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'राष्ट्रवादी' सरकार के रक्षा बजट में इतने पैसे भी नहीं कि ज़रूरी हथियार ख़रीद सके

ख़ुद को राष्ट्रवादी  बताने वाली और दूसरी पार्टियों पर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का आरोप लगाने वाली बीजेपी की सरकार देश की सुरक्षा को लेकर कितनी लापरवाह है, यह इस बार के रक्षा बजट से साफ़ हो जाता है। अंतरिम बजट में रक्षा मद में जो पैसे अलॉट किए गए हैं, उससे सेना का न तो आधुनिकीकरण होगा न क्षमता बढ़ाने की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। इससे देश की सुरक्षा तैयारी को गंभीर झटका लग सकता है। रक्षा उपकरणों की नई खरीद तो दूर है, पहले से दिए ऑर्डर के लिए भी सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए दावा किया था कि आज़ादी के बाद रक्षा मद में सबसे ज़्यादा 3 लाख करोड़ रुपये अलॉट इसी साल किए गए हैं। लेकिन सच यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल रक्षा बजट में सिर्फ़ 5,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की गई है। रक्षा बजट में यह अब तक का न्यूनतम इजाफ़ा है। कुल रक्षा बजट सकल घरेलू अनुपात का सिर्फ़ 1.58 प्रतिशत है। 
साल 1962 में भारत का रक्षा बजट उस समय के सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत था। उसी साल भारत को चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा था। उसके अगले साल इसे बढ़ा कर 2.31 प्रतिशत कर दिया गया था। इस तरह जीडीपी के हिसाब से 1962 के बाद दूसरी बार सबसे कम पैसे रक्षा मद में अलॉट किए गए हैं।
यह जानना ज़रूरी इसलिए भी है कि कम पैसे की वजह से सैन्य बलों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा। थल सेना को आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार के लिए 36,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है, लेकिन उसे मिलेंगे सिर्फ 29,700 करोड़ रुपए। नौसेना को 35,714 करोड़ रुपये चाहिए, उसके लिए 22,227 करोड़ रुपये अलॉट हुए हैं। इसी तरह वायु सेना को 74,895 करोड़ रुपये चाहिए, लेकिन उसे मिलेंगे महज़ 39,347 करोड़ रुपये। यानी सेना को 1,46,609 करोड़ रुपए अपने आधुनिकीकरण के लिए चाहिए। पर उसके लिए अंतरिम बजट में महज 91,274 करोड़ रुपये मिलेंगे। यानी, उसे 55,335 करोड़ रुपये ज़रूरत से कम मिलेंगे। साफ़ है, सेना का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा, न ही इसकी क्षमता का विस्तार मुमकिन है।
यह हाल सेना का उस समय जब उसके पास पहले से ही ज़रूरी उपकरण और साजो सामान की ज़बरदस्त किल्लत है। 
लेफ़्टीनेंट जनरल शरत चंद ने बीते साल रक्षा से जुड़ी संसदीय समिति के सामने पेश होकर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सेना के पास जो साजो सामान हैं, उसका सिर्फ़ 8 प्रतिशत ही आधुनिक है, 24 प्रतिशत आज की ज़रूरतों के मुताबिक़ हैं। तक़रीबन 68 प्रतिशत बेहद पुराने हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं।
सेना को इस साल अपने बेड़े में सीएच-47एफ़ चिनूक हेवी लिफ़्ट हेलीकॉप्टर और एएच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर भी शामिल करना है। इसके अलावा इसे रूस से एस-400 एयर डिफेन्स सिस्टम भी लेना है।इसके अलावा सैन्य बलों को सैनिकों की पेंशन पर भी बहुत पैसे खर्च करने होते हैं। इस साल सेना को पेंशन मद में ही 1.12 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। सेना यदि इस पर पैसे खर्च करेगी तो उसके पास उपकरण खरीदने को पैसे नहीं होंगे।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि सेना के पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी क्षमता विस्तार और आधुनिकीकरण का पहले से तय काम पूरा कर सके। इससे उसकी रक्षा तैयारियों पर असर पड़ेगा। लेकिन यह काम नरेंद्र मोदी सरकार के समय हो रहा है, यह वह सरकार है जिसने राष्ट्रवाद का एक अजीब नैरेटिव खड़ा कर रखा है। उसने रफ़ाल के मुद्दे पर कांग्रेस पर चोट करते हुए कहा कि राहुल गाँधी को देश की रक्षा तैयारियों का जरा भी ध्यान नहीं है, वह बिल्कुल नहीं सोचते कि देश की सुरक्षा व्यवस्था कमज़ोर होगी और पड़ोसियों को इससे फ़ायदा होगा। अब यही सवाल मोदी सरकार से भी पूछा जा सकता है कि उसके अंतरिम  बजट में इतने पैसे भी क्यों नहीं है कि देश की रक्षा तैयारियाँ हो सकें।
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क़मर वहीद नक़वी

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