प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ज़ोर देकर कहा कि देश में एक भी डिटेंशन कैंप यानी अवैध विदेशियों के लिए बंदी गृह नहीं है, भारतीय जनता पार्टी ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि डिटेंशन कैम्प मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए ही बनाए गए थे। बीजेपी ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने ख़ुद डिटेंशन कैंप बनवाए थे और अब लोगों को इस पर गुमराह कर रही है।
क्या है सच?
सत्य हिन्दी ने पड़ताल करने पर पाया कि अवैध विदेशियों के लिए पहला बंदी गृह असम में 2009 में बनाया गया, जब कांग्रेस की सरकार थी और तरुण गोगोई राज्य के मुख्यमंत्री थे। इसके पीछे साल 2008 में गुवाहाटी हाई कोर्ट का दिया गया एक बेहद अहम फ़ैसला है।
अवैध बांग्लादेशियों से जुड़े एक फ़ैसले में गुवाहाटी हाई कोर्ट के जज जस्टिस बी. के. सर्मा ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि 50 से अधिक अवैध बांग्लादेशियों को उनके देश भेजे क्योंकि उन्हें धोखाधड़ी से नागरिकता हासिल कर ली है।
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‘यह अब गोपनीय नहीं रहा कि अवैध बांग्लादेशी असम के कोने कोने में पहुँच गए हैं, वे जंगलों तक में हैं। वे असम के किंगमेकर बन चुके हैं।’
बी. के. सर्मा, तत्कालीन जज, गुवाहाटी हाई कोर्ट
बांग्लाभाषी मुसलमानों पर हमले
इसी साल कोकराझार के बांग्लाभाषी बहुल इलाक़े में ज़बरदस्त विस्फोट हुए, जिनके लिए बोडो अलगाववादियों को ज़िम्मेदार माना गया। इन विस्फ़ोटों में मारे जाने वालों में बांग्लाभाषी मुसलमान अधिक थे।
श्वेत पत्र
तरुण गोगोई सरकार पर ज़बरदस्त दबाव पड़ा। विपक्ष ने आरोप लगाया कि वह बांग्लादेशी घुसपैठियों और अवैध रूप से रह रहे विदेशियों के प्रति नरम हैं। इस दबाव में आकर तरुण गोगोई सरकार ने ग़ैरक़ानूनी रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की पहचान करने और उन्हें उनके देश भेजने के लिए 2012 में एक
श्चेत पत्र जारी किया।
इस श्वेत पत्र के पृष्ठ संख्या 38 पर बंदी गृह बनाने की बात कही गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि ग्वालपाड़ा, कोकराझाड़ और सिलचर में डिटेंशन कैम्प बनाए गए हैं। यह भी कहा गया है कि ग्वालपाड़ा डिटेंशन कैम्प में 66, कोकराझाड़ में 32 और सिलचर में 20 अवैध बांग्लादेशियों को रखा गया है।
जुलाई 2009 में तत्कालीन राजस्व मंत्री भूमिधर बर्मन ने राज्य विधानसभा में एलान किया दो डिटेंशन कैम्प बनाए जाएँगे, जिनमें अवैध बांग्लादेशियों को रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि ये डिटेंशन कैम्प मनकाछर और महिशासन में बनाए जाएंगे।
राजनीतिक दबाव
उन्होंने असम गण परिषद के एक सदस्य के सवाल के जवाब में यह कहा। एजीपी के लिए यह बड़ा मुद्दा था क्योंकि उसने इसी मुद्दे पर असम आन्दोलन खड़ा किया था और राजीव गाँधी सरकार को असम समझौते के लिए मजबूर किया था। वह इन कथित अवैध बांग्लादेशियों को लेकर बहुत गंभीर थी और राज्य सरकार पर बार-बार आरोप लगा रही थी। इसका नतीजा यह हुआ कि 2010 के मध्य तक 3 डिटेंशन कैम्प बन कर तैयार हो गए, ये ग्वालपाड़ा, सिलचर और कोकराझार में थे। तत्कालीन गृह राज्य मंत्री एम. रामचंद्र ने दिसंबर 2011 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि नवंबर, 2011 तक 362 अवैध विदेशियों को इन डिटेंशन कैम्पों में भेजा गया।
इसी साल राज्य विधानसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर जीत हासिल की, तरुण गोगोई फिर मुख्यमंत्री बने। इसके बाद तेज़पुर, ज़ोरहाट और डिब्रूगढ़ में भी इस तरह के डिटेंशन कैम्प बनाए गए। गोगोई ने कहा कि 1985 से जुलाई 2012 तक फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने 61,774 ऐसे लोगों की पहचान की, जो अवैध रूप से सीमा पार कर बांग्लादेश से असम आ कर रहने लगे।
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
लेकिन दो महीने बाद ही उन्होंने कहा कि असम में एक भी अवैध बांग्लादेश नहीं है। इस तरह इस मुद्दे पर राजनीति चल ही रही थी कि सितंबर, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह एनआरसी 1951 को अपडेट करे। बीजेपी ने आम चुनाव में इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना लिया। केंद्र की सत्ता में काबिज होने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने चुनावी वायदे को पूरा करने पर काम शुरू किया। सरकार ने 2016 में इस ओर ज़्यादा ध्यान दिया और 2017 में ग्वालपाड़ा के मटिया में बड़ा डिटेंशन कैंप बनाने की योजना बना डाली। इसने इसी साल मटिया में इस डिटेंशन कैम्प के लिए 20 बीघा ज़मीन भी अलॉट कर दिया।
डिटेंशन कैंप के लिए केंद्र का दिशा निर्देश
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 2 जुलाई 2019 को एक सवाल के जवाब में लोकसभा में कहा कि डिटेंशन कैम्प की बात नई नहीं है। इसके पहले 2009, 2012, 2014 और 2019 में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों से अपने-अपने यहाँ इस तरह के बंदी गृह बनाने के दिशा निर्देश जारी किए गए थे। असम के 6 डिटेंशन कैम्पों में 1,000 लोग रहते हैं। पर फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने 85 हज़ार लोगों की पहचान अवैध विदेशियों के रूप में की है।
और भी हैं बंदी गृह
इस तरह के डिटेंशन कैम्प असम ही नहीं, दूसरी जगहों पर भी बनाए गए हैं या बनाए जा रहे हैं।नवी मुंबई
केंद्र सरकार ने सितंबर, 2019 में नवी मुंबई प्लानिंग अथॉरिटी को एक पत्र लिख कर कहा कि वह वहाँ डिटेंशन कैम्प बनाने के लिए ज़मीन की तलाश करे। गृह मंत्रालय के प्रमुख सचिव अमिताभ सिन्हा ने एक चिट्ठी लिख राज्य सरकार से कहा कि वह डिटेंशन कैम्प बनाने की प्रक्रिया शुरू करे। उसके बाद देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने नेरुल में 3 एकड़ का प्लॉट अलॉट कर दिया। बेंगलुरु
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से 30 किलोमीटर दूर सोन्देकोप्पा गाँव में राज्य का पहला डिटेंशन कैम्प बन कर तैयार होने को है। यहां 15 लोगों को रखने की व्यवस्था होगी। जनवरी 2020 में यह शुरू हो जाएगा। नीचे लगी इस तसवीर से साफ़ है कि यह बंदी गृह बन चुका है।
कोलकाता
समाचार एजंसी पीटीआई के अनुसार, पश्चिम बंगाल के जेल मंत्री उज्ज्वल विश्वास ने नवंबर में कहा कि कोलकाता के पास न्यू टाऊन में इस तरह का डिटेंशन कैम्प बनाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर चौबीस परगना के बनगाँव में एक दूसरा बंदी गृह बनाया जा सकता है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसभा में एलान कर दिया कि देश में कहीं भी, एक भी डिटेंशन कैंप नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि कुछ अर्बन नक्सल और कांग्रेस के लोग बदनीयत से यह भ्रम फैला रहे हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि यह झूठ है। लेकिन सच तो यह है कि डिटेंशन कैंप हैं और नए बनाए भी जा रहे हैं।
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