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मराठा आरक्षण के आधार पर क्या दूसरे राज्यों में भी उठेगी माँग?

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को बॉम्बे हाईकोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद अब दूसरे राज्यों में क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी? क्योंकि जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं। मराठा आरक्षण के लिए जिन विशेष परिस्थितियों को आधार बताया गया है वही आधार दूसरी जातियाँ भी देती रही हैं। ये विशेष परिस्थितियाँ वे हैं जिनमें दूर-दराज़ के क्षेत्रों में लोग यदि काफ़ी बदतर स्थिति में हों तो उनको आरक्षण के लिए छूट दी जानी चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब दूसरी जातियाँ भी इसी आधार पर अपने लिए आरक्षण नहीं माँगेंगी और ऐसे में क्या बवाल नहीं मचेगा?

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अधिकतर राज्यों में कई जातियाँ आरक्षण की माँग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी तक आरक्षण की सीमा इसमें आड़े आ जाती है, क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण ही क़रीब 50 फ़ीसदी हो जाता है। यहीं पर पेच फँस जाता है। यही कारण है कि कभी गुजरात तो कभी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार करना चाहते हैं। कर्नाटक 70, आंध्र पदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में भी ज़ोरदार माँग की जाती रही है। इन राज्यों में हिंसक प्रदर्शन तक हुए।

जाट आंदोलन

जाट अपने समुदाय के लिए ओबीसी का दर्जा और आरक्षण माँग रहे हैं। दो साल पहले हरियाणा में जाट आरक्षण की माँग को लेकर हिंसक आंदोलन हुआ था। आगजनी हुई थी। महिलाओं से गैंगरेप के मामले भी आए थे। केंद्र सरकार को इस आग को बुझाने के लिए सेना उतारनी पड़ी थी। 

गुर्जर आंदोलन

गुर्जर समुदाय ख़ुद को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा का माँग करता रहा है। राजस्थान में 2007 और 2008 में हिंसक आंदोलन में कई लोग मारे गए थे। बाद में राज्य सरकार ने राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम- 2019 के तहत गुर्जर सहित पाँच जातियों गाड़िया लुहार, बंजारा, रेबारी व राइका को एमबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत विशेष आरक्षण दे दिया था। हालाँकि इसके बाद भी और ज़्यादा आरक्षण की माँग होती रही है।

पाटीदार आंदोलन

हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति अपने समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने और आरक्षण की माँग करती रही है। हालाँकि पटेल समुदाय आरक्षण की मांग राज्य में दो दशक से ज़्यादा समय से कर रहा है। जुलाई 2015 में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। आंदोलन जब तक शांत हुआ तब तक करोड़ों रुपये इसकी भेंट चढ़ चुके थे।

कापू आरक्षण 

आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय लगातार ओबीसी के तहत आरक्षण की माँग करते रहे हैं। साल 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगू देशम पार्टी ने राज्य की सत्ता में आने पर कापू समुदाय को पाँच फ़ीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। फ़रवरी 2016 में कापू आरक्षण आंदोलन की मांग उग्र और हिंसक हो गई थी। दिसंबर 2017 में इसके लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। हालाँकि केंद्र सरकार ने उस पर सहमति नहीं जताई थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कापू समुदाय काफ़ी ताक़तवर माना जाता है। कापू एक किसान जाति है। आंध्र प्रदेश में इसे ऊँची जातियों में रखा गया है। 

बता दें कि महाराष्ट्र में भी लंबे समय से आरक्षण की माँग होती रही थी। इसी के मद्देनज़र राज्य सरकार ने मराठा समाज को 16% आरक्षण दिया था। इसको चुनौती दिए जाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दिए गए आरक्षण को बरक़रार रखा है। हालाँकि अदालत ने एक शर्त रखी है कि आरक्षण 12 से 13% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। 
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किस आधार पर माँगते हैं आरक्षण?

आरक्षण 50 फ़ीसदी से ज़्यादा करने की माँग लगातार दो कारणों से होती रही है। एक तो यह कि नौवीं अनुसूची के प्रावधानों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला सिद्ध करना आसान नहीं है। दूसरा, विशेष परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के 50 फ़ीसदी की तय सीमा को तोड़ा जा सकता है। इसका रास्ता सिर्फ़ संविधान की नौवीं अनुसूची से होकर जाता है। यह अनुसूची न्यायिक समीक्षा यानी सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी से राहत देती है। 

तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा 69 फ़ीसदी आरक्षण 

सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था का तमिलनाडु सरकार ने लाभ उठाया। 1993 में जब मद्रास हाई कोर्ट ने आरक्षण में अधिकतम सीमा पार करने से रोक लगा दी थी तो जयललिता ने संविधान की नौवीं अनुसूची में अवसर देखा। तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने 69 फ़ीसदी आरक्षण के लिए विधानसभा से विधेयक पास कराया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पर दबाव डलवाकर न सिर्फ़ विधेयक पर मुहर लगवा ली, बल्कि संविधान में संशोधन करवाकर इसे नौवीं अनुसूची में डलवा दिया।

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मोदी सरकार ने संविधान में ही संशोधन कर दिया

50 फ़ीसदी की तय सीमा को पार करने के लिए मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में एक रास्ता निकाला। इस साल जनवरी महीने में संविधान के 124वें संशोधन विधेयक के ज़रिये केंद्र सरकार ने ग़रीब सवर्णों के लिए दस फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू कराई थी। उस विधेयक पर 12 जनवरी को अपनी सहमति जताते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने दस्तखत कर दिए थे। 

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क़मर वहीद नक़वी

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