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मालेगाँव पार्ट 7- प्रज्ञा के सच ‘उगलने’ से ‘टेंशन’ में थे पुरोहित

साध्वी प्रज्ञा सिंह एक बार फिर ख़बरों में हैं। वह मालेगाँव बम धमाकों के मामले में मुख्य अभियुक्त हैं और अदालत ने उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने को कहा है। प्रज्ञा फ़िलहाल ज़मानत पर हैं। सत्य हिन्दी ने मालेगाँव बम धमाकों पर एक शृंखला शुरू की है। इसकी पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं और छठी कड़ी प्रकाशित की जा चुकी है। अब पेश है इसकी सातवीं कड़ी।
नीरेंद्र नागर
पिछली कड़ी में हमने जाना था कि मुंबई हाई कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 2017 में मालेगाँव मामले के अभियुक्त ले. कर्नल पुरोहित को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था। बेंच ने कहा था कि धमाके के बाद ले. कर्नल पुरोहित ने अपने साथी रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय से जिस तरह की बात की, उससे लगता है कि वह बहुत डरे हुए थे। जजों ने पूछा कि यदि पुरोहित एक जासूस के तौर पर अभिनव भारत में घुसे थे तो वह इतने घबराए हुए क्यों थे? उन्होंने ख़ुद जाकर पुलिस या सेना को क्यों नहीं बताया कि मैं तो जासूस हूँ। 
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आइए, आज हम जानते हैं कि 23 अक्टूबर 2008 को प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ़्तारी की अफ़वाहों और उनके द्वारा सारे भेद खोल देने की ख़बरों के बीच पुरोहित और उपाध्याय में ऐसी क्या बातें हुईं जिनसे न्यायाधीशों को लगा कि पुरोहित का इन धमाकों में हाथ है। यह सारी बातचीत एटीएस द्वारा सुनी गई और रिकॉर्डिड है और चार्जशीट का हिस्सा है।

23 अक्टूबर 2008 को ले. कर्नल पुरोहित और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय के बीच कई बार बात होती है। पहली बातचीत दिन में 11:23 पर होती है जिसमें पुरोहित कहते हैं कि प्रज्ञा का भाँडा फूट चुका है। यह बात वह अंग्रेज़ी में कहते हैं - the cat is out of bag… as far as Mr Singh is concerned.। पुरोहित, प्रज्ञा सिंह को मिस्टर सिंह क्यों कहते हैं, इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला कारण यह कि या तो वह नहीं जानते थे कि प्रज्ञा स्त्री हैं या पुरुष क्योंकि वह पुरुष वेष में ही रहती थीं। दूसरा कारण यह हो सकता है कि अभिनव भारत की बैठकों में लोगों का आधे या फ़र्ज़ी नाम से ही परिचय कराया जाता हो। 

सारी बातचीत में ये दोनों मिस्टर सिंह या केवल सिंह ही बोलते हैं, कभी प्रज्ञा का नाम नहीं लेते हालाँकि बातचीत के संदर्भ से स्पष्ट हो जाता है कि वे प्रज्ञा के बारे में ही बात कर रहे हैं क्योंकि एटीएस ने उस समय ‘इंदौर में रहने वाली’ प्रज्ञा सिंह को ही हिरासत में लिया था, किसी और को नहीं जिसका सरनेम सिंह हो।

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मिस्टर सिंह का भाँडा फूट चुका है…। क़रीब साढ़े पाँच मिनट की इस बातचीत का मुख्य हिस्सा नीचे पढ़ें।

पुरोहित : जय भारत।

उपाध्याय  : सर जय भारत, बोलिए।

पुरोहित : सर, क्या आपने आज की टाइम्स ऑफ़ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस की हेडलाइन्स पढ़ी हैं?

उपाध्याय : मैंने पढ़ा है कि मोड़ासा और मालेगाँव धमाकों के लिए वे इंदौर के हिंदू जागरण मंच को दोषी ठहरा रहे हैं।

पुरोहित : यानी सिंह साब…(दोहराते हैं) सिंह साब।

उपाध्याय : अच्छा।

पुरोहित : इसका मतलब कि जहाँ तक मिस्टर सिंह का मामला है, उनका तो भाँडा फूट चुका है।

उपाध्याय : अच्छा, आप किस ख़बर के बारे में बता रहे थे, बताइए।

पुरोहित : यह वही है सर, ठीक है?

