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प्रतीकात्मक तसवीर।

कोरोना: मुसीबत के वक़्त प्राइवेट अस्पताल पीछे, सरकारी अस्पतालों के कंधों पर जिम्मेदारी

कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ इस जंग में देश को सरकारी अस्पतालों का ही सहारा है क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों का जैसा सहयोग इस वक्त मिलना चाहिए था, वह सिरे से नदारद है। कहा जा सकता है कि प्राइवेट अस्पताल कोरोना संक्रमितों के इलाज़ से नाक-मुंह सिकोड़ रहे हैं। 

प्राइवेट अस्पतालों में भारत के कुल हॉस्पिटल बेड्स के दो-तिहाई बेड हैं और 80 फ़ीसदी वेंटिलेटर हैं, जो सिर्फ़ 10 फ़ीसदी कोरोना मरीजों के इलाज में काम आ रहे हैं। भारत में 2.4 लाख करोड़ का प्राइवेट हेल्थ सेक्टर इस वक्त एक तरह से किनारे हो गया है और सारा बोझ सरकारी अस्पतालों पर आ गया है। 

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देश भर में अधिकतर प्राइवेट अस्पतालों ने ख़ुद को इस महामारी के वक्त लोगों से दूर कर लिया है। यहां तक कि ऐसे मरीज जो कोरोना से संक्रमित नहीं हैं, उनके इलाज के लिए भी प्राइवेट अस्पताल और डॉक्टर्स आगे नहीं आ रहे हैं। 

अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पटना से मुंबई तक चल रहे प्राइवेट अस्पतालों के प्रबंधनों की ओर से इसके लिए कई कारण बताए जाते हैं। उनके मुताबिक़, लॉकडाउन, अपने डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ़ के संक्रमित होने का डर इसके लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा उन्हें इस बात का भी डर है कि ऐसे मरीज जो दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं, कोरोना संक्रमितों का इलाज करने पर वे भी उनके अस्पताल में नहीं आएंगे। 

केंद्र सरकार की ओर से भी इस महामारी के दौरान प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों के लिए कोई साफ़ दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं।

बिहार सरकार ने दी चेतावनी

बिहार भी इसी परेशानी से गुजर रहा है। पटना में तीन सरकारी अस्पतालों पर ही कोरोना संक्रमितों के इलाज का भार है और प्राइवेट अस्पताल ग़ायब हैं। बिहार के स्वास्थ्य महकमे के प्रमुख सचिव संजय कुमार को इस बारे में आदेश जारी करना पड़ा कि प्राइवेट अस्पताल सेवाओं को शुरू करें और उन्होंने ऐसा न करने पर कार्रवाई की चेतावनी दी। 

मुंबई जो कोरोना वायरस के संक्रमण से बुरी तरह त्रस्त है, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, वहां मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजा जा रहा है और यहां तक कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों को भी अस्पताल में भर्ती होने के लिए घंटों तक इंतजार करना पड़ रहा है। जबकि उन्हें तुरंत इलाज मिलना चाहिए। 

महाराष्ट्र ने प्राइवेट अस्पतालों पर कोरोना के मरीजों के इलाज को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन फिर भी कई अस्पताल कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे हैं। 

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बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के अतिरिक्त आयुक्त सुरेश काकानी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि कुल मरीजों में से 80 फ़ीसदी का इलाज बीएमसी की ओर से किया जा रहा है और प्राइवेट अस्पताल की ओर से सिर्फ़ 20 फ़ीसदी का। जब मरीजों की ओर से प्राइवेट अस्पतालों की शिकायत की गई तो बीएमसी ने 25 अप्रैल को आदेश दिया कि सभी प्राइवेट नर्सिंग होम और क्लीनिक्स काम चालू करें। 

दिल्ली में भी यही हाल

इसी तरह दिल्ली में भी सारा भार सरकारी अस्पताल ही उठा रहे हैं। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें इस बात की शिकायत मिली है कि प्राइवेट अस्पताल लॉकडाउन के दौरान मरीजों का इलाज करने से मना कर रहे हैं और डायलिसिस करने से पहले कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट लाने के लिए दबाव बना रहे हैं। 

प्राइवेट अस्पतालों के रवैये से नाराज होकर दिल्ली सरकार को 15 अप्रैल को चेतावनी जारी करनी पड़ी और मरीजों का इलाज न करने पर रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने जैसा सख़्त क़दम उठाने की भी बात सरकार ने कही।

सिर्फ मुनाफ़ा कमाना मक़सद?

ऐसे में यह क्यों नहीं कहा जाना चाहिए कि प्राइवेट अस्पताल सिर्फ मुनाफ़ा कमाने के लिए काम करते हैं। वैश्विक महामारी और भगवान भरोसे स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश भारत में इस समय प्राइवेट अस्पतालों को सरकारी अस्पतालों के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए था, चिकित्सा धर्म निभाना चाहिए था, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं दिखता। 

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क़मर वहीद नक़वी

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