष्ट हो गया कि पुलिस इसके लिए पहले से तैयार नहीं थी। दिल्ली पुलिस ने पहले ट्रैक्टर परेड की अनुमति देने से यह कह कर इनकार किया था कि गणतंत्र दिवस पर इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब होगी। इसी बिना पर वही सुप्रीम कोर्ट भी गई थी। कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार किया था। दिल्ली पुलिस इसके अलावा यह भी कह रही थी कि पाकिस्तान से संचालित 300 ट्विटर हैंडलों से पता चलता है कि ट्रैक्टर परेड में गड़बड़ी की जाएगी।पुलिस के अपने बयानों के मुताबिक भी उसकी तैयारी नही थी। पर्याप्त संख्या में पुलिस वाले तैनात नहीं थी। लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले छोड़ने के बावजूद प्रदर्शनकारियों की तादाद इतनी ज्यादा और पुलिसवालों की इतनी कम थी कि अफरातफरी मची रही, प्रदर्शनकारी आगे बढते रहे।
पंजाब के अलग-अलग इलाकों से आन्दोलनकारी किसान जब हरियाणा होते हुए दिल्ली की ओर कूच कर रहे थे, उन्हें रोकने के लिए हरियाणा पुलिस ने जगह-जगह रास्ता काट दिया था, नेशनल हाईवे तक को खोद डाला था। लेकिन मंगलवार को पुलिस की कोई तैयारी नहीं दिख रही थी।
क्यों बेकाबू हुई भीड़?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि दो महीने तक सीमा पर बैठे रहने और सरकार के साथ नौ दौर की बातचीत नाकाम होने के बाद लोगों में निराशा घर कर गई थी।जिस तरह सरकार किसी सूरत में क़ानून वापस नहीं लेने की जिद पर अड़ी हुई थी, उससे किसानों को लगने लगा था कि अब उनकी कोई नहीं सुन रहा है। ऐसे में वे दिल्ली घुस आए और सांकेतिक रूप से लाल किले पर कब्जा कर लिया। अपनी बात कह वे लौट भी गए।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि किसान आन्दोलन को बदनाम करने और उन पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए बहाना ढूंढने के लिए मंगलवार की वारदात का इस्तेमाल किया जा सकता है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसानों के बीच दूसरे तत्व घुस आए हों।
सवाल यह है कि जब सरकार किसी मुद्दे पर बिल्कुल अड़ जाए, प्रदर्शनकारियों की कोई बात न सुने, थोड़ा भी झुकने को तैयार न हो तो भीड़ा का बेकाबू होना ताज्जुब की बात नहीं है। ऐसी भीड़ उनकी बात भी नहीं सुनती है जिनके बुलावे पर वह आती है। मंगलवार को दिल्ली में यही हुआ।
अपनी राय बतायें