जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और पनपते उद्योग ग्लोबल वॉर्मिंग को तेज़ कर रहे हैं।रिपोर्ट के अनुसार, यदि दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो भारत को साल 2015 की तरह जानलेवा गर्म हवाओं का सामना करना पड़ सकता है। साल 2015 में गर्म हवाओं के चलते भारत में 2,500 लोगों की मौत हुई थी। दक्षिण कोरिया में 'इंटरगवर्नमेंट पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज' (आईपीसीसी) के 48वें सत्र में सोमवार को यह रिपोर्ट जारी की गई है।
क्या है ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन
हमारा वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीन हाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि शामिल हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह परत और भी मोटी होती जा रही है। ऐसे में यह परत धरती से टकराकर लौट रही सूर्य की अधिक किरणों को रोकती है और इससे तापमान बढ़ रहा है। इसे ही आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। ग्रीन हाउस गैसों का प्रमुख कारण एसी, फ्रिज, कम्प्यूटर, स्कूटर, कार आदि हैं।क्यों मोटी हो रही है ग्रीन हाउस गैसों की परत
ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होने का प्रमुख कारण है कार्बन डाइ ऑक्साइड का बढ़ना। कार्बन डाइ ऑक्साइड तब बनती है जब हम पेट्रोलियम ईंधन जलाते हैं। कोयला भी बहुत ज़्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस बनाता है। जंगलों की कटाई के कारण कार्बन डाइऑक्साइड की ज़्यादा मात्रा वातावरण में घुल रही है। दूसरी ग्रीनहाउस गैसों मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ा है। लेकिन कार्बन डाई अॉक्साइड का उत्सर्जन पिछले 10 से 15 सालों में 40 गुना तक बढ़ गया है।रिपोर्ट में भारत के कोलकाता और पाकिस्तान के शहर कराची के बारे में बताया गया है कि इन शहरों को घातक गर्म हवाओं का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 150 वर्षों में दिल्ली के तापमान में एक सेल्सियस, मुंबई में 0.7 सेल्सियस, कोलकाता में 1.2 सेल्सियस, चेन्नई में 0.6 सेल्सियस तापमान बढ़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शहरों को जलवायु परिवर्तन के नुकसान से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की ज़रूरत है।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में लिखा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में करोड़ों लोग पानी के लिए इन्हीं ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। यह फ़िक्र की बात है क्योंकि इन्हीं ग्लेशियरों से खेती और पीने के लिए पानी की ज़रूरत पूरी होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा बढ़ा है और जंगलों में आग लगने की भी कई घटनाएं दुनियाभर में हो चुकी हैं। घटते संसाधनों और बढ़ते औद्योगीकरण ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है, जिसे जल्दी सुलझाना बेहद ज़रूरी है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मानसूनी क्षेत्रों में ज़्यादा वर्षा होगी जिससे हमें बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाओं का सामना करना होगा।
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