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चिदंबरम के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए इतनी जल्दबाज़ी में क्यों है सीबीआई?

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने को लेकर आख़िर सीबीआई इतनी जल्दबाज़ी में क्यों है। जबकि आईएनएक्स मीडिया मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर अदालत ने 25 जनवरी को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। तब से अब तक लगभग सात महीने बीत चुके हैं लेकिन अब अचानक इस मामले में अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका भी खारिज कर दी है और सीबीआई चिदंबरम की गिरफ़्तारी के लिए उनके घर पर दबिश दे रही है।
विपक्षी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ सीबीआई की कार्रवाई को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। जैसे, लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव, मायावती, चंद्रबाबू नायडू ने सीबीआई की कार्रवाई की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए थे। इन नेताओं का कहना सिर्फ़ इतना था कि लंबे समय से ऐसे मामले जो ठंडे बस्ते में थे, ऐन लोकसभा चुनाव से पहले जाँच एजेंसी ने विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ उन मामलों की फ़ाइल खंगालने का काम शुरू कर दिया था, लेकिन ऐसा क्यों। क्या विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सीबीआई नियमों-क़ानूनों का भी ख्याल नहीं रखती। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को बंद पिंजरे का तोता तक कह चुका है। 
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चिदंबरम के वकील ने भी सीबीआई से यही सवाल पूछा है कि आख़िर किस नियम के तहत उनके मुवक्किल से यह कहा गया कि वह दो घंटे के अंदर जाँच एजेंसी के सामने पेश हों। चिदंबरम के वकील अर्शदीप सिंह खुराना ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा कि सीबीआई के नोटिस में इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि आख़िर क़ानून के किस प्रावधान के तहत उनके मुवक्किल को दो घंटे के भीतर पेश होने के लिए कहा गया है। 
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एएनआई के मुताबिक़, खुराना ने कहा कि उन्होंने सीबीआई को एक पत्र लिखकर कहा, ‘मेरे मुवक्किल की याचिका पर बुधवार सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इसलिए, मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप शीर्ष अदालत में सुनवाई होने का इंतजार करें और मेरे मुवक्किल के ख़िलाफ़ किसी तरह की जोर-जबरदस्ती न करें।’
खुराना ने कहा कि इस मामले में चिदंबरम क़ानून के द्वारा उन्हें मिले सभी अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं और उनकी जमानत याचिका को निरस्त किये जाने के मामले में राहत देने के लिए उन्होंने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
आईएनएक्स मीडिया मामले में मंगलवार शाम को सीबीआई की एक टीम उनके घर पर पहुँची थी लेकिन कांग्रेस नेता वहाँ नहीं मिले थे। इससे पहले मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 

अदालत ने की थी सख़्त टिप्पणी

मंगलवार को अदालत ने चिदंबरम की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए बेहद सख़्त रुख दिखाया था। अदालत ने कहा था कि उन्हें सिर्फ़ इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती कि वह सांसद हैं। जस्टिस सुनील गौर ने कहा था, ‘इस मामले में पहली नज़र में तो तथ्य सामने आये हैं वे यह बताते हैं कि याचिकाकर्ता ही इस मामले का सूत्रधार है और वही इस मामले का मुख्य साज़िशकर्ता भी है।’ मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुनील गौर ने कहा था कि यह कहना अतिश्योक्ति होगा कि चिदबंरम पर लगे आरोप निराधार हैं, राजनीति से प्रेरित हैं और बदले की भावना से लिये गये हैं। जस्टिस गौर ने कहा था कि यह एक आर्थिक अपराध है और इस मामले से सख़्ती से निपटा जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि इतने बड़े आर्थिक अपराध के मामले में जाँच एजेंसी के हाथों को बाँधकर नहीं रखा जा सकता।
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लोकतंत्र का अपमान: कांग्रेस

चिदंबरम के बुरी तरह घिरने के बाद कांग्रेस ने इस कार्रवाई को राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया है। कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि चिदंबरम और उनके परिवार के ख़िलाफ़ अत्याचार हो रहा है और यह पूरी तरह क़ानून और लोकतंत्र का अपमान है। तिवारी ने कहा कि अज्ञानता और अहंकार का अभिमान एक बेहद ही घातक कॉकटेल है। 

क्या है आईएनएक्स मीडिया मामला?

आरोप है कि 2007 में कार्ति चिदंबरम ने अपने पिता पी. चिदंबरम के ज़रिए आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश प्रमोशन बोर्ड से विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाई थी जबकि विदेशी निवेश के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की सलाहकार समिति की इजाज़त लेना ज़रूरी है। आरोप है कि इस मामले में सभी नियमों को ताक पर रखा गया था। हालाँकि चिदंबरम सीबीआई के इन आरोपों को ख़ारिज़ करते रहे हैं और कहते रहे हैं कि विदेशी निवेश के प्रस्तावों को मंज़ूरी देने में कोई भी गड़बड़ी नहीं की गयी है। उस दौरान चिदंबरम केंद्र में वित्त मंत्री थे। इस मामले में सीबीआई ने 15 मई, 2017 को एफ़आईआर दर्ज की थी। आरोप है कि कार्ति ने ही आईएनएक्स मीडिया की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी को पी. चिदंबरम से मिलवाया था। यह भी आरोप हैं कि आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाने में कार्ति चिदंबरम ने घूस के तौर पर मोटी रकम ली थी। इस मामले में कार्ति चिदंबरम को गिरफ़्तार भी किया गया था। हालाँकि बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई थी। फिर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर जाँच शुरू कर दी थी।

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क़मर वहीद नक़वी

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