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मध्य प्रदेश, राजस्थान तक पहुँचा सरकार गिरने का ‘डर’

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही यह माना जा रहा था कि देश में विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को ख़तरा पैदा हो सकता है। हाल के दिनों में गोवा और कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने अपनी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। गोवा में तो कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए जबकि कर्नाटक में भी विधायकों की मंशा कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराकर बीजेपी की मदद करने की है। सरकारें गिरने का यह डर इन राज्यों से होता हुआ मध्य प्रदेश और राजस्थान तक आ पहुँचा है।
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राजस्थान के बीजेपी विधायक बीजेपी विधायक अशोक लाहोटी का कहना है कि अशोक गहलोत सरकार का यह आख़िरी बजट है और गहलोत बार-बार दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि 2 महीनों में राजस्थान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन जाएगा। 

दूसरे बीजेपी विधायक वासुदेव देवनानी ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गाँधी के इस्तीफ़े के बाद से ही कांग्रेस विधायक असहज महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी परेशान हैं और इसीलिए वह यह बयान दे रहे हैं कि राज्य के लोग उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहना देखना चाहते हैं। 

एक अन्य बीजेपी विधायक कालीचरण सराफ़ ने राजस्थान में मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणी की है। उन्होंने कहा, ‘गहलोत और पायलट के बीच अनबन की वजह से सरकार ख़तरे में पड़ गई है और यह कभी भी गिर सकती है।’ 

200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक होने ज़रूरी हैं। राजस्थान में कांग्रेस के पास 100 विधायक थे और बाद में 12 निर्दलीय विधायक पार्टी में शामिल हो गये थे। बसपा के 6, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2 और रालोद का 1 विधायक कांग्रेस की गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं और इस तरह कांग्रेस और उसके समर्थक दलों के विधायकों की संख्या 121 है। यह बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या से 20 अधिक है। लेकिन अगर बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और कुछ विधायकों ने बग़ावत कर दी तो निश्चित रूप से गहलोत सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। क्योंकि बसपा पहले भी समर्थन वापसी के मुद्दे पर कड़ा रुख दिखा चुकी है। 

राजस्थान में ख़तरा इसलिए भी ज़्यादा है कि क्योंकि कांग्रेस पहले से ही पायलट और गहलोत ख़ेमों में बुरी तरह बँटी हुई है। अब बीजेपी विधायक के यह बयान देने के बाद यह आशंका बढ़ गई है कि कहीं कांग्रेस के विधायकों में गोवा और कर्नाटक की तरह भगदड़ न मच जाए और सरकार को लेकर ख़तरा पैदा न हो। 

वैसे, यह चर्चा जोरों पर है कि अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। पार्टी को उम्मीद है कि ऐसा होने से राजस्थान में पायलट-गहलोत का झगड़ा ख़त्म होगा और वह राहत की सांस लेगी।
ऐसा ही कुछ डर मध्य प्रदेश को लेकर है। राज्य की विधानसभा में कुल 230 सीट हैं। बहुमत के लिए 116 विधायकों की ज़रूरत है। कांग्रेस के विधायकों की संख्या 114 है। चार निर्दलीय, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक के भरोसे किसी तरह कांग्रेस की सरकार चल रही है। इस तरह कुल 121 विधायक उसके पास हैं। उधर, बीजेपी के पास 108 विधायक हैं। अगर 6 विधायकों ने भी बग़ावत कर दी तो सरकार का जाना तय है।
मध्य प्रदेश में चर्चा है कि कांग्रेस के विधायक और समर्थन दे रहे विधायक भी बार-बार सरकार पर भौहें तान रहे हैं। कर्नाटक और गोवा में बहुत तेज़ी से बदले राजनीतिक हालातों के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति ‘एक्शन’ में दिख रहे हैं।

