ऐसे समय जब प्रधानमंत्री ने राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बना कर पूरे विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया है और वह पुलवामा आतंकवादी हमले और बालाकोट हमले पर सवाल करने वालों को राष्ट्रद्रोही क़रार दे रहे हैं, सीआरपीएफ़ के पास प्रशिक्षण की बुनियादी सुविधाएँ तक नही हैं। सीआरपीएफ़ के आईजी ने पुलवामा हमले के कुछ ही दिन पहले फ़ोर्स के मुख्यालय को चिट्ठी लिख कर इसकी जानकारी दी थी। पर नजीता सिफ़र रहा।
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, सीआरपीएफ़ के आईजी रजनीश राय ने मुख्यालय को लिखी चिट्ठी में कहा कि
आतंकवादी निरोधी प्रशिक्षण देने वाली संस्था के पास न तो कोई स्थायी मकान है, न फ़ायरिंग रेन्ज है, जहाँ गोलाबारी करने या हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाए। यहाँ तक कि चहारदीवारी तक नहीं है।
यहां 150 लोगों को सिर्फ़ खानापूरी के लिए तैनात किया गया, बीते चार साल में एक भी आतंकवाद निरोधी प्रशिक्षण कोर्स नहीं चलाया गया है। राय ने चित्तूर स्थित आतंकवाद निरोधी प्रशिक्षण शिविर के बारे में कहा कि कोई बड़ी और सुनियोजित प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है। चित्तूर, शिवपुरी और सिलचर के प्रशिक्षण स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं। उन्होंने पुलवामा आतंकवादी हमले के कुछ दिन पहले लिखी चिट्ठी में कुछ बातों की ओर मुख्यालय का ध्यान खींचा। उन्होंने चित्तूर प्रशिक्षण शिविर के बारे में ये बातें कहीं:
- प्रशिक्षण शिविर में कोई ठोस और स्थायी संरचना नहीं है। वहां 44 प्री-फ़ैब्रीकेटेड शेड्स वाली झोपड़ियों से किसी तरह काम चलाया जा रहा है। इसके अलावा ऐसी और 25 झोपड़ियाँ बनाई जाएँगी।
- शिविर मेंं 800 लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए सिर्फ़ 39 लोग तैनात किए गए हैं। सुपरवाइजर के रूप में 15 अफ़सरों की नियुक्ति की गई है, पर सिर्फ़ 4 ही मौजूद रहते हैं।
- प्रशिक्षण की ज़रूरतों का कोई अध्ययन नहीं किया गया है। आतंकवाद निरोधी प्रशिक्षण देने की कोई दिशा तय नहीं है, कोई कार्य योजना तैयार नहीं है।
- प्रशिक्षण शिविर में बैटल असॉल्ट कोर्स का बुनियादी ढाँचा नहीं है, इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस यानी आईईडी के प्रशिक्षण के लिए आईईडी लेन नहीं है, रनिंग ट्रैक नहीं है। और तो और, हालत इतनी ख़राब है कि परिसर की चहारदीवारी तक नहीं है।
- शिविर के पास फ़ायरिंग रेन्ज नहीं है, जहाँ गोलाबारी या हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जा सके। फ़ायरिंग रेन्ज के लिए दी गई 169 एकड़ ज़मीन पर कई जगह कई तरह के भूमि विवाद हैं। राज्य पुलिस का फ़ायरिंग रेन्ज वहाँ से 70 किलोमीटर दूर है और वह भी हमेशा उपलब्ध नहीं रहता है।
- जंगल तक पहुँच नहीं है। जंगल युद्ध कौशल के प्रशिक्षण के लिए कोई इंतजाम नहीं है। यहाँ तक कि इनडोर क्लासरूम तक नहीं है, जहां सैन्ड ट्यूटोरियल ही दिया जा सके।
- शिविर में पानी तक की समचुत व्यवस्था नहीं है। पांच बोर वेल लगने हैं, अब तक सिर्फ़ एक लगा है। नतीजतन 8 लाख लीटर क्षमता के तीन टैंक खाली ही पड़े रहते हैं, वे पानी की कमी से भरे नहीं जाते।
- 25 केवीए के ट्रान्सफ़ॉर्मर से काम नहीं चल रहा है। शिविर को कम से कम 100 केवीए के दो ट्रान्सफ़ॉर्मर चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि सीआरपीएफ़ मुख्यालय ने रजनीश राय को कोई जवाब नहीं दिया। सीआरपीएफ़ का कहना है कि चित्तूर में कश्मीर के आतंकवाद, पूर्वोत्तर की छापामार लड़ाई और वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए शॉर्ट टर्म कोर्स कराए जाते हैं।
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देश के अलग-अलग जगहों पर कम से कम 20 प्रशिक्षण कोर्स चलाए जाते हैं, जहाँ जवानों से लेकर अफसरों तक को प्रशिक्षित किया जाता है। यहाँ बुनियादी प्रशिक्षण से लेकर आईईडी प्रशिक्षण और लेकर जंगल युद्ध कौशल तक का प्रशिक्षण दिया जाता है।
सीआरपीएफ़ का कहना है कि चार सेंट्रल ट्रेनिंग कॉलेज में इस साल 15,256 लोगों को ट्रेनिंग दी जानी है। इसके अलावा सीआईएटी में भी 6,903 लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। चित्तूर में क्विक एक्शन टीम का गठन किया गया है और यहाँ 1,274 लोगों को प्रशिक्षित किए जाने की योजना है।
सीआरपीएफ़ के बारे में ये बातें तब आ रही हैं जब प्रधानमंत्री ने देश की सुरक्षा, सेना और सुरक्षा बलों की वीरता को चुनावी मुद्दा बना लिया है। उनकी पार्टी हर उस राजनीतिक दल और आदमी को देशद्रोही साबित करने की कोशिश कर रही है जो उनसे इस बाबत कुछ भी सवाल करता है। देश में राष्ट्रवाद का ऐसा हव्वा खड़ा कर दिया गया है, जिससे लगता है कि एक मात्र सत्तारूढ़ दल ही राष्ट्रवादी है। सरकार से किसी तरह का सवाल पूछना मानो देशद्रोह है। पुलवामा हमले में सीआरपीएफ़ के जवानोें की शहादत को भुनाने की कोशिश तो सरकार ने की, पर उसी सीआरपीएफ़ को बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मामला ऐसे समय उठ रहा है जब देश में चुनाव है। इसके राजनीतिक मायने भी हैं।
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