उपाध्याय : वही?

पुरोहित : हाँ सर।

इस बातचीत में उपाध्याय अब तक की पुलिस जाँच के बारे में अपने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर यह अंदाज़ा लगाते हैं कि एटीएस को अभी ज़्यादा कुछ पता नहीं चला है और वह हवा में तीर चला रहा है। उनके अनुसार, यदि पुलिस को कुछ ठोस पता चलता तो वह कहती कि हिंदू जागरण मंच से जुड़े इंदौर के फलाँ-फलाँ व्यक्ति का इसमें हाथ है और हमने उसे गिरफ़्तार कर लिया है लेकिन वह तो बस यही कह रही है कि हमने हिंदू जागरण मंच के 30 लोगों को पकड़ा है। उपाध्याय का निष्कर्ष था कि पुलिस निगाह रख रही है और अभी उसे कुछ और सूचनाओं का इंतज़ार है।लेकिन उपाध्याय का अंदाज़ा ग़लत था और उनको मालूम ही नहीं था पुलिस को तब तक काफ़ी कुछ पता चल चुका था और उस वक़्त उनकी और पुरोहित की बातचीत टैप हो रही थी। लेकिन ले. कर्नल पुरोहित उनसे ज़्यादा सतर्क थे। उन्होंने इसी बातचीत के दौरान मेजर उपाध्याय को कई बार सुझाव दिया कि आप अपना सिम बदल लें लेकिन वह तो अपने विश्लेषण में ही डूबे हुए थे। पढ़ें आगे की रोचक बातचीत।

अब हमें सावधान रहना चाहिए

उपाध्याय : मेरी समझ तो यह है कि वे अब तक मामले की तह तक नहीं पहुँचे हैं। 

पुरोहित : ठीक है, सर। मेरा एक सुझाव है आपको…

उपाध्याय : हाँ… एक…

पुरोहित : कि आप अपने लिए नया सिम ले लें।

उपाध्याय : देखो, अगर वे मामले की तह तक पहुँच जाते तो वे कहते कि अपराध का मामला दर्ज़ किया गया है, इस व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है, उसे फलाँ-फलाँ आरोप में कोर्ट में पेश किया जाएगा और मकोका लगाया जाएगा… वगैरा… वगैरा होता था।

पुरोहित : हाँ सर।

उपाध्याय : यह होती है पुख़्ता कार्रवाई।

पुरोहित : बिल्कुल सही, बिल्कुल सही सर। तो मैं आपको सजेस्ट कर रहा था सर कि…

उपाध्याय : हाँ।

पुरोहित : कि आप अपने लिए एक नया सिम ले लो।

उपाध्याय : एक और?

पुरोहित : सिम कार्ड।

उपाध्याय : ठीक है।

पुरोहित : जो आपके नाम से न हो।

उपाध्याय : ठीक है।

पुरोहित : वो कर लो तुरंत सर।

उपाध्याय : ठीक है, देखता हूँ।

पुरोहित : मैं दोपहर में आपको फ़ोन करता हूँ। वापस 2 बजे।

उपाध्याय : ठीक है।

पुरोहित : हाँ सर।

उपाध्याय : किसी बात का कोई संदेह?

पुरोहित : नहीं सर। लेकिन अब हमको बहुत सावधान रहना चाहिए।

उपाध्याय : हाँ, हमें सावधान तो रहना होगा। चलिए, दोपहर में आप फ़ोन कर लीजिए।

पुरोहित : सर!

आपने देखा कि प्रज्ञा के पकड़े जाने के अंदेशे से पुरोहित कितना घबराए हुए थे और उन्हें शक हो गया था कि उन लोगों का फ़ोन टैप हो सकता है। इसी वजह से उन्होंने मेजर उपाध्याय को सिम बदलने की भी सलाह दी।
केवल दस दिन के फ़ासले में पुरोहित के दो रूप नज़र आते हैं। एक तरफ़ तो क़रीब हफ़्ता भर पहले यानी 14-15 अक्टूबर को वह सेना के कुछ लोगों को मौखिक और लिखित में बता चुके थे कि इस कांड में प्रज्ञा सिंह और इंद्रेश कुमार का हाथ है। दूसरी ओर उनको डर लग रहा था कि प्रज्ञा कहीं गिरफ़्तार हो गई तो क्या होगा। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? पुरोहित का कौन सा चेहरा असली था?