स्पीकर प्रजापति ने बिना ठोस कारण विधानसभा से ग़ैर हाजिर रहने वाले विधायकों के ख़िलाफ़ ‘कार्रवाई’ का फ़रमान सुना दिया है। स्पीकर ने विधायकों को दो टूक कह दिया है कि छुट्टी लेनी ही है तो पूर्व में सूचना ज़रूर दें। बीमारी और कार्यक्रमों का ‘बहाना’ मंजूर ना किये जाने की नसीहत भी उन्होंने विधायकों को दे दी है। स्पीकर के मौखिक निर्देशों के बाद विधायक सकते में हैं।

सूत्रों के अनुसार, स्पीकर ने बीमार होने की स्थिति में विधायकों को डॉक्टर का सर्टिफ़िकेट देने और शादी-विवाह अथवा इस तरह के अन्य कार्यक्रमों की स्थिति में आमंत्रण-निमंत्रण पत्र अथवा सूचना पत्र प्रस्तुत करने की ‘अनिवार्यता’ भी तय की है।

स्पीकर प्रजापति भले ही सदन में मिलने वाले समय के सदुपयोग के लिए विधायकों पर ‘सख़्ती’ करने की दलील दे रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि कर्नाटक और गोवा में पार्टी विधायकों द्वारा कांग्रेस को धोखा दिये जाने से मध्य प्रदेश की सरकार भयभीत है।

कांग्रेस के कई विधायक मंत्री ना बनाये जाने से ख़फ़ा हैं। तीन निर्दलीय विधायक और बीएसपी-एसपी के विधायक भी मंत्री अथवा कोई अन्य मलाईदार पद की चाहत रखते हैं। यही वजह है कि 121 विधायक होते हुए भी कमलनाथ सरकार के भविष्य पर तलवार लटकी हुई है।

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गुजरात में पहले ही कांग्रेस के पाँच विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था और वे बीजेपी में शामिल हो गए थे। हाल ही में राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के 2 विधायकों ने बीजेपी को वोट दिया था। 
ऐसे में जब देश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष जैसे अहम पदों पर बैठे लोग धड़ाधड़ अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं तो आम कार्यकर्ताओं में किस कदर हताशा होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है।

लेकिन बीजेपी, कांग्रेस के आरोपों को नकारती रही है और उसका कहना है कि कांग्रेस अपने विधायकों को नहीं संभाल पा रही है और उसके विधायकों के इस्तीफ़ा देने में बीजेपी का कोई हाथ नहीं है।

बीजेपी की बात सही भी लगती है क्योंकि कांग्रेस में लगभग हर राज्य में भगदड़ मची हुई है। कांग्रेस के लिए गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात के बाद पंजाब से भी मुश्किलें सामने आ रही हैं क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया है। सिद्धू का मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से टकराव आम है। अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी इन राज्यों में जोर-शोर से तैयारियों में जुटी हुई है लेकिन कांग्रेस गुटबाज़ी और विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से परेशान है। 

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आए 50 दिन हो चुके हैं लेकिन पार्टी अभी तक यह तय नहीं कर सकी है कि उसका अध्यक्ष कौन होगा। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता पार्टी के अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया को लेकर नेताओं पर सवाल उठा चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस का बेड़ापार होना मुश्किल दिखाई देता है। 

कांग्रेस के हालात जैसे भी हों, लेकिन किसी दूसरे दल को इस बात का अधिकार नहीं मिल जाता कि वह उसके विधायकों को ख़रीद सके। वरना विधायक क्यों इस्तीफ़ा देंगे? क्यों अपनी विधायकी को ख़तरे में डालेंगे? निश्चित रूप से उन्हें कोई प्रलोभन दिया गया होगा। विधायकों की इस तरीक़े से ख़रीद-फरोख़्त को रोकने के लिए वर्तमान में लागू दल-बदल क़ानून सख़्त नहीं है। देश में ऐसा ठोस दल-बदल क़ानून बनना चाहिए जिससे कोई भी विधायक या सांसद अपनी पार्टी को छोड़ने की सोच भी न सके। तभी सही मायनों में लोकतंत्र बचा रह सकेगा वरना लोकतंत्र बचाने के नाम पर नेता और सरकारें सिर्फ़ जुबानी जमा-ख़र्च करती रहेंगी। 

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क़मर वहीद नक़वी

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