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क़र्ज़ में डूबा राजमार्ग प्राधिकरण, कैसे बनेगी 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था?

प्रधानमंत्री मोदी के एक फ़ैसले से भारत के विकास के पटरी पर लौटने में अड़चन आना तय है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सड़क बनाने वाली सरकारी संस्था एनएचएआई यानी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से कहा है कि वह हाइवे निर्माण अब बंद कर दे। पिछले पाँच साल में एनएचएआई पर क़र्ज़ सात गुना बढ़ गया है और इसी को ध्यान में रखकर यह फ़ैसला लिया गया है। यानी साफ़ शब्दों में कहें तो देश की अर्थव्यवस्था की हालत तो ख़राब हुई ही है, जिन नेशनल हाइवे को भारत के विकास का मार्ग कहा जाता है वह भी बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। माना जा रहा है कि हाइवे निर्माण के लिए पुरानी व्यवस्था अपनाई जाएगी जिसमें निजी डेवलपर्स को इसका ज़िम्मा सौंपा जाएगा।

‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने 17 अगस्त को एक पत्र में एनएचएआई को लिखा, ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सड़कों के अनियोजित और अत्यधिक विस्तार के कारण पूरी तरह से ठप्प पड़ गया है। एनएचएआई ज़मीन की लागत का कई गुना भुगतान के लिए बाध्य हुआ; इसकी निर्माण लागत काफ़ी बढ़ गई। सड़क का बुनियादी ढाँचा आर्थिक रूप से अलाभकारी हो गया है।’

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ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रस्ताव दिया है कि एनएचएआई को एक लाभदायक प्रबंधन कंपनी में बदला जाए। प्रधानमंत्री कार्यालय ने एनएचएआई को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है।

यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल से सीधा उलट है। उनके पहले कार्यकाल में तेज़ गेति से राजमार्ग निर्माण के लिए प्रशंसा मिली थी। यह सड़क का ढाँचागत विकास ही था जिससे भारत में आर्थिक विकास की गति तेज़ होने में मदद मिली थी। तब भारत दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा था। हालाँकि, तेज़ गति से राजमार्गों के निर्माण के साथ ही लागत भी बढ़ती गई। इसके बोझ तले एनएचएआई इस तरह दबा कि इसको आर्थिक सहायता के लिए सरकार पर निर्भर होना पड़ा। ऐसे समय में जब देश की आर्थिक स्थिति ख़राब है और सरकार अपने बजट घाटे को पूरा करने की कोशिश में जुटी है, इसके लिए एनएचएआई को मदद करना भारी पड़ता दिख रहा है।

‘एनडीटीवी’ से बातचीत में इंफ्राकोमिक्स कंसल्टिंग एलएलपी के पार्टनर विकास कुमार शारदा ने कहा कि सड़क निर्माण रोकने का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी के पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की राह में अड़चनें आएँगी। ऐसा इसलिए है कि सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सड़कें ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा, ‘सड़क महत्वपूर्ण ढाँचा है और इस पर ब्रेक लगाने से न केवल राजमार्ग निर्माण की गति धीमी हो जाएगी, बल्कि इस पर निर्भर दूसरे क्षेत्र भी प्रभावित होंगे।’

बता दें कि जब तब आर्थिक मामलों के जानकार इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि बिना रोड इन्फ़्रास्ट्रक्चर के विकास की तेज़ गति को पाना मुश्किल है। इस साल की रिपोर्ट में भी प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने कहा था कि आर्थिक विकास और इन्फ़्रास्ट्रक्चर में सीधा संबंध है। 

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पुराने मॉडल पर क्यों लौटना?

प्रधानमंत्री कार्यालय अब चाहता है कि एनएचएआई अपने पहले इस्तेमाल किए गए मॉडल पर वापस लौट आए, जहाँ एनएचएआई डेवलपर्स के लिए परियोजनाओं की नीलामी करता था। ऐसे डेवलपर्स सड़कों का निर्माण करेंगे, टोल टैक्स वसूलेंगे और फिर एक तय समय के बाद सड़क को एनएचएआई को वापस सौंप देंगे। 

हाइवे निर्माण को लेकर ऐसी स्थिति इसलिए बनी है कि एनएचएआई का क़र्ज़ काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया है। ‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट में एसबीआई कैप सिक्योरिटीज़ के विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि एनएचएआई पर 1.8 ट्रिलियन रुपये का क़र्ज़ है। इस पर हर साल क़रीब 140 बिलियन रुपये का ब्याज देना पड़ता है, जबकि एनएचएआई को टोल टैक्स से सिर्फ़ 100 बिलियन रुपये ही मिलते हैं। 

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‘एनडीटीवी’ ने रिपोर्ट में कहा है कि पूछे जाने पर प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कोई जवाब नहीं आया और एनएचएआई ने जवाब देने से इनकार कर दिया। हालाँकि ‘मिंट’ अख़बार ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का बयान प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि उस पत्र में सिर्फ़ सुझाव दिया गया है और एनएचएआई पूरी तरह से सड़क निर्माण के लिए क़र्ज़ लेने में सक्षम है।

अब दावे जो भी किए जाएँ, लेकिन एनएचएआई की स्थिति ऐसी तो नहीं लगती कि पहले की तरह सड़क निर्माण का काम हो पाएगा। जब सड़क जैसा इन्फ़्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की कितनी बड़ी उम्मीदें रखी जा सकती हैं?

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क़मर वहीद नक़वी

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