आइए, हम आगे जानते हैं कि दिन में जैसे-जैसे नई ख़बरें आती हैं, पुरोहित और उपाध्याय अपने अगले क़दमों के बारे में क्या-क्या योजनाएँ बनाते हैं।

पुरोहित से 2 बजे बात करने के लिए कहा था लेकिन क्लास में होने या संभवतः मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो जाने के कारण वह 4 बजे के बाद ही मेजर उपाध्याय को कॉल कर पाते हैं। मेजर उपाध्याय की नज़रें तब तक टीवी पर ही लगी थीं और वह राज्यसभा में इस मामले पर हुए हंगामे के बारे में पुरोहित को बताते हैं। 

मेजर उपाध्याय पुरोहित को बताते हैं कि एटीएस के दफ़्तर के बाहर मीडिया के लोग जमा हो गए हैं और जानना चाहते हैं कि क्या सूरत से किसी को गिरफ़्तार किया गया है। लेकिन चूँकि तब तक कोई कन्फ़र्मेशन नहीं था, इसलिए मेजर उपाध्याय यही समझते हैं कि एटीएस को कोई ख़ास सूत्र नहीं मिले हैं। उनका मानना था कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी राज ठाकरे के आंदोलन की हवा निकालने के लिए इस तरह के शगूफ़े छोड़ रही है।

इसके बाद क़रीब छह बजे पुरोहित, उपाध्याय को फ़ोन करते हैं। वह बहुत घबराए हुए और परेशान थे। पूरी बातचीत कुछ यूँ हुई।

सिंह ने काफ़ी कुछ उगल दिया है…

पुरोहित : सर, गुड ईवनिंग।

उपाध्याय : गुड ईवनिंग।

पुरोहित : सर, मैं आपसे बात करने की कोशिश कर रहा था। आपको मिस्ड कॉल नहीं मिला?

उपाध्याय : नहीं तो।

पुरोहित : अभी-अभी पता चला है कि सिंह ने काफ़ी-कुछ उगल दिया है।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : बहुत टेंशन वाली बात हो गई है। आपका नाम तो नहीं आया है…

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : लेकिन मेरा नाम आ सकता है।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : इस फ़ोन से यह मेरी आख़िरी क़ॉल है। मैं आपको एक और नंबर दूँगा, जिससे मैंने कल आपको फ़ोन किया था।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : उसके बाद यह स्विच ऑफ़ हो जाएगा।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : मैं संगठन के सभी लोगों से कह दूँगा कि कोई मुझसे बात न करे।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : वे मेरी बजाय आपसे बात करेंगे या सुधाकर से।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : मुझे थोड़ा प्रेशर और टेंशन दोनों हो गया है।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : अभी मैं सॉलिड प्रेशर में हूँ।

उपाध्याय : देखिए, जब मुझसे भी मिलने कोई आया है तो ज़रूर मेरा भी नाम आया होगा। इसके बारे में कोई शक नहीं रहा क्योंकि ऐसा नहीं होता तो कोई मेरे घर पर क्यों आता?

पुरोहित : हाँ सर लेकिन ऐसा है ना, एक तो आपका नाम आया होगा क्योंकि आप संगठन के हेड हो।

उपाध्याय : हो सकता है। चाहे जो कारण हो लेकिन जाँच-पड़ताल तो शुरू हो गई है।

पुरोहित : हाँ।

उपाध्याय : जाँच-पड़ताल शुरू हो गई है मतलब हमको सावधान रहना होगा।

पुरोहित : बहुत ज़्यादा।

उपाध्याय : और…

पुरोहित : भगवान की कृपा है कि हमारी आपसी निकटता, घनिष्ठता और इस ग्रुप में मिलने के मौक़े बहुत-बहुत कम रहे हैं - पॉइंट नंबर वन। पॉइंट नंबर टू - फ़ोन पर भी हमारी बातचीत महीनों या सालों नहीं हुई।

