अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को निशाना बना कर उसे ध्वस्त करने की क्षमता रखने वाला चौथा देश भारत बन गया। भारत ने बुधवार की सुबह लो अर्थ ऑर्बिट में पहले से तय एक सैटेलाइट को निशाना बनाया और उसे ध्वस्त कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में इसका एलान किया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत किसी देश को इसका निशाना नहीं बनाएगा न ही किसी को लक्ष्य में रख कर यह हथियार तैयार किया गया है।
नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान का हमेशा शांतिपूर्ण इस्तेमाल ही किया है। इसने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम का फ़ोकस दूरसंचार और मौसम की भविष्यवाणी जैसे मामलों पर ही किया। पर अब यह ज़रूरी हो गया था कि भारत सुरक्षा के मामले में भी कुछ करे और इसमें अंतरिक्ष विज्ञान की मदद ले। प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम से जुड़े तमाम वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंंने कहा कि इस पर हर देशवासी को गौरव होना चाहिए। इस कार्यक्रम का नाम 'मिशन शक्ति' रखा गया था।
'भारत के पास क्षमता पहले से थी'
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश (इसरो) के पूर्व प्रमुख माधवन नायर ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 'मील का पत्थर' क़रार दिया। उन्होंने इसे एक बड़ा कदम बताते हुए कहा कि भारत के पास इसकी क्षमता पहले से थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह टेस्ट सैटेलाइट रहा होगा।
लेकिन प्रधानमंत्री के इस एलान पर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। पहला सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग ने इसके लिए प्रधानमंत्री को पहले से अनुमति दी थी, क्योंकि चुनाव की आचार संहिता लागू हो चुकी है। ऐसे में वह सरकार की किसी उपलब्धि का एलान इस तरह सरकारी मीडिया का इस्तेमाल करते हुए नहीं कर सकते। एक दूसरा सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री को इस तरह एलान करना चाहिए? कहा जा रहा है कि यह देश की सुरक्षा का मामला है और इस तरह इसका प्रचार नहीं किया जाना चाहिए।
मोदी सरकार ने इसका चुनावी फ़ायदा उठाना शुरू भी कर दिया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है और कहा है, 'देश सुरक्षित हाथों मे है।'
रक्षा अनुसंधान व विकास परिषद के पूर्व प्रमुख और नीति आयोग के सदस्य वी. के. सारस्वत ने इस अनूठी उपलब्धि बताते हुए कहा है कि इससे दूसरे देश भारत पर अंतरिक्ष युद्ध थोपने की हिम्मत नहीं करेंगे।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा कि यूपीए सरकार ने ए-सैट कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसका फल आज मिला है। उन्होंने इसके साथ ही देश के वैज्ञानिकों को इसके लिए बधाई भी दी।
ग़ौरतलब है कि अंतरिक्ष हथियार कार्यक्रम की शुरुआत डीआरडीओ ने साल 2012 में ही कर दी थी। उस समय तक सिर्फ़ अमेरिका और रूस के पास ये हथियार थे, लेकिन चीन इस पर गुपचुप काम कर रहा था। चीन की गतिविधियों को देखते हुए भारत ने इस पर शोध शुरू कर दिया। यह हथियार दरअसल उपग्रह ही होता है, जिसमें बम लगा दिया जाता है। दुश्मन का उपग्रह जिस कक्षा में होता है, ठीक उसी कक्षा में इस उपग्रह को छोड़ा जाता है ताकि वह उस उपग्रह से टकरा जाए और उसे नष्ट कर दे। इसका ख़तरा यह है कि परमाणु विकिरण के अंतरिक्ष में भी फैलने का डर रहता है। अब तक किसी देश ने इस हथियार का इस्तेमाल नहीं किया है। पर भविष्य में इसके इस्तेमाल से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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