प्रधानमंत्री नरेंद्र मोेदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान पड़ोसी देश पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया। उन्होंने आतंकवाद का नाम लिया और कहा कि दुनिया की बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। मोदी ने यह भी कहा कि आतंकवाद कई देशों की समस्या है, पर उन्होंने परोक्ष रूप से भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।
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विदेश सचिव विजय गोखले ने पहले ही यह कह दिया था कि आतंकवाद एक अहम मुद्दा तो है, पर भारत इस पर बहुत ज़ोर नहीं देगा। ठीक वैसा ही हुआ और मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर भी बहुत कुछ नहीं कहा।
मोदी के इस भाषण ने लोगों को चौंकाया है। मोदी के प्रिय विषयों में एक पाकिस्तान है और वह लगातार उस पर हमले करते रहते हैं। उन्होंने चुनाव में पाकिस्तान को मुद्दा बनाया था, पाकिस्तान के 'अंदर घुस कर मारने' की बात कही थी, यहां तक कि यह भी कह दिया था कि 'भारत ने परमाणु बम दीवाली के लिए नहीं बना रखे हैं।'
परिपक्वता का परिचय?
कुछ पर्यवेक्षकों ने मोदी के भाषण को परिपक्वता क़रार दिया है और कहा है कि यूएनजीए जैसे मंचों पर पड़ोसी के साथ झगड़े को नहीं उठाना ही बेहतर है। इससे भारत ने विश्व समुदाय को यह संकेत दे दिया है कि कश्मीर उसका अंदरूनी मामला है, इसका अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं होना चाहिए और वह इस मुद्दे पर पाकिस्तान से निपट लेगा, उसे किसी अंतरराष्ट्रीय मदद की ज़रूरत नहीं है।भारत का यह रवैया महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि पाकिस्तान ने कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के बाद से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा लगातार उठाया है। उसके कहने पर ही चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह मुद्दा उठाया, इस पर अनौपचारिक बात हुई, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाएगा। बैठक के बाद कोई बयान भी जारी नहीं किया गया। इसके बाद पाकिस्तान ने यूएनएचसीआर में यह मुद्दा उठाया, वहाँ भी इसे समर्थन नहीं मिला। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटरेस ने कश्मीर की स्थिति पर चिंता जताई, लेकिन कहा कि दोनों देश मिल कर बातचीत के ज़रिए यह मसला सुलझा लें। यानी पाकिस्तान को यहाँ भी शिकस्त ही मिली।
मोदी के इस भाषण के बाद विश्व समुदाय पर यह दबाव पड़ेगा कि वह कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा न हो क्योंकि भारत ने दुनिया के सबसे बड़े मंच पर इस पर कुछ नहीं कहा है।
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