उपाध्याय : हाँ।

पुरोहित : और इसकी कोई संभावना नहीं नज़र आती कि हम दोनों के बीच किसी संपर्क की बात सपने में भी सामने आ सकती है…

उपाध्याय : सही है।

पुरोहित : … जिससे कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई संदेह पैदा हो।

उपाध्याय : सही है। और मेरा सजेशन है कि उसने आपका नाम ले लिया है, यह कन्फ़र्म है।

पुरोहित : हाँ, यह अब कन्फ़र्म है।

उपाध्याय : ठीक है। उसने आपका नाम लिया है लेकिन वे आपको तुरंत ट्रेस नहीं कर पाएँगे, यह तय है।

पुरोहित : सर।

उपाध्याय : आप यहाँ हो कि वहाँ हो या जहाँ भी हो, चूँकि आपका नाम, पता लगाना मुश्किल है सो, यह तुरंत नहीं हो सकता। सुधाकर ने अपना नंबर बदल लिया है। सो, यह नहीं लगता कि वे आपसे सीधे संपर्क कर पाएँगे। इतना सेफ़्टी फ़ैक्टर अभी है और तीसरा, संगठन में आपका नाम कहीं है नहीं।

पुरोहित  : सर।

उपाध्याय : तो इतना सेफ़्टी फ़ैक्टर अभी है लेकिन स्वाभाविक है कि कुछ समस्याएँ तो आएँगी ही।

पुरोहित : सर।

उपाध्याय : अब इसका कैसे मुक़ाबला किया जाए तो मेरा सुझाव है कि हम कोई वकील कर लें। मुझे लग रहा था कि बिना बात के कुछ न कुछ परेशानी ज़रूर पैदा होगी और हमें उसको सुलझाना होगा।

इसके बाद वे दोनों वाई. पी. सिंह नाम के किसी वकील के बारे में चर्चा करते हैं। पुरोहित कहते हैं कि वे अजय राहिरकर से उस वकील का पता पूछकर सबको बता देंगे। इसके अलावा रमेश उपाध्याय पैसों की भी बात करते हैं। पुरोहित ने उनको सुझाव दे ही दिया था कि वे नया सिम ले लें। आख़िर में पुरोहित कहते हैं कि वे एक घंटे में फ़ोन करेंगे।

लेकिन पुरोहित का फ़ोन आता है इसके तीन-चार घंटे के बाद रात को 9 बजे। तब तक पुरोहित और उपाध्याय नॉर्मल हो चुके रहते हैं और आगे की प्लानिंग पर बात करते हैं। दोनों को लगता है कि अभी मेजर उपाध्याय पर केवल नज़र रखी जा रही है और पुलिस को कोई सबूत नहीं मिला है। 

पुरोहित के बारे में उनका ख़्याल है कि पुलिस को उनका अता-पता नहीं मालूम। लेकिन आगे भी कोई ख़तरा न हो, इसलिए तय होता है कि पुरोहित अब अपने-आपको संगठन से बिल्कुल काट देंगे और सारी ज़िम्मेदारी मेजर रमेश उपाध्याय उठा लेंगे। पढ़िए, क्या बातचीत होती है।

अब मेरा काम आपको सँभालना होगा

उपाध्याय : आप रात को चैन से सोइए। ठीक है? चूँकि मेरा नाम आ चुका है और मेरा नंबर भी ज़रूर उनके पास होगा। वे मुझपर निगाह रखेंगे। मानकर चलना चाहिए कि यह तो होगा ही।

पुरोहित : जी सर। थोड़ी और सावधानी और थोड़ा और धैर्य, यही दो सूत्रवाक्य हैं।

उपाध्याय : हाँ, ये दो बातें हैं और हमें थोड़ा तैयार भी रहना होगा। वो सब ठीक हो जाएगा जब आप एक बार (अजय) राहिरकर से बात कर लेंगे। आप कृपया…

पुरोहित : जी सर, अजय (राहिरकर) मुझे आधे घंटे में कॉल करेंगे।

उपाध्याय : मैं बहुत जल्दी में हूँ इससे पहले कि उनको या किसी को भनक लगे, मैं चीज़ों को ठीकठाक कर देना चाहता हूँ जैसा कि आप जानते हैं। हा-हा-हा।

पुरोहित : जी सर।

उपाध्याय : मैं अपने काम में बहुत ही सुव्यवस्थित हूँ।

पुरोहित : आपको होना ही चाहिए।

उपाध्याय : ओके।

पुरोहित : यह जो अब तक हुआ है, उसको देखते हुए यह मेरे लिए एक दूसरी चेतावनी है कि उसी तरह से आगे बढ़ूँ जैसा कि हमने तय किया हुआ है और मुझे अपने अतिरिक्त उत्साह पर क़ाबू रखना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप मेरी बात से सहमत होंगे और वर्किंग प्रॉसिड्यॉर के तहत अब आपको वह काम अपने ऊपर लेना होगा। इससे आपका काम तो निश्चित रूप से बढ़ेगा।

उपाध्याय : आपको सुरक्षित करने के लिए यह ज़रूरी है कि मैं यह ज़िम्मेदारी लूँ।

ख़ुद को बचाने के लिए योजना

इसके बाद उपाध्याय एक योजना के बारे में बात करते हैं जिसके तहत वह पुणे (ग्रामीण) के पुलिस अधीक्षक को चिट्ठी लिखेंगे कि चूँकि वह धर्मपरिवर्तन के विरुद्ध काम करते हैं इसलिए उन्हें ईसाई और मुसलिम संगठनों से ख़तरा है और उन्हें 24 घंटों की सुरक्षा दी जाए। उनका अंदाज़ा था कि इससे पुलिस में यह संदेश जाएगा कि वह तो ख़ुद पुलिस का निरीक्षण माँग रहे हैं - अगर उनको कुछ छुपाना होता तो वह पुलिस का पहरा क्यों माँगते!

उपाध्याय : उससे हमें यह फ़ायदा होगा कि हम तो ख़ुद ही ओपन हैं और हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं है। हा-हा-हा।

पुरोहित : बिल्कुल सही। मैं वही बोल रहा था। ख़ुद को सामाजिक-राजनीतिक संगठन बताना ही सबसे अच्छा रास्ता है।

ये सारी बातें 23 तारीख़ को हुई थीं। हमें नहीं मालूम कि पुरोहित उस रात चैन से सो पाए थे या नहीं क्योंकि उनकी ये सारी बातें मुंबई एटीएस सुन रहा था और रिकॉर्ड भी कर रहा था (पूरी बातचीत आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं)। अगले दिन यानी 24 अक्टूबर को प्रज्ञा को गिरफ़्तार किया गया और दिल्ली में सेना प्रमुख को बताया गया कि आपका कोई अफ़सर इस मामले से जुड़ा हुआ है। उसके बाद कर्नल राजीव श्रीवास्तव को पँचमढ़ी भेजा गया और उसके बाद क्या हुआ, यह हम शुरुआती कड़ियों में जान ही चुके हैं।

अब तक की सात किस्तों में हमने जाना कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर, ले. कर्नल पुरोहित और दूसरों के बारे में एटीएस के पास क्या-क्या सबूत हैं (यदि आप पिछला कोई पार्ट पढ़ने से चूक गए हों तो पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)। फ़िलहाल प्रज्ञा और पुरोहित दोनों ज़मानत पर हैं लेकिन दोनों के ख़िलाफ़ मुंबई की एनआईए अदालत में मुक़दमा चल रहा है। 

अगली कड़ी में जो कि इस सीरीज़ की अंतिम किस्त होगी, हम जानेंगे कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर, प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय तथा अन्य आठ लोगों की गिरफ़्तारी और पूछताछ के आधार पर पहले एटीएस और बाद में एनआईए ने क्या निष्कर्ष निकाला था और एनआईए अदालत ने पिछले साल यानी 30 अक्टूबर 2018 में किसके ख़िलाफ़ क्या-क्या आरोप तय किए थे। पढ़ें अंतिम किस्त - पार्ट 8 : होगा न्याय या फिर होगी इंसाफ़ की हार?

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नीरेंद्र नागर

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