पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया है कि वह अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ने में लगी है। उन्होंने कहा कि सरकार को आम जनता से कोई मतलब नहीं है, वह उनसे जुड़ी नीतियाँ नहीं ला रही है। बस, अपनी नाकामियों के लिए दूसरों पर दोष थोपने में लगी हुई है।
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डॉक्टर मनमोहन सिंह का यह बयान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि बैंकिंग उद्योग का सबसे बुरा वक़्त तब था जब डॉक्टर सिंह प्रधानमंत्री और रघुराम राजन रिज़र्व बैंक के गर्वनर थे। सीतारमण का कहना था कि बैकों का एनपीए यानी जिस क़र्ज़ पर किश्त मिलनी बंद हो जाती हो, वैसा कर्ज सबसे ज़्यादा इनके समय ही बढ़ा था।
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि बेरोज़गारी दूर करने का सही उपाय यही है कि उद्योग-धंधों को ज़्यादा से ज़्यादा प्रोत्साहन दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था इतनी बिगड़ चुकी है कि उसे दुरुस्त करने में समय लगेगा।
मनमोहन सिंह ने कहा कि निर्मला सीतारमण के बयान से साफ़ है कि सरकार जनता से जुड़ी नीतियाँ लाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर तभी लाया जा सकता है जब यह जान लिया जाए कि समस्या क्या है, पर सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
सिंह ने ये बातें महाराष्ट्र में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहीं हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।
'बदहाल हो चुका है महाराष्ट्र'
मनमोहन सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र में पिछली चार तिमाहियों में लगातार मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट आ रही है, उत्पादन कम हो रहा है, पर इस ओर सरकार का कोई ध्यान ही नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में आर्थिक विकास की गति बेहद धीमी हो चुकी है, पर सरकार पूरी तरह उदासीन है, जिससे समस्या और बढ़ रही है।उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में बिज़नेस सेन्टीमेंट बहुत ख़राब हो चुका है, कई कारखाने बंद हो चुके हैं। राज्य का हर तीसरा युवक बेरोज़गार है।
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में कृषि बेहद ख़राब दौर में है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है। किसी समय महाराष्ट्र निवेश में सबसे आगे था, पर अब किसानों की आत्महत्या के मामले में यह सबसे आगे है।
मनमोहन सिंह और निर्मला सीतारमण के बीच का यह वार-पलटवार बेहद दिलचस्प हो चुका है। वित्त मंत्री के पति परकल प्रभाकर ने इसी हफ्ते 'द हिन्दू' अख़बार में एक लेख लिख कर सरकार को सलाह दे डाली थी कि वह मनमोहन सिंह के मॉडल को अपना लें, तभी प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था की डूबती नैया को पार लगा सकेंगे। उन्होंने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा था कि इसकी कोई आर्थिक नीति है ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार की प्राथमिकता में अर्थव्यवस्था नहीं है।
निर्मला सीतारमण ने इसके तुरन्त बाद इस पर जवाब देते हुए सरकार का पक्ष रखा था। उन्होंने कहा था कि सरकार ने लोक कल्याण से जुड़े कई फ़ैसले लिए हैं और उनसे लाखों लोगों के जीवन पर असर पड़ा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि सिर्फ़ उज्ज्वला योजना से ही 8 लाख महिलाओं को फ़ायदा मिला है। उन्होंने अपने पति पर तंज करते हुए कहा था कि इन बातों की भी तारीफ की जानी चाहिए।
यह भी दिलचस्प है कि कुछ दिन पहले ही रिज़र्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की थी। ब्राउन यूनिवर्सिटी में 9 अक्टूबर को ओपी जिंदल लेक्चर के दौरान राजन ने उन कारणों का ज़िक्र किया था जिससे भारत की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल स्थिति में पहुँच गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राजन ने कहा था, ‘भारत अपनी अर्थव्यवस्था को एक हद तक इसलिए भी नुक़सान पहुँचा रहा है क्योंकि यह बिना एक मज़बूत आर्थिक दृष्टि के सत्ता का केंद्रीकरण कर रहा है।’ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मौजूदा वित्तीय घाटे ने ‘बहुत कुछ छुपाया’ और अर्थव्यवस्था की वास्तविक तसवीर को सामने नहीं आने दिया। ‘द प्रिंट’ के अनुसार, राजन ने कहा था कि वर्तमान वित्तीय घाटा अधिक था जिससे अर्थव्यवस्था की वृद्धि प्रभावित हुई। वास्तविक राजकोषीय घाटा केंद्र और राज्यों के सामूहिक आँकड़ों से 7 प्रतिशत अधिक हो सकता है।
इसके बाद ही वित्त मंत्री ने राजन को निशाने पर लिया था और कहा था कि उनके समय में सबसे ज्यादा एनपीए हो गया था।
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