नेपाल के साथ रिश्तों में आ रही खटास के बीच अब लगता है भारत ने नये सिरे से बातचीत का प्रयास शुरू कर दिया है। सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत सीमा विवाद पर नेपाल के साथ बातचीत करने का इच्छुक है, लेकिन पहले के पी ओली सरकार को इसके लिए 'अनुकूल माहौल' और 'सकारात्मक स्थिति' तैयार करनी होगी।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि यह संदेश भेजा गया है कि ओली सरकार सीमा विवाद वाले मामले में नये मैप को संसद से मंजूरी की प्रक्रिया को रोके और बातचीत को आगे आए। हालाँकि इस ख़बर की सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है।
इन्हीं दावों के बीच नेपाल ने तो कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के इलाक़ों को शामिल करते हुए नया मैप तक बना दिया। यही विवाद की मुख्य वजह है। नेपाल का कहना रहा है कि उसने बातचीत से इस मुद्दे के हल के लिए प्रयास किए लेकिन भारत की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच ‘रोटी और बेटी’ का संबंध है और दुनिया की कोई ताक़त इसे तोड़ नहीं सकती।
उन्होंने कहा, ‘हमारे बीच केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध नहीं हैं बल्कि आध्यात्मिक संबंध भी हैं और भारत इसे कभी भूल नहीं सकता...। भारत और नेपाल के बीच संबंध कैसे टूट सकते हैं?’
बता दें कि नेपाल ने अपने नए नक्शे को मंजूरी देने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाई है। नये मैप में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा शामिल हैं। ये उत्तराखंड के क्षेत्र हैं लेकिन नेपाल स्वामित्व का दावा करता है। विदेश मंत्रालय ने 13 जून को प्रतिनिधि सभा में विधेयक के पारित होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि ये दावे ऐतिहासिक तथ्य या सबूतों पर आधारित नहीं हैं।
नेपाल प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित विधेयक अब उच्च सदन, राष्ट्रीय सभा में है। सदस्य भारत के साथ शीघ्र बातचीत का आह्वान कर रहे हैं।
हालाँकि, बातचीत का भारतीय प्रस्ताव अब ओली सरकार की प्रतिक्रिया पर निर्भर है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से लिखा है, 'अगर ओली सरकार, उच्च सदन में विधेयक के पारित कराने के पीछे नहीं पड़ती है तो इसे एक अनुकूल और सकारात्मक माहौल बनाने के रूप में देखा जाएगा।'
विधेयक पारित होने पर भी आधिकारिक प्रक्रियाओं में राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और संशोधन की अधिसूचना शामिल है। सूत्रों ने कहा, 'अगर इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है और तार्किक निष्कर्ष नहीं दिया जाता है, तो इसे एक ऐसे माहौल में योगदान के रूप में भी देखा जा सकता है जहाँ द्विपक्षीय वार्ता हो सकती है।
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