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बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा पर कोरोना की आड़ में नस्लीय टिप्पणियाँ क्यों?

क्या हम भारतीय भी उतने ही नस्लीय हैं जितने कि दुनिया के दूसरे कई हिस्सों के कुछ लोग? यह सवाल इसलिए कि देश की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाने वाली ज्वाला गुट्टा पर ऐसा ही नस्लीय हमला किया जा रहा है।

दरअसल, जिन ज्वाला गुट्टा के बैडमिंटन में मेडल जीतने पर भारत का गौरव और भारत की महान बेटी जैसी तारीफ़ें की जाती रही हैं, उन्हें अब ट्रोल और आईटी सेल वाले 'हाफ़ कोरोना' जैसे शब्दों से निशाना बना रहे हैं। यह बात ख़ुद ज्वाला गुट्टा ने कही है। उन्होंने कहा है कि किसी मुद्दे पर बहुमत से अलग विचार रखने पर उन्हें 'चीन का माल', 'हाफ़ चाइनीज', 'चिंकी' जैसे शब्दों से ट्विटर पर पहले से ही निशाना बनाया जाता रहा है, लेकिन कोरोना वायरस के आने के बाद अब उन्हें कोरोना के नाम पर हमला किया जा रहा है। वह कहती हैं कि ये वही लोग हैं जो आमने-सामने मिलने पर मेरे साथ सेल्फ़ी लेते हैं। 

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ज्वाजा गुट्टा से पहले नस्लीय भेदभाव का शिकार होने का ऐसा ही सनसनी आरोप 2017 में मिज़ोरम के तत्कालीन मुख्यमंत्री लाल थनहवला ने लगाया था। उनका कहना था कि उन्हें अपने देश में कई बार यह भेदभाव झेलना पड़ा है। तब उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘नस्लीय भेदभाव इस देश की सबसे ख़राब चीज है। मैंने ख़ुद इसका कई बार सामना किया है। ये मूर्ख लोग हैं जिन्हें अपने देश के बारे में नहीं पता होता है।’ थनहवला का कहना था कि यह सिर्फ़ आम लोगों की बात नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे राजनेता सभी पार्टियों में हैं जिनके पास भारत का मूल विचार नहीं है।

हाल की नस्लीय टिप्पणियों के बाद ज्वाला गुट्टा ने इस पर 'द इंडियन एक्सप्रेस' में एक लेख लिखा है। वह लिखती हैं, 'जब हम किसी को कोरोना या चीनी वायरस कहते हैं तो हम भारतीय यह नहीं समझते हैं कि हमारे यहाँ मलेरिया के मामलों की एक बड़ी संख्या है और हर साल 2 लाख से अधिक भारतीय टीबी यानी तपेदिक से मर जाते हैं। यह संक्रामक है और मलेरिया के ज़्यादा मामले हमारे देश के ख़राब स्वच्छता मानकों के कारण हैं। अब, कल्पना कीजिए कि यदि विदेश में किसी भारतीय को मलेरिया या टीबी वाहक कहा जाए तो।'

लेख में ज्वाला गुट्टा ने लिखा है कि कैसे उन्हें अपने जन्म से लेकर अब तक नस्लीय टिप्पणियों का शिकार होना पड़ रहा है। वह लिखती हैं कि चीन मूल की माँ की बेटी के तौर पर पलना-बढ़ना आसान नहीं रहा। वह लिखती हैं कि जब वह छोटी थीं तो उन्हें लगता था कि लोग उन्हें इसलिए ऐसा कहते थे क्योंकि वह चेहरे से कुछ अलग दिखती हैं। वह लिखती हैं कि वह तब नस्लीय भेदभाव के नज़रिये को नहीं समझ पाई थीं। वह कहती हैं कि जब कभी भी उस बड़े परिवार में ही अलग विचार रखती थीं तो कहा जाता था कि 'यह तुम्हारी ग़लती नहीं है- यह सिर्फ़ वह चीज है जो तुम्हारी चीनी माँ ने सिखाया है'।

वह आगे कहती हैं, 'जब मैं 20वें साल में प्रवेश कर रही थी तब इन शब्दों ने मुझे झकझोरा। मुझे लगा कि कैसे इनमें से कोई भी शब्द स्वीकार्य नहीं हैं। मैंने उत्तर-पूर्व के हमारे अपने लोगों के साथ भेदभाव होते देखा, हिंसा होते देखी, यहाँ तक कि बड़े शहरों में भी। 

ट्रोलिंग और आईटी सेल की बात करते हुए ज्वाला कहती हैं कि भारत में चीन के लोगों के बारे में कई ग़लत धारणाएँ हैं कि उन्हें कोई स्वतंत्रता नहीं है, और उनमें से कोई भी ख़ुश नहीं है क्योंकि वहाँ एक तानाशाही प्रणाली है।

आगे वह लिखती हैं, 'हालाँकि, मुझे नहीं पता कि हमारे देश में बोलने की आज़ादी कितनी है- सभी ट्रोलिंग और आईटी सेल को देखें। मैं अपने दोनों चाचा और 90 की उम्र में पहुँच चुकी नानी को देखती हूँ, जो वहाँ पूरी तरह से ख़ुश हैं। मेरी नानी अकेली रहती हैं और भारत में हमारे साथ आने से मना कर देती हैं, बावजूद इसके कि यहाँ हमारे पास रसोइयों और सहायकों जैसी आम तौर पर ज़रूरी सुविधाएँ हैं।'

अपने लेख में ज्वाला गुट्टा ने यह भी लिखा है कि कैसे उनकी माँ और परनाना भारत से जुड़े रहे थे। वह लिखती हैं, ‘मेरे परनाना भारत आए, टैगोर के साथ अध्ययन किया और अविश्वास के बीच शांति का संदेश ले जाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा 'शांतिदूत' नामित किया गया था। वह सिंगापुर-चीनी अख़बार के मुख्य संपादक थे और गाँधी की आत्मकथा का अनुवाद करना चाहते थे। इस तरह मेरी माँ उनकी मदद करने के लिए भारत आईं। वर्धा में उनकी मृत्यु हो गई और उनकी कब्र कस्तूरबा मेडिकल अस्पताल में है।’

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जिन ज्वाला गुट्टा पर नस्लीय टिप्पणी की जा रही है उन्होंने देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड, सिल्वर और ब्रान्ज मेडल जीती हैं। उन्होंने दक्षिण एशियाई गेम्स में छह गोल्ड मेडल, एशियाई चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज, कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड, सिल्वर और ब्रान्ज, उबर कप और वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं। ट्रोल और आईटी सेल वाले यदि ऐसी हस्तियों को नहीं छोड़ रहे हैं तो आम लोगों की तरह ज़िंदगी जीने वालों के साथ किस तरह का नस्लीय भेदभाव बरता जाता होगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है।
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क़मर वहीद नक़वी

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