देश भर के लोगों के मन में पिछले कुछ दिनों से एक सवाल है कि आख़िर कश्मीर के क्या हालात हैं? वहाँ क्या हो रहा है? हम मीडिया के जरिये सुन और देख रहे हैं कि कश्मीर में चप्पे-चप्पे पर सेना और पुलिस के जवान तैनात हैं, यह भी कि वहाँ के कुछ इलाक़ों से कुछ समय के लिए कर्फ़्यू हटा लिया जाता है लेकिन फिर से बंदिशों को बढ़ा दिया जाता है। लेकिन कश्मीर का आम बाशिंदा क्या सोच रहा है, केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को हटा देने के फ़ैसले पर उसका क्या कहना है, यह बात सामने नहीं आ पा रही है। लेकिन कश्मीर के हालात की एक झलक शनिवार को तब मिली जब एक कश्मीरी महिला ने विपक्षी नेताओं के साथ कश्मीर के दौरे पर गए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को अपना दर्द बताया।
कश्मीरी महिला का राहुल गाँधी को अपना दर्द बताने का यह वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ासा वायरल हो रहा है। लेकिन सवाल इससे यही खड़ा होता है कि जब केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक कश्मीर में हालात सामान्य होने का दावा कर रहे हैं तो उन्होंने विपक्षी नेताओं को वहाँ क्यों नहीं जाने दिया। और जब श्रीनगर एयरपोर्ट पर विमान के भीतर एक महिला ने राहुल गाँधी और विपक्षी नेताओं को देखा तो वह फूट-फूटकर रो पड़ी। महिला राहुल गाँधी से कहती है, ‘वे हमारे बच्चों को पकड़ लेते हैं। मेरा भाई दिल का मरीज है, उसको 10 दिन से डॉक्टर को नहीं दिखाया है। हम हर तरीक़े से तेरे साथ हैं।’ इस दौरान राहुल गाँधी उस महिला को सांत्वना देते दिखाई देते हैं। आसपास मौजूद लोग भी महिला को ढांढस बधाते हैं लेकिन महिला रोते हुए अपना दर्द बताती रहती है।
दुकानें नहीं खोल रहे लोग
इस वीडियो के सामने आने से पहले अंग्रेजी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने भी कश्मीर के ताज़ा हालात को लेकर एक ख़बर छापी थी। अख़बार के मुताबिक़, कश्मीर के सभी कस्बों में चाहे वह आतंकवाद प्रभावित दक्षिण कश्मीर हो या उत्तरी कश्मीर, सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ लोग न तो स्थानीय बाज़ारों को खोल रहे हैं और न ही सड़कों पर वाहन दिखाई दे रहे हैं। और ऐसा तब हो रहा है जब प्रशासन की ओर से प्रतिबंधों में ढील दी गई है और किसी भी अलगाववादी संगठन की ओर से बंद नहीं बुलाया गया है।‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, दवाई की दुकानों को छोड़कर कश्मीर में अन्य दुकानें बंद हैं। कश्मीर में सभी जगह दिख जाने वाली सार्वजनिक परिवहन की गाड़ी टाटा सूमो भी सड़कों पर नहीं हैं और इस वजह से लोग ऑफ़िसों में नहीं पहुँच पा रहे हैं। ख़बर कहती है बीते दो हफ़्तों में घाटी के हालात देखकर ऐसा लगता है कि यहाँ लोगों ने ख़ुद ही कर्फ्यू लगाया हुआ है और सरकार के फ़ैसले के बाद यहाँ जबरदस्त उदासी का माहौल है।
घाटी के लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि उनकी पहचान को उनसे छीन लिया गया है। इसके अलावा प्रतिबंध लगाये जाने और टेलीफ़ोन सेवा बंद कर दिये जाने से भी लोग नाराज हैं। सरकार ने घाटी में स्कूलों को खोलने की बहुत कोशिश की है लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं।
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों की तैनाती करने के साथ ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारुक़ अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और कई अलगाववादी नेताओं, राजनेताओं को हिरासत में रखा हुआ है। केंद्र सरकार और बीजेपी नेता इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य को लूटने वाला बताकर प्रचार कर रहे हैं लेकिन ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अब केंद्र सरकार उमर और महबूबा से बातचीत करने की कोशिश कर रही है। इसका मतलब सरकार को यह समझ में आ रहा है कि अंत में उसे राज्य के प्रमुख नेताओं और कश्मीर में सक्रिय संगठनों से बात करनी ही होगी।
हाल के दिनों में यह भी ख़बरें सामने आई थीं कि प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के बाद श्रीनगर में सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे। हालाँकि शुरुआत में सरकार ने इसे ख़ारिज कर दिया था लेकिन बाद में उसने छिटपुट घटनाएँ होने की बात मानी थी।
अब बात घूम-फिरकर वहीं आती है कि अगर कश्मीर के हालात सामान्य हैं, जिसका दावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर का प्रशासन कर रहा है तो फिर आख़िर क्यों राहुल गाँधी और विपक्षी नेताओं को श्रीनगर के एयरपोर्ट से लौटा दिया गया।
उन्हें मीडियाकर्मियों के साथ वहाँ जाने दिया जाता, जिससे उन्हें भी वहाँ के हालात को लेकर जानकारी मिलती और ऐसा तब हुआ जब राज्यपाल मलिक ने ख़ुद ही राहुल गाँधी को कश्मीर आने का आमंत्रण दिया और कहा था कि वे उनके कश्मीर आने के लिए विमान भेजेंगे। लेकिन जब राहुल गाँधी ने आने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया तो उन्हें श्रीनगर एयरपोर्ट से ही वापस भेज दिया गया। इसका मतलब स्पष्ट है कि कश्मीर के हालात सामान्य नहीं हुए हैं और कश्मीरी महिला ने तो वहाँ के हालात को बयां कर ही दिया। ऐसे में केंद्र सरकार को और जम्मू-कश्मीर के प्रशासन को भी इस पर फिर से सोचना चाहिए कि क्या राज्य के हालात सामान्य होने का उनका दावा सही है? और अगर अब तक हालत सामान्य नहीं हुए हैं तो ऐसा क्या किया जाना चाहिए जिससे वह राज्य के लोगों का भरोसा जीत सके और घाटी में अमन और ख़ुशहाली लौटे।
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