जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महमूद मदनी गुट ने केंद्र की मोदी सरकार को देश भर में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करने की चुनौती दी है। महमूद मदनी ने कहा है कि वह चाहते हैं कि मोदी सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू कराए ताकि देश के सामने यह सच्चाई आए कि देश भर में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए रहते हैं।
दिल्ली में गुरुवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की सालाना बैठक के दौरान जब महमूद मदनी से सवाल किया गया कि यदि सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू करने का फ़ैसला लेती है तो जमीयत का क्या रुख होगा? इस पर महमूद मदनी ने कहा, ‘मेरा जी यह चाहता है कि मैं माँग करूँ कि सारे मुल्क में कर लो। पता चल जाएगा कि कितने घुसपैठिए हैं। जो असली हैं उनके ऊपर भी दाग लगाया जाता है तो पता चल जाएगा। मुझे कोई दिक़्क़त नहीं है।’
जवाब देते वक़्त महमूद मदनी के तेवर तीखे थे और लहजा तल्ख़ था। ग़ौरतलब है कि जमीयत के दोनों ही गुट मुसलिम समुदाय के बीच एनआरसी को लेकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इन संगठनों को लगता है कि देर-सबेर मोदी सरकार देशभर में एनआरसी लागू करेगी। लिहाज़ा दोनों ही संगठनों की तरफ़ से मुसलिम समुदाय से बार-बार अपील की जा रही है कि वे एनआरसी लागू होने की स्थिति में सरकार को दिखाने के लिए अपने पास सभी ज़रूरी दस्तावेज़ जमा कर लें ताकि वक़्त आने पर इनका इस्तेमाल किया जा सके।
बीजेपी का मुद्दा रहा है बांग्लादेश से घुसपैठ
बता दें कि बीजेपी बरसों से प्रचार करती रही है कि असम और बांग्लादेश की सीमा से लगे राज्यों में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों की घुसपैठ की वजह से उन राज्यों में आबादी का संतुलन बिगड़ गया है। बीजेपी इसे चुनावी मुद्दा बनाती रही है। इसी मुद्दे के सहारे बीजेपी असम, मणिपुर और त्रिपुरा में सत्ता में आई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर और उसकी निगरानी में तैयार किए गए असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में सिर्फ़ 19 लाख अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं। इनमें भी बहुत से हिंदू हैं। एनआरसी ने दरअसल, बीजेपी के दावे की पोल खोल दी है। बरसों पहले बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाकर ही बीजेपी दिल्ली में सत्तासीन हुई थी। इसीलिए महमूद मदनी चाहते हैं कि पूरे देश में इस मामले पर एक बार तसवीर साफ़ हो जाए तो यह मुद्दा ही ख़त्म हो जाए।
‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग’
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कश्मीर मुद्दे पर बाक़ायदा प्रस्ताव पारित कर कहा है 'कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और सभी कश्मीरी हमारे हमवतन हैं। कोई भी अलगाववादी आंदोलन न केवल देश के लिए बल्कि कश्मीर के लोगों के लिए भी हानिकारक है।' बता दें कि कुछ मुसलिम संगठन संविधान से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के केंद्र सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहे हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि देश के मुसलमान कश्मीर पर अलग रुख रखते हैं। इसी धारणा को बदलने के लिए जमीयत ने बाक़ायदा प्रस्ताव पारित करके कश्मीर पर रुख साफ़ किया है।
‘कश्मीर हमारा था, हमारा है और हमारा ही रहेगा’
बैठक के बाद महमूद मदनी ने कहा, ‘कश्मीर हमारा था, हमारा है और आगे भी हमारा ही रहेगा। जहाँ भारत है वहाँ हम। हम देश की सुरक्षा और अखंडता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे।' उन्होंने कहा कि केंद्र या किसी राज्य सरकार के साथ किसी भी मुद्दे पर हमारे मतभेद हो सकते हैं। लेकिन देश के सवाल पर हम सब एक हैं। बैठक में प्रस्ताव पास हुआ - ‘भारत हमारा देश है और हम इसके लिए हमेशा खड़े हैं। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह झूठ फैलाने की कोशिश कर रहा है कि भारतीय मुसलिम अपने देश के ख़िलाफ़ हैं। हम इसकी निंदा करते हैं।’
अरशद मदनी ने की थी भागवत से मुलाक़ात
बता दें कि किसी ज़माने में जमीयत उलेमा-ए-हिंद उत्तर भारत में मुसलिम धर्म गुरुओं का सबसे बड़ा संगठन हुआ करता था। लेकिन क़रीब दस साल पहले इसके अध्यक्ष मौलाना असद मदनी के इंतक़ाल के बाद यह दो गुटों में बँट गया। एक गुट की अगुवाई मौलाना असद मदनी के भाई मौलाना अरशद मदनी करते हैं जबकि दूसरे गुट के अगुवा असद मदनी के बेटे महमूद मदनी हैं। दोनों ही संगठन उत्तर भारत, ख़ासकर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलिम समाज में ख़ासा असर रखते हैं। मौलाना अरशद मदनी हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अपनी मुलाक़ात को लेकर सुर्खियों में रहे हैं।
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