सनाउल्लाह ने कहा कि उन्हें एनआरसी के पहले मसौदे के बाद उनके ख़िलाफ़ मामले के बारे में जब बताया गया था, उस वक़्त वह बेंगलुरु में थे और इसके बाद उन्हें इस मामले का कोई नोटिस नहीं मिला।
सनाउल्लाह ने आगे कहा, ‘मैं बहुत ख़ुश हूँ और हाई कोर्ट को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने मुझे रिहा किया। मुझे न्यायिक प्रक्रिया में पूरा भरोसा है और इस पर भी भरोसा है कि न्याय की जीत होगी।’
मोहम्मद सनाउल्लाह को 2014 में जूनियर कमीशंड अफ़सर बनाया गया था और 2017 में वह लेफ़्टिनेंट की मानद उपाधि से सेवानिवृत्त हुए थे। उसके बाद से वह असम बॉर्डर पुलिस से सब-इंस्पेक्टर के रूप में सेवा दे रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि सब-इंस्पेक्टर के रूप में सनाउल्लाह ख़ुद भी अवैध प्रवासियों का पता लगाने के काम में जुटे थे।
झूठी थी विदेशी घोषित करने की रिपोर्ट!
बता दें कि इससे पहले सनाउल्लाह को ‘विदेशी’ घोषित करने के मामले में तब हैरान करने वाला ख़ुलासा हुआ था जब उनकी जाँच रिपोर्ट पर जिन तीन लोगों के हस्ताक्षर करने की बात सामने आई थी, उन्होंने इस मामले में किसी तरह की जाँच की जानकारी होने से इनकार किया था। तीनों ही लोगों ने इस मामले में जाँच अधिकारी रहे चंद्रामल दास के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनका कोई बयान दर्ज नहीं किया गया और उन्हें गवाह के रूप में दिखाया गया, जो पूरी तरह झूठ है।यह ख़बर सामने आने के बाद चंद्रामल दास ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि मोहम्मद सनाउल्लाह वह शख़्स नहीं थे जिसकी उन्होंने जाँच की थी। लेकिन जिस शख़्स की उन्होंने जाँच की थी उसका नाम भी सनाउल्लाह था। दास ने कहा था कि शायद इस मामले में नाम एक जैसा होने की वजह से प्रशासनिक स्तर पर ग़लती हुई। दास ने यह भी स्वीकार किया था कि जाँच की अवधि 2008 से 2009 के दौरान सनाउल्लाह असम में नहीं थे।
सनाउल्लाह को विदेशी घोषित किए जाने के बाद अवैध रूप से रह रहे लोगों की जाँच कर रहे न्यायाधिकरण की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इससे स्थानीय लोग बेहद परेशान हैं।
इस मामले पर दुख जताते हुए सनाउल्लाह के बेटे शाहिद अख़्तर ने कहा, ‘हम लोग हैरान हैं, अगर सेना से रिटायर्ड हुए किसी व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है तो दूसरों के साथ क्या होगा। मैं पीएम मोदी से अपील करता हूँ कि उन्हें देखना चाहिए कि एनआरसी में क्या हो रहा है।’
बता दें कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों का मुद्दा काफ़ी गंभीर हो गया है। देश में असम अकेला ऐसा राज्य है, जहाँ सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था है। ग़ौरतलब है कि असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के तहत 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम में दाख़िल होने वाले लोगों को ही भारतीय माना जाएगा।
जिस व्यक्ति का नाम सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है, उसे अवैध नागरिक माना जाता है। कुछ स्थानीय लोग इस आशंका से बेहद परेशान हैं कि उनके साथ भी सनाउल्लाह जैसी ही घटना हो सकती है क्योंकि ये लोग एनआरसी की अंतिम सूची में आने से छूट गए हैं